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80 साल के बाबा सड़क किनारे पराठा बेचते हैं, अपना और पत्नी का खर्च उठाते हैं: Patna

80 years old baba selling parantha for living

Patna: माता-पिता इश्वर द्वारा दिया बेहद खुबसूरत तोहफा है, जिसकी कदर हम सभी को करनी चाहिए। लेकिन आज के समय में अधिकांश लोग ऐसे हैं जो खुद की लाइफ इन्जॉय करने में इस कदर मग्न हैं कि उन्हें अपने माता-पिता की परवाह ही नहीं है। दूसरे शब्दों में कहें तो पैरंट्स को जिस उम्र में कंधों की तलाश होती है उस उम्र में बच्चे उन्हें बदहाल स्थिति में छोड़कर खुद का जीवन जीते हैं।

ऐसे में जिस उम्र में इन्सान को आराम करने की जरुरत होती है उम्र के उस पड़ाव में भी वे जीवनयापन करने के लिए सड़क किनारे कुछ-न-कुछ करते नजर आते हैं। इसी कड़ी में आज हम आपको एक ऐसे बुजुर्ग व्यक्ति के बारें में बताने जा रहे हैं जिनके बच्चों ने उन्हें पूछना बन्द कर दिया और आज आराम करने की उम्र में भी वे अपना गुजारा चलाना के लिए सड़क किनारें लोगों को खाना बनाकर खिलाते हैं। उनके बारें में जानकर आपको भी उनपर दया आ जाएगी।

80 वर्ष की उम्र में भी बेचते हैं सत्तू पराठा- वीडियो देखें

हम बात कर रहे हैं उपाध्याय झा (Upadhyay Jha) की, जिनकी उम्र 80 वर्ष है। आज वे उम्र के इस पड़ाव में भी जीविका के लिए पटना में स्टेशन रोड (Patna Station Road) पर चिरैया तार पुल (ChairaiyaTar Bridge) के नीचे पीलर नम्बर 28 और 29 के बीच सत्तू पराठा (Sattu Parantha) बनाकर बेचते हैं। उनके दो बच्चे हैं एक बेटा और एक बेटी। बेटे की शादी हो गई है और वह दिल्ली में अपने परिवार के साथ रहता है। आप समझ सकते हैं कि जिस माता-पिता ने उन्हें इतना काबिल बनाया उसी माता-पिता को अकेले छोड़कर वह खुद के बीवी बच्चों के साथ आराम की जिंदगी जी रहे हैं।

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50 वर्षों से बना रहे हैं सत्तू पराठा

80 वर्षीय बुजुर्ग बाबा शाम के 6 बजे से लेकर रात के 12 बजे तक अपनी दुकान खोलते हैं। वह अपनी दुकान पर सत्तू का पराठा बनाते हैं जिनमे उनकी 75 वर्षीय पत्नी भी हाथ बंटाती हैं। वे इस काम को 50 वर्षों से कर रहे हैं। अभी उनकी स्थिति ऐसी है कि उन्हें कान से भी कम सुनाई देती हैं, आंखों की रोशनी अब धुंधली होती जा रही है, साथ ही उनका शरीर भी अब आराम की तलाश कर रहा है लेकिन पेट भरने के लिए उन्हें इतनी उम्र में भी इस काम को करना पड़ रहा है।

सस्ती दरों पर परोसते हैं भोजन

शरीर से असमर्थ होने के बावजूद भी बाबा कोयले के चूल्हे पर मेहनत करके रोजाना सड़क किनार सत्तू पराठा (Sattu Parantha) बनाते हैं। कोयले के चूल्हे से निकलने वाली धुआँ से बाबा को सांस सम्बन्धी दिक्कतों का भी सामना करना पड़ता है। इसके बावजूद भी मेहनत करके इतनी महंगाई के बीच भी लोगों को सस्ती दरों पर खाना खिलाते हैं। बाबा के यहां आप 30 रुपये में एक प्लेट खाना खा सकते हैं जिसमें 4 पराठा और सब्जी शामिल है।

रोजाना महज 200-400 रुपये तक होती है कमाई

यदि उनके यहां आनेवाले ग्राहकों की बात करें तो रोजाना महज 10 से 15 लोग ही खाने आते हैं। उसमें भी कुछ लोग बहुत कम कीमत पर खाना खाकर भी उन्हें बिना पैसे दिए ही चले जाते हैं। कांपती हाथों से ही वे ग्राहकों के लिए रोज अलग-अलग सब्जी बनाते हैं ताकि लोगों को अच्छा लगे और वे उनके यहां खाने के लिए आएं। इस काम को करके उन्हें रोजाना 200 से 400 रुपये की कमाई होती है जिसमें बहुत ही मुश्किल से गुजारा हो पाता है।

वास्तव में बाबा (Upadhyay Jha) की जिंदगी काफी दयनीय स्थिति से गुजर रही है। ऐसे में यदि आप उनकी कुछ मदद करना चाहते हैं तो कुछ नहीं तो कम-से-कम उनके यहां खाना खाने जरुर जाएं और खाने का पैसा भी जरुर अदा करें क्योंकि बाबा बहुत ही आराम करने की उम्र में भी मेहनत करते हैं।

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