कहते हैं कि जब बदलाव लाना हो सबसे पहले हमे खुद बदलना होता है क्योंकि हम बदलेंगे तो समाज बदलेगा, अगर समाज बदलेगा तभी देश का विकास होगा। वैसे आज हम बात करेंगे कुछ IAS अफसरों के बारे में जिन्होंने समाज में कुछ बेहतर करने का प्रयास कर एक मिसाल कायम किया है।
इन अफसरों ने लोगों में पर्यावरण संरक्षण एवं समाज के प्रति कुछ बेहतर करने के लिए जागरूक किया है। तो आईए जानते हैं उन अफसरों के बारे कुछ विशेष बाते –
हरी चांदना देसारी (Hari Chandna Desiri)
प्लास्टिक की पानी की बोतल और कोल्ड ड्रिंक की बोतल पर काम कर रही हरी चांदना देसारी (Hari Chandna Desiri) इस समय हैदराबाद की जोनल कमिश्नर है। उन्होंने कचरे की ढेर पर पड़ी बोतलों पर रिसर्च किया। उन्होंने यह पता लगाया कि यह बोतल यूज होने के बाद कहां इकट्ठे होती है, इनका क्या किया जाता है और साथ ही इन्हें रिसाइकल कैसे किया जाता है। इन सब चीजों पर इन्होंने अपनी जानकारी जुटाई और इसके लिए काम शुरू किया।
हरी चांदना ने सबसे पहले बोतलों को वेस्ट मैनेजमेंट के तौर पर यूज करना स्टार्ट किया। इसके बाद उन्होंने इसके लिए ग्रीन रेवोलुशन का सहारा लिया। उन्होंने इन बोतलों में पौधे लगाने शुरू कर दिए। इन्होंने कचरे वाले बोतलों से शहर के पार्क और सड़कों को पूरी तरह से सजा दिया।
धीरे-धीरे उन्होंने बेकार पड़े ड्रम और टायर्स को भी कलर करके पार्क में लगवा दिया। आपको बता दें कि इसमें लगे पौधे पूरे पार्क की खूबसूरती में चार चांद लगा दिए। इसके साथ हीं उन्होंने एक डॉग पार्क का निर्माण करवाया जहां शहर के लोग अपने पालतू कुत्तों को भी लेकर टहलने जा सकते हैं। इस पार्क में 24 तरह के ऐसे इक्विपमेंट है, जिससे कुत्तों को भी एक्सरसाइज कराया जा सकता है।
आशीष सिंह (Ashish Singh)
आशीष सिंह नगर निगम में कमिश्नर है। कहते हैं कि जब से उन्होंने नगर निगम का कमान संभाला तब से मध्यप्रदेश का इंदौर पिछले तीन सालों से स्वच्छता अभियान में नंबर एक पर बना हुआ है। इन्होंने माइनिंग मॉडल से 13 टन कचरे को मात्र 6 महीने के अन्दर ही रिसाइकल करवाया। इन चीजों का उपयोग बारीकी से खाद बनाने के लिए किया जाने लगा और देखते हीं देखते इंदौर की तस्वीर पूरी तरह से बदल गई।
2010 बैच के अफसर आशीष ने गीले कूड़े का उपयोग मेथेन गैस बनाने के लिए किया, जिसका उपयोग खाद के रूप में किसान कर रहे हैं। वहीं दूसरी तरफ सूखे कूड़े की रिसाइकल की जा रही है। इतना कुछ करने के बाद आशीष अब शहर में बह रही नदियों कान्हा और गंभीर को साफ कराने का कार्य कर रहे हैं।
स्मिता सभरवाल (Smita Sabharwal)
स्मिता सभरवाल जिन्होंने मात्र 23 वर्ष की उम्र में यूपीएससी (UPSC) की परीक्षा पास किया। अभी तक उन्हें कार्य करते 15 साल हो चुके हैं। इतने सालों के कैरियर में उनकी तैनाती तेलंगाना (Telangana) के वारंगल (Warangal), विशाखापट्टनम (Visakhapatnam), करीमनगर (Karimnagar) और चित्तूर (Chittoor) में हुई है। इन्होंने जहां भी काम किया लोग उन्हें भूल नहीं पाए और उनकी छवि लोक अधिकारी के तौर पर बनी हुई है।
स्मिता सभरवाल की नियुक्ति करीमनगर की डीएम के तौर पर हुई। उन्होंने वहां स्वास्थ्य और शिक्षा विभाग के लिए कार्य किया। इनके ही प्रयास से वहां के अस्पताल में साफ-सफाई एवम् बेहतर सुविधा उपलब्ध हुई। साथ ही किसी भी प्रेग्नेंट महिला के लिए फ्री चेकअप की व्यवस्था भी किया गया।
एक बार स्मिता ने बीमार महिलाओं के लिए एक कैंपेन चलाया, जिसमें वैसी महिला जाती थी जो अपनी इलाज के लिए हॉस्पिटल नहीं पहुंच पाती है। इतना ही नहीं उन्होंने अपने काम पर स्काइप के जरिए नजर बनाए रखने के लिए अस्पताल में कंप्यूटर और इंटरनेट की सुविधा भी उपलब्ध करवाया। साल 2017 में तेलंगाना के मुख्यमंत्री ने इन्हें एडिशनल सेक्रेटरी के रूप में अपॉइंट किया। मुख्यमंत्री कार्यालय में इतनी बड़ी जिम्मेदारी लेने वाली वह सबसे पहली युवा अफसर हैं।
यह भी पढ़ें :- बिहार के ये IAS अधिकारियों ने अपने गांवों में खोला है पाठशाला, गरीब बच्चों को नि:शुल्क पढ़ाते हैं
रितु सेन (Ritu Sen)
रितु सेन जो एक आईएएस (IAS) ऑफिसर है। उनके किए गए कार्य को छत्तीसगढ़ के अंबिकापुर में लोग काफी याद करते हैं। उन्होंने एक ऐसे जगह को पूरी तरह से बदल दिया जहां लोग रहना नही चाहते थे। जी हां रितु ने कचरे से भरी एक बदबूदार क्षेत्र को एक साफ-सुथरे जगह में तब्दील कर दिया। अब जहां कभी लोग रहना नही चाहते थे, वहीं आज इस जगह से लोगो का दिल जुड़ गया है।
फिलहाल रितु आवास एवं शहरी विकास मंत्रालय में तैनात हैं। रितु साल 2003 बैच की IAS ऑफिसर है। अंबिकापुर में कलेक्टर रहते हुए उन्होंने में जिस तरह से कार्य किया वह बेहद सराहनीय है। ये देखकर अंबिकापुर को साल 2018 में सबसे साफ छोटा शहर घोषित किया गया।
रोहिणी भजीभकरे (Rohini Bhajibhakare)
रोहिणी भजीभकरे महाराष्ट्र सोलापुर के एक छोटे से गांव उपलाई की रहने वाली है। इनके पिता एक मार्जनल (सीमांत) किसान थे। इन्होंने अपनी दसवीं तक की पढ़ाई अपने गांव से ही किया। वही 12वीं की पढ़ाई करने के लिए वे सोलापुर चली गई। वे पढ़ाई में हमेशा टॉपर रही हैं। अपनी बैचलर ऑफ इंजीनियरिंग की पढ़ाई पूरी करने के बाद रोहिणी ने IAS बनने की तैयारी शुरू कर दिया और साल 2008 में उन्होंने अपनी यूपीएससी (UPSC) की परीक्षा पास कर लिया।
UPSC की परीक्षा पास करने के बाद उनकी पहली पोस्टिंग तमिलनाडु की मदुरै में असिस्टेंट कलेक्टर के पद पर हुई और इसके बाद वे तिंदिवनम में सब कलेक्टर के पद पर अपॉइंट हुईं। रोहिणी के द्वारा मदुरै में किए गए कार्य लोगों के नजर में काफी सराहनीय है। उनके प्रयास से ही यह जिला राज्य का पहला खुले में शौच से मुक्त जिला बना था। इन्होंने इन इलाकों में न सिर्फ शौचालय बनवाए बल्कि यह सुनिश्चित किया कि लोग इनका उपयोग भी कर रहे हैं या नहीं।
साल 2016 में उन्हें MNREGA को सही तरीके से इंप्लीमेंट करने के लिए अवार्ड भी दिया गया। इस प्रोग्राम के तहत उन्होंने मदुरै में ग्राउंड वाटर का स्तर बेहतर करने के लिए कार्य किया। रोहिणी का कहना है कि जब वह आईएएस ऑफिसर की ट्रेनिंग के लिए जा रही थी तब उनके पिता ने कहा था कि ‘तुम्हारी टेबल पर ढेर सारी फाइलें आएंगी तो उन्हें सामान्य कागज की तरह मत देखना क्योंकि तुम्हारे 1 साइन से लाखों लोगों की जिंदगी में सुधार आ सकता है। हमेशा यह सोचना कि लोगों के लिए क्या अच्छा है और क्या बुरा।’ रोहिणी आज भी अपने पिता की कही हुई बात को ध्यान में रखते हुए लोगों की मदद करती है।
अगर देश में प्रत्येक अफसर इन अफसरों जैसे बन जाए तो लोगों की जिंदगी सवरने में देर नहीं लगेगी, पर सभी लोग इन अफसरों जैसे ईमानदार नहीं होते हैं। इन्हें देख कर बाकी अफसरों को भी इनसे प्रेरणा लेने की जरूरत है। इनके द्वारा किए गए कार्य लाखों लोगों की जिंदगी सवार चुके हैं। ऐसे अफसरों को तहे दिल से नमन है।