हम जहां रहते हैं वहां अधिकांश लोग सिर्फ अपने और अपने फायदें के लिए सोचते हैं, उन्हें दूसरों से कोई मतलब नहीं होता है। लेकिन कुछ लोग ऐसे भी होते हैं जिन्हें खुद से अधिक दूसरों की परवाह होती है। वे हमेशा पहले अपने बारें में न सोचकर दूसरों के बारें में सोचते हैं उनकी मदद करने के लिए आगे निकलकर आते हैं। उदाहरण के लिए कोई गरीबों को मुफ्त में भरपेट खाना खिलाता है तो गरीब तबके के बच्चों को मुफ्त में शिक्षा देता है ताकि उनका भविष्य उज्ज्वल हो सके।
हमारी आज की यह कहानी भी एक ऐसे ही युवक के बारें में है जिसने अपने बारें में न सोचकर दूसरों के भले के लिए सोचा और उसके प्रयास से कई कूड़ा बिनने वाले गरीब और जरुरतमन्द बच्चों का भविष्य अंधकार से प्रकाश को ओर जा रहा है। इसी कड़ी में चलिए जानते हैं उस युवक और उसके द्वारा किए जा रहे प्रयास के बारें में विस्तार से-
गरीब बच्चों को मुफ्त में पढ़ाते हैं प्रिन्स
कुछ लोग सिर्फ दूसरों के लिए जीते हैं और उन्हीं में एक नाम प्रिन्स शर्मा का भी शामिल है। सरकारी स्कूल होने के बाद ऐसे अनेकों बच्चे हैं तो अत्यंत गरीब होने के कारण शिक्षा से दूर रह जाते हैं लेकिन प्रिन्स शर्मा (Prince Sharma) एक ऐसी शख्सियत हैं जिनके कोशिशों की वजह से आज जरुरतमन्द और गरीब बच्चे बिना किसी शुल्क के मुफ्त में शिक्षा ग्रहण कर रहे हैं। वे “चैलेंजर्स की पाठशाला” (Challengers Ki Pathshala) में अनेक बच्चों का भविष्य उज्ज्वल कर रहे हैं।
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कैसे शुरु हुआ गरीब बच्चों को पढ़ाने का सिलसिला?
मीडिया रिपोर्ट्स के अनुसार, एक बार प्रिन्स कहीं से गुजर रहे थे तभी उनकी भेंट सड़क किनारे एक 6-7 साल के बच्चे से हुई। उन्होंने देखा कि इतनी मासूम उम्र का वह बच्चा रुमाल सूंघ रहा था और नशे में थे। हालांकि, प्रिंस को कुछ समय के लिए ऐसा लगा कि वह उनपर हमला कर देगा लेकिन फिर भी उन्होंने हिम्मत जुटाई और उस बच्चे से पूछा- ये क्या कर रहे हो, तुम पढ़ाई-लिखाई क्यों नहीं करते? उनका सवाल सुनते ही उस छोटे-से बच्चे ने जवाब दिया कि- तू पढ़ाएगा?
बच्चे से मिलने के बाद उन्हें एहसास हुआ कि, लोग सिर्फ ज्ञान देते हैं जिससे कुछ नहीं होता है बल्कि उस समस्या को जड़ से मिटाने का प्रयास करना चाहिए। उसी समय उन्होंने तय किया कि, वे गरीब बच्चों को शिक्षित करेगे और इसी सोच के साथ अगले दिन से ही उन्होंने स्लम के बच्चों को पढ़ाना शुरु कर दिया।
आसान नहीं था गरीब बच्चों को पढ़ाने का सफर
हमारे देश का एक तबका ऐसा भी है जो आज के मॉडर्न समय में भी शिक्षा का महत्व नहीं समझता है और उससे बहुत दूर है। ऐसे में प्रिन्स के लिए गरीब बच्चों को पढ़ाने का सफर आसान नहीं था। झुग्गी-झोपड़ी में रहनेवाले लोग अपने बच्चों को पढ़ने भेजने के लिए कतई तैयार नहीं थे। प्रिन्स ने उन सभी को काफी समझाने का प्रयास किया लेकिन कई लोगों ने उन्हें काफी भला-बुरा कहा और भगा दिया। वहीं कुछ लोगों ने कहा कि जितना समय पढ़ने जाएगा उतने समय में कूड़ा बिनकर 50 रुपये कमा लेगा।
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2 बच्चों को पढ़ाने से शुरु हुआ चैलेंजर्स ग्रुप
लोगों द्वारा काफी भला-बुरा सुनने के बाद भी उन्होंने हार नहीं मानी और अपनी कोशिशे जारी रखी। गरीब बच्चों को शिक्षा देने के लिए उन्होंने फुटपाथ पर ही दो बच्चों को पढ़ाने के साथ अपनी नेक मुहिम की शुरूआत की। उसके बाद समय लगा लेकिन लोग उनकी बातें समझ गए और अपने बच्चों को पढ़ने के लिए भेजने लगे और इस तरह साल 2018 में चैलेंजर्स ग्रुप (Challengers Group) सन्स्था की शुरूआत हुई। उसके बाद धीरे-धीरे इसका विस्तार हुआ और आज इसके कई सेंटर खुल चुके हैं जहां 500 से अधिक बच्चे मुफ्त में शिक्षा ग्रहण कर रहे हैं।
लोगों ने दिया ताना
24 वर्षीय प्रिन्स शर्मा (Prince Sharma) के नेक काम में उनके परिवार ने उनका काफी सपोर्ट किया। हालांकि, उनके कुछ रिलेटिव्स ने उन्हें ताना दिया, उनके एक रिश्तेदार ने कहा कि, ये लोग किसी के सगे नहीं होते हैं, तुम्हारा दिमाग खराब हो गया है। इसी तरह काफी कुछ सुनकर भी प्रिन्स के कानों पर जू तक नहीं रेंगा और उन्होंने अपने इस नेक पहल जारी रखी।
एशिया और इंडिया बुक ऑफ़ रिकॉर्ड में शामिल हो चुका है नाम
शिक्षक दिवस (Teachers Day) के अवसर पर प्रिन्स के पाठशाला के 60 बच्चों ने महज 3.51 सेकंड में डॉक्टर सर्वपल्ली राधाकृष्णन के 60 कैरीकेचर बनाकर एशिया बुक ऑफ रिकॉर्ड (Aisa Book of Record) और इंडिया बुक ऑफ़ रिकॉर्ड (India Book Of Record) में भी अपना नाम दर्ज कर चुके हैं। यह उनके लिए एक बहुत बड़ी उपलब्धी थी जिसे प्रिन्स ने अपनी मेहनत, लगन और संघर्स से हासिल की है।
वास्तव में प्रिन्स शर्मा (Prince Sharma, Challengers Ki Pathshala) की इस नेक पहल ने अनेकों गरीब तबके के बच्चों के हाथों से कूड़ा का बोरा हटाकर किताबें थमाई है। इस पहल से आज अनेक बच्चों का भविष्य उज्ज्वल हो रहा है। इस काम के The Logically प्रिन्स शर्मा को सलाम करता है जिन्होंने काफी संघर्षों का सामना करते हुए इसे शुरु किया और यह पहल आज भी जारी है।