Wednesday, December 13, 2023

63 वर्ष की उम्र में अपनी खेती से हिमाचल में लाई क्रांति, औषधीय खेती से महिलाओं को जोड़कर बदली सूरत

किसी भी काम को करने के लिए उम्र की सीमा नहीं देखी जाती। अगर किसी भी काम को लगन और परिश्रम के साथ किया जाए तो वह आखिरकार सफलता जरुर हासिल होती है। आज एक महिला की कहानी जो लगभग 60 उम्र को पार हो चुकी हैं परंतु इस महिला में काम के प्रति इतना जज्बा और जुनून भरा हुआ है कि इन्हें देख कर यह नहीं लगता कि इनकी उम्र 60 वर्ष से ऊपर की हो गई है। यह इतने उमर में भी पहाड़ों पर चाहती हैं उभर खाबड़ रास्तों पर चलती हैं।

रीवा (Riwa) का जन्म दिल्ली में हुआ। यह लगभग 63 साल की हैं। यह बताती है कि मेरी पढ़ाई-लिखाई सब दिल्ली में ही हुआ। इन्होंने सोशियोलॉजी में मास्टर डिग्री करने के बाद हावर्ड से बिजनेस मैनेजमेंट की पढ़ाई की और एक सोशल वर्कर होने की वजह से यह नेशनल और इंटरनेशनल लेवल पर काम करती रहती हैं। वह बताती हैं कि जब मेरे पति को आंतों का कैंसर हो गया तो हम अपने ससुराल हिमाचल चले गए। यह बताती है कि मेरे पति को कैंसर केमिकल युक्त खाना खाने की वजह से हुआ। मेरे पति को आंत मैं कैंसर होने की वजह से हम लोग काफी डिप्रेशन में चले गए और उसी डिप्रेशन में हमने काम करने का विचार किया। अपने समाज के लिए कुछ करने का मन बना लिया।

Riwa

रीवा बताती हैं कि हिमाचल के कांगड़ा में परिवारिक जमीन थी। परंतु हम इस जमीन का उपयोग नहीं कर सकते थे। इसके बाद हमने ऊना में जमीन लेकर मेडिकल कॉलेज बनाने के बारे में सोचा। मेडिकल कॉलेज बनाने के बारे में इसलिए हमने विचार किया कि मेरे हस्बैंड और मेरी दो बेटियां डॉक्टर है। परंतु जो मुझे जमीन मिली वह जमीन काफी खराब निकली। दरअसल वह जमीन बंजर निकली और मैं इस खराब जमीन के लिए लड़ भी नहीं सकती थी। क्योंकि मेरे पति की स्थिति काफी खराब थी। इसके बाद मैंने इसी बंजर जमीन में कुछ करने के बारे में विचार किया। काफी सोच विचार करने के बाद मैंने इस बंजर जमीन पर औषधि की खेती करनी शुरू कर दी। इस औषधि की खेती करने के लिए हमने बेहड़ा जसवां पंचायत के तीनों गांव बेहड़ विट्ठल, अकरोट और घुंघराला गांव से खेती की शुरुआत कर दी।

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रीवा (Riwa) बताती है कि हमने जब साल 2016-17 में काम शुरु किया तो पता चला कि यह जमीन काफी बंजर है। इस जमीन पर लगभग 40 50 सालों से इस पर खेती का कोई भी काम नहीं हुआ था। जमीन पूरी तरह से खराब थी और इसने पानी भी नहीं था। फिर हमारे दिमाग में काफी सारे सवाल उठने लगे कि इस बंजर जमीन पर हम खेती कैसे करेंगे। इसके बाद हमने सोचा कि यहां हम ऐसे पेड़-पौधे लगाएंगे। जिसकी भविष्य में काफी कीमत हो।

रीवा कहती हैं कि काफी सोच विचार करने के बाद मैंने देखा कि इस बंजर जमीन पर घास काफी मात्रा में उगे हुए हैं। और पता चला कि हिमाचल में किसानों को घास जैसे प्रोडक्ट देना काफी अच्छा है। फिर मेरे पास आइडिया आया और हमने कस कस, साइट्रोनेला, लेमनग्रास को इस बंजर जमीन पर लगा दिया। इसके बाद देखा कि यहां नागफनी के बहुत सारे पौधे लगे हैं। जब पता लगाया तो मुझे पता चला कि नागफनी की जगह ड्रैगन फ्रूट को यहां लगाया जा सकता है। रीवा बताती है कि हमने पहले दिल्ली में इंडिकेटर रेस्ट के जरिए राष्ट्रीय अंतराष्ट्रीय स्तर पर पानी जमीन बायोडायवर्सिटी पर्यावरण आजीविका और महिला जैसे मुद्दों पर काम करती थी और कर रही हूं जिसकी वजह से मुझे खेती में काफी कुछ जानकारी प्राप्त है।

Riwa Dragon Fruits Farming

रीवा (Riwa) बताती हैं कि जब मैंने हिमाचल में काम की शुरुआत की तो वहां के लोग को मेरा यह काम पसंद नहीं आ रहा था। वो लोग मुझे बाहरी लोग समझते थे। कुछ लोग तो हमें सनकी कह के बुलाते थे। उन्होंने बताया कि हमारी उम्र 63 साल की हो गई है। फिर भी हम इन पहाड़ों पर चलते थे। और उबड़ी-खाबड़ी सङको पर गाड़ियां लेकर घूमते थे। वहां के लोग हमें याद कर सुझाव देने लगे कि हम टाइप का बिजनस स्टार्ट कर दें। परंतु हमने मन बना लिया था कि जो युवा गांव से शहर कमाने के लिए चले गए हैं। वह अपने घर वापस आकर के पर्यावरण पर ध्यान दें।

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वह कहती हैं कि जब हम यहां किसानों से मिले और इन लोगों का हाल देखें तो हमें काफी दुख हुआ। हिमाचल में किसान सिर्फ धान, गेहूं, मक्का के फसल के बारे में ही सिर्फ जानते थे। इसके अलावा इन्हें और कोई फसल के बारे में जानकारी नहीं थी। फिर हमने इन सभी को काम के बारे में समझा रहे थे। तब यह लोग इन काम से डर रहे थे। जब फसलों में कीड़ा लग जाए तो केमिकल पेस्टिसाइड्स का इस्तेमाल करते इसके साथ-साथ फसलों को बढ़ाने के लिए खेतों में केमिकल यूरिया का उपयोग करते थे। यहां के प्रशासन भी इस केमिकल पदार्थ उपयोग करने से नहीं रोकते थे। यह बताती हैं कि जब भी हिमाचल में फलों की बात होती थी तो हमें सबसे पहले सेब के फल का सपना खाने लगता था परंतु हिमाचली से कई स्थानों पर सेब की खेती करना काफी परेशानियां थी। सेब की खेती करने के लिए क्लाइमेट चाहिए। अगर बर्फ अच्छी ना पड़े तो सेव का प्रोडक्शन खराब हो सकता है। ऊना विलासपुर, हमीरपुर, कांगड़ा जैसे इलाका गर्म है। यह इलाका गर्म होने की वजह से यहां टूरिस्ट इसमें नहीं आते।

वे बताती है कि हिमाचल में जठेरी कुल देवता की पूजा होती है। इसमें भारी भरकम में मेला लगती है। और यह मेला यहां से लोगों का कमाई का जरिया बनता है। यह सब देख कर के हम ने जहां के महिलाओं को मेडिसिनल फार्मिंग से जोड़ना शुरू कर दिया। जब महिलाएं मेडिसिनल फार्मिंग से जुड़ने लगे तो इसके साथ-साथ उनके पति और बेटे कभी काफी सहियोग मिलने लगा। वे बताती है कि हमारा लक्ष्य है कि हम पूरे परिवार को इस खेती से जोड़ दें। रीवा कहती हैं कि हमने पिछले हिम टू हम फार्मर प्रोड्यूसर लिमिटेड कंपनी के नाम से एक कंपनी का शुरुआत किए। वे बताती है कि हमारी कंपनी का मतलब क्या है कि हिम मतलब पुरुष और हम मतलब हम सभी महिलाएं। वे वहां के लोगों को ड्रैगन फ्रूट के बारे में बताते हैं। इस फ्रूट के बारे में सुनकर लोग काफी उत्सुक होने लगे। ड्रैगन फ्रूट और घास को उगाने के लिए ज्यादा पानी की आवश्यकता नहीं पड़ती थी। और इन दोनों का घरेलू भविष्य में काफी बढ़ने लगा था। या बताती है कि ड्रैगन फ्रूट का एक फल ऊना मैं 125 रूपए में मिलता है। और यही दिल्ली की बात की जाए तो दिल्ली में इस एक छोटी कीमत लगभग 300 रुपए हैं। यह बताती है कि लगभग तीन साल पहले यहां के लोग सिर्फ आलू मक्का से शिमला मिर्च के बारे में जानते थे। परंतु अब यह लोग ड्रैगन फ्रूट के बारे में भी जानने लगे हैं।

Dragon Fruit Farming

रीवा (Riwa) ने हिमाचल (Himachal) के महिलाओं को या बताया कि अगर वह अपने खेतों में शिमला मिर्च, टमाटर, आलू, मक्का जैसे फसल नहीं उगा सकती तो आप लोग ड्रैगन फ्रूट की खेती कर सकते हैं। इसके साथ-साथ हमने लोगों को जड़ी-बूटी के बारे में भी बताया। इन जड़ी बूटियों में हमने लोगों के पारिजात अश्वगंधा सहजन उगाने के लिए यहां के महिलाओं को काफी उत्सुक किए। यहां के 21 परिवार के महिलाएं मनरेगा से जुड़ गई। और इस की खेती करती थी इसके साथ-साथ इस काम में नवार्ड में भी हमारी बात की।

रीवा चाहती है कि यहां के किसानों का कमाई करने का जरिया बन जाए। यह यहां जैविक तरीके से खेती करते हैं। यह बताती है कि हमने वैसे गाय को गोद ले रखा है। जो गाय दूध नहीं देती है उस गाय के गोबर और मुत्र का उपयोग अपने खेतों में करते हैं। यह बताती है कि यह गाय दूध तो नहीं देती परंतु यह हमें खेतों में औषधीय लगाने के लिए हमारे खेतों की जरुरी खाद जैसे गोबर, गोमूत्र दे देती है। जिसे हम अपनी खेतों में सुखी घास, लस्सी को अपनी खेतों में इस्तेमाल करते हैं।