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12 साल के गणेश ने 500 रूपए से भी कम की लागत में बनाया मकेनिकल छन्नी, कम मेहनत में साफ़ क़र पाएंगे अनाज

“एक बच्चे के लिए उसकी सबसे पहली शिक्षक मां होती है ।अगर मां चाहे तो अपने बच्चे के दिल में बचपन से ही नेकी और अच्छे कार्यों के बी बो सकती है और यह बी समय के साथ आपको मीठा फल देंगे इसलिए मैं भी अपने बेटे को सामाजिक कार्यों के लिए जोर रही हूं ताकि वह आगे चलकर आंखों की जिंदगी में बदलाव का कारण बने “


यह शब्द है महाराष्ट्र में यवतमाल जिले में स्थित भोस गांव में रहने वाली एक साधारण से गृहिणी अमृता खंडेराव की। ग्रामीण परिवेश में बचपन गुजारने से अमृता ने गांव के जीवन को बहुत अच्छे से जाना है। इसलिए वह गांव की महिलाओं और लोगों के लिए कुछ करना चाहती थी। अमृता का यह मानना है कि हम किसी भी बड़े बदलाव की उम्मीद एक दिन में नहीं कर सकते बल्कि हर दिन हमें छोटे-छोटे परिवर्तन लाने के लिए प्रयास करना चाहिए और उन्हें जोड़कर एक परी तस्वीर बनानी चाहिए। अमृता के इस उम्दा सोच से प्रेरणा लेकर अपने जीवन में लोगों के लिए बदलाव लाने की ओर चल पड़ा है उनका 12 वर्षीय बेटा बोधिसत्व गणेश खंडेराव।
गणेश कक्षा सातवीं का छात्र है और पढ़ाई लिखाई में हमेशा अव्वल आने वाला यह बच्चा बहुत ही हो रहा है छात्र है। बचपन से ही अपने मां के विचारों से प्रभावित होकर गणेश ने 6 साल की उम्र में ही समाज और पर्यावरण के लिए कार्य करना शुरू कर दिया।
गणेश का परिवार घने जंगलों से घिरे एक गांव में रहता है लेकिन समय के साथ यह जंगल धीरे-धीरे खत्म होता जा रहा है। वृक्षों की कटाई के कारण यह जंगल विरार होता जा रहा है। ऐसी स्थिति में लोगों द्वारा पौधारोपण की उम्मीद बहुत कम नजर आती है।


अमृता बताती है कि जब भी इस विषय में घर में बात होती थी तो गणेश उसे बड़े ध्यान से सुनता था। गणेश का दिमाग अपनी उम्र के बाकी बच्चों से काफी आगे की सोचता है इसलिए हमेशा ही समस्याओं के बारे में वह खुद से सोच कर या फिर कहीं से पढ़कर हल ढूंढता है। गणेश ने आसपास के जंगलों को कम होता देख इसका समाधान ढूंढना शुरू किया। जब गणेश सिर्फ पहली कक्षा में थे, तब उन्होंने “सीडबॉल” के रूप में पर्यावरण संरक्षण का उपाय ढूंढा। उन्होंने ना सिर्फ अपने स्कूल में बल्कि अपने जिले के दूसरे स्कूल में भी जाकर असेंबली में छात्रों और अध्यापकों को इस समस्या के प्रति आगाह किया और सीडबॉल के बारे में बताया। गणेश के “सीडबॉल प्रोजेक्ट” को उसके स्कूल में सराहना मिली ,साथ ही साथ राज्य स्तरीय मेलों में भी महाराष्ट्र के विभिन्न नामी-गिरामी लोगों ने उनकी सराहना की।


सीडबॉल के अलावा अब गणेश ने “मैजिकसॉक्स अभियान” भी शुरू कर किया है। एक बार जब गणेश अपनी मां के साथ स्ट्रौबरी फार्मिंग देखने के लिए गए थे तब उन्होंने वहां पर देखा कि किसानों ने खेत पर स्पंज बिछाकर उस पर मिट्टी डालकर स्ट्रौबरी की खेती की स्पंज की मदद से नमी ज्यादा दिनों तक बरकरार रहती है और इससे बीज का अंकुरण आसान हो जाता है। यह बात गणेश के दिमाग में रह गई और उन्होंने एक ऐसे ही छोटे से एक्सपेरिमेंट के तौर पर पुराने सॉक्स में थोड़ी सी गीली मिट्टी और दो-तीन बीज डालकर उसे गाठ बांधी। उन्होंने उस सॉक्स को अपने बगीचे के गमले में रख दिया कुछ दिनों बाद अमृता और गणेश ने देखा कि वह बीज अंकुरित होने लगे थे। गणेश ने अपनी एक्सपेरिमेंट को “मैजिक सॉक्स” का नाम दिया। इस एक्सपेरिमेंट की सफलता देखते हुए गणेश ने अपने स्कूल की असेंबली में एक बार फिर प्रेजेंटेशन दी और यवतमाल के कई स्कूलों के छात्रों ने अपने घरों से फटे पुराने सॉक्स लाने को कहा। अमृता और गणेश ने सभी बच्चों के साथ मिलकर बहुत सारे मैजिकसॉक्स का निर्माण किया और आसपास के जंगलों में जाकर फेंक दिया। अमृता का कहना है कि अगर आपने कभी गौर किया हो तो इंसान के पौधारोपण से कहीं ज्यादा क्षमता प्रकृति की स्वयं पौधारोपण की है। मुंबई-टू-पुणे के बीच ट्रेन से सफर करते हुए आप देखेंगे कि रास्ते में बहुत बड़े और घने पेड़ हैं ।वहां किसी ने पौधारोपण किया? या प्रकृति का कमाल है जो बीज बिना किसी बाहरी देखरेख के सिर्फ आकृति के सहारे पनपता है वह बहुत बड़े और छायादार पेड़ में विकसित होता है। इसलिए हमारे यहां सीडबॉल और फिर मैजिक सीट से से तकनीक बड़े पैमाने पर कामयाब हो सकते हैं।


गणेश को पर्यावरण संरक्षण के कार्यों के लिए बहुत से अवार्ड से नवाजा गया है। साल 2014 में पुणे महाराष्ट्र के एक सोशल इवेंट में चीफ गेस्ट के तौर पर भी बुलाया गया। इसके साथ ही उन्हें राज्य के चार करोड़ पौधारोपण अभियान मैं सबसे पहले पौधा लगाने का सम्मान भी मिला। ग्लोबल वार्मिंग और क्लाइमेट चेंज पर संबोधन के लिए उन्हें बुलाया जाता है। अपने जिले में वापसी बॉय के नाम से पहचाने जाने लगे हैं।

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पौधारोपण के साथ-साथ गणेश अब अविष्कारक भी बन चुके हैं। साल 2017 में गणेश ने एक ऑटोमेटिक छन्नी बनाई जिसकी मदद से कोई भी अनाज बहुत ही कम समय में किसी खास मेहनत के बिना आसानी से साफ किया जा सकता है। अपने ही से लोकेशन के बारे में गणेश ने बताया कि उन्होंने अपनी मम्मी और गांव की औरतों को हाथ से अनाज साफ करते देखा। इस प्रक्रिया में समय बहुत लगता है और थकान भी काफी हो जाती है। इस समस्या पर उन्होंने कुछ करने का सोचा और फिर एक मैकेनिकल छलनी का मॉडल बनाया जिससे सैकड़ों किलो अनाज भी बहुत आसानी से चंद घंटों में साफ किया जा सकता है। सनी को इच्छुक व्यक्ति ₹500 से भी कम की लागत में बनवा सकता है।
गांव में बड़े किसान अक्सर गांव के मजदूरों को अपने खेत के अनाज साफ करने के लिए तैयारी पर रखते हैं। हमें ज्यादातर मजदूर महिलाएं होती हैं। पहले यह महिलाएं औलाद साफ करने के लिए हाथों का इस्तेमाल करती थी और उस में बहुत समय लगता था। पूरे दिन में काम करने के बाद कुछ ही किलो अनाज साफ कर पाती थी लेकिन अब छलनी की मदद से वह 1 दिन में 20 किलो से भी ज्यादा अनाज साफ कर सकती हैं।
मोदी के इस अविष्कार को पहले यवतमाल अमोलकचंद विश्वविद्यालय के आविष्कार मेला में प्रदर्शित किया गया जहां उन्हें इस इनोवेशन के लिए बहुत तारीफ है मिली। इसके बाद गणेश के माता-पिता ने 92वे अखिल भारतीय मराठी साहित्य सम्मेलन में लगभग 40 मैकेनिकल छलनी ऐसी महिलाओं को मुफ्त में प्रदान की जिनके किसान पतियों ने आत्महत्या कर ली थी।


यवतमाल के पास पैसे बाहर गांव की 65 वर्षीय महिला किसान 1 साल से इस छन्नी का इस्तेमाल कर रही हैं। वह बताती है कि फसल के बाद जो अच्छा और मोटा अनाज होता है उसे किसान मंडी में में स्थित हैं। वे ज्यादातर बात के बचे हुए अनाज को घर के लिए रख लेते हैं जिसमें थोड़ी मिट्टी कंकर मिले रहते हैं। इसलिए उन्हें साफ करना बहुत ही आवश्यक है। पहले सफाई करने में पूरा दिन लग जाता था और सिर्फ एक बोरी अनाज ही साफ हो पाती थी। लेकिन जबसे उन्होंने गणेश द्वारा बनाए गए छलनी का इस्तेमाल किया है तब से समय और मेहनत दोनों की बचत हो रही है। उनका कहना है कि अब उन्हें आराम से कहीं भी बैठकर अनाथ साफ करने में कोई परेशानी नहीं होती और थोड़े समय में ही ज्यादा से ज्यादा काम हो पाता है।
लोगों का यह मानना है कि गणेश का यह अविष्कार भले ही छोटा सा है लेकिन किसानों के लिए यह बहुत काम की चीज है। दरअसल इस छन्नी को चलाने के लिए ना किसी बिजली की जरूरत पड़ती है आप जमीन पर बैठे हो या कुर्सी पर कहीं भी बैठकर थोड़ी ही देर में अनाज साफ कर सकते हैं।
अमृता का कहना है कि वह गणेश को हमेशा सबको अपने साथ लेकर चलने के लिए प्रेरित करती हैं। लेकिन अगर वह इस बदलाव के रास्ते पर रखे ले चलेंगे तो ज्यादा दूर तक नहीं चल पाएंगे क्योंकि उनके पास साधन सीमित है। अगर समुदाय के लोग आगे बढ़कर मदद करेंगे तो उनका यह मानना है कि वह जरूर कुछ अच्छा कर सकते हैं।


इसलिए हर समस्या में गणेश अपने स्कूल प्रशासन की मदद से अन्य छात्रों का साथ मांगते हैं और लोगों की मदद करते हैं। अपने गांव के एक गरीब कैंसर पीड़ित बच्चे की मदद के लिए गणेश ने ऐसा ही कदम उठाया था और उन्होंने अपने स्कूल में सिक्का अभियान चलाया। उन्होंने छात्रों और शिक्षकों से अपील की कि सिर्फ ₹1 दान करना है जो भी फंड में इकट्ठा होगा वह हम बच्चे को दे देंगे। मोदी के इस अभियान से सिर्फ 1 दिन में ही आग से ₹10000 इकट्ठा हो गए किसी भी आदमी के लिए एक बार में इतने पैसों की मदद देना आसान नहीं होता। कि जब साथ सब साथ में आए तो यह मदद बहुत आसान हो गई।
अमृता अन्य माओं के लिए सिर्फ यही कहती है कि अपने बच्चों को शिक्षा खेल और अन्य गतिविधियों में तेज बनाने के लिए प्रोत्साहित करने के साथ-साथ समाज के प्रति सेवाओं के लिए भी जागरूक करना चाहिए। बच्चे देश का भविष्य होते हैं और अगर इन्हें समाज कल्याण कि सोच के साथ बड़ा करेंगे तो वह कल परिवर्तन जरूर लाएंगे ‌। अमृता और उनके बेटे गणेश की समाज सेवा को The Logically नमन करता है ‌

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