Sunday, December 10, 2023

मणिपुर की यह महिला ऊन से बना रही जूते का सोल, विदेशों तक होता है जूतों का एक्सपोर्ट: मुक्ता शूज

कठिनाईयां चाहे कैसी भी हों उन्हें परास्त कर सफलता हासिल करना हमारे की देश की महिलाएं बहुत अच्छी तरह जानती हैं। आज की हमारी यह कहानी एक ऐसी महिला की है जिनके पास कभी इतने पैसे नहीं थे कि वह अपने बेटी को जूता खरीदकर दे सकें और आज वही करोड़ो का साम्राज्य स्थापित कर चुकी है। इतना ही नहीं उन्हें हमारे देश का सम्मानित आवर्ड पद्मश्री भी प्राप्त है।

मोइरंगथेम मुक्तामणि देवी ( Moirangthem Muktamani Devi)

वह महिला हैं मणिपुर (Manipur) से ताल्लुक रखने वाली मोइरंगथेम मुक्तामणि देवी ( Moirangthem Muktamani Devi)। उनके सफलता के विषय में तो हर कोई जानता है परन्तु सफलता के पीछे की कठिनाईयों के विषय में बहुत कम लोग हीं जानते हैं। उनके लिए पद्मश्री सम्मान को हासिल करना सपना जैसा था, परन्तु यहां हकीकत होते हुए दिखा। हालांकि इसके लिए उन्होंने बहुत से कठिनाईयों का सामना किया और फिर सफलता की इबारत लिखकर सबके लिए उदाहरण बनी। -Padma Shri award to Muktamani Devi of Manipur for her work

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मात्र 16 वर्ष की उम्र में हुई शादी

मोइरंगथेम मुक्तामणि देवी ( Moirangthem Muktamani Devi) का जन्म 1958 में दिसम्बर में हुआ। उनके पिता की मृत्यु हो चुकी थी और उन्होंने अपनी बेटी का लालन-पालन स्वयं ही किया। वह मात्र 16 वर्ष की हुई थी तब तक वह वैवाहिक बंधन में बंध गई। इतनी कम उम्र में शादी होने के बावजूद भी उन्होंने अपनी सारी जिम्मेदारी बखूबी निभाई। -Padma Shri award to Muktamani Devi of Manipur for her work

परिवार चलाने के लिए किए कई कार्य

शादी के कुछ वर्षों के बाद उनके बच्चे हुए और आज उनके चार बच्चे हैं। अब उन्होंने परिवार चलाने के लिए बहुत से काम करना प्रारंभ किया। वह दिन में खेतों में काम किया करती थी एवं शाम को सब्जियां बेचा करती थीं। इसके अतिरिक्त वो रात में सोती नहीं थी और हेयरबैंड एवं झोले को बेचा करती थीं ताकि वित्तीय स्थिति मजबूत हो और घर खर्चा चल सके। -Padma Shri award to Muktamani Devi of Manipur for her work

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ऊन से बनाया जूते का सोल

एक बार की बात है जब उनकी दूसरी बेटी के जूते का सोल फट गया तब मुक्ता ने अपनी बेटी के लिए ऊन के सोल बनाए और तब उनकी बेटी वही जूते पहनकर विद्यालय जाने लगी। परंतु वह स्कूल जाने से डरती थी क्योंकि उन्हें डर था कि इस जूते को देख कर टीचर उन्हें डांटने न लगें। अगले दिन उनके टीचर ने उनकी बेटी को बुलाकर यह प्रश्न किया कि तुम्हारे ये जूते जिसने भी बनाए हैं, उनको बोलो कि मुझे भी ऐसे जूते बना दें। इसी घटना ने उनकी पूरी जिंदगी में परिवर्तन ला दी। -Padma Shri award to Muktamani Devi of Manipur for her work

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जूतों का विदेशों तक एक्सपोर्ट

वर्ष 1990 से 91 में मुक्ता ने अपने नाम पर एक शूज इंडस्ट्रीज का निर्माण किया, जिसका नाम उन्होंने “मुक्ता शूज़’ इंडस्ट्री रखा। इसके प्रमोशन एवं प्रोडक्शन के लिए उन्होंने ट्रेड फेयर्स का उपयोग किया। उन्होंने इसमें जमकर मेहनत की और उनका मेहनत सफल हुआ लोग उनके डिजाइन को काफी पसंद करने लगे जिस कारण इसकी डिमांड बढ़ने लगी। वर्तमान में मुक्ता लगभग हजारों से भी अधिक लोगों को जूते बुनने का प्रशिक्षण दे चुकी हैं। इनकी कंपनी हर उम्र के लोगों के लिए जूते का निर्माण करती है। उनके जूते हमारे देश ही नहीं बल्कि विदेशों में निर्यात के लिए जाती है। वे ऑस्ट्रेलिया, यूके, अफ्रीकी, मैक्सिको में अपने जूते एक्सपोर्ट करती हैं। -Padma Shri award to Muktamani Devi of Manipur for her work

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जूते बनाने में लगते हैं 3 दिन

हम सभी यह जानते हैं कि अगर हमारे देश की महिलाएं कुछ करना चाहती हैं तो उन्हें यह समाज आगे बढ़ने नहीं देता, मुक्ता के साथ भी ऐसा ही कुछ हुआ। आज भले ही वह सफलता की ऊंचाई पर पहुंच चुकी हैं परंतु उन्होंने बहुत सारी कठिनाईयों का सामना भी किया है। जूते बनाने का कार्य कोई आसान नहीं था एक जूते के निर्माण में लगभग 3 दिन का वक्त लगता है। वह बताती हैं कि हम जूते बनाने के लिए स्थानीय बाजारों एवं इम्फाल से ऊन मंगाते हैं। परंतु जो ऊन स्थानीय मार्केट में मिलते हैं उसकी क्वालिटी बेहतरीन नहीं होती जिस कारण जूता भी अच्छा नहीं बनता। उनका बजट इतना अच्छा नहीं था कि वह शहरों से ऊन मंगाए फिर भी उन्होंने अच्छे जूते के लिए काफी मेहनत किया और आज सफल हुई हैं। -Padma Shri award to Muktamani Devi of Manipur for her work

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जूते के निर्माण में करते हैं कई लोग कार्य

जूते की डिजाइन की जिम्मेदारी मुक्तामणि के ऊपर ही है बाकी अन्य कार्यों को पुरुष और महिलाएं मिलकर करती हैं। महिलाएं बुनाई करती हैं तो वहीं पुरुष जूतों के सोल बनाते हैं। कारीगर 1 दिन में लगभग सौ से डेढ़ सौ साल का निर्माण करते हैं जिसके लिए उन्हें 50 रुपए दिया जाता है। वहीं महिलाओं के जूता बुनने पर उन्हें 35 रुपए दिए जाते है। -Padma Shri award to Muktamani Devi of Manipur for her work

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जूते का मूल्य 1000 हजार रुपए है

मुक्ता के बेटे का नाम क्षेत्रिमायुम है जो बताते हैं कि बुनाई में अधिक मेहनत एवं वक्त लगता है। वह एक महिला को एक दिन का एक जूता बुनने का 500 रूपए देते हैं। वहीं उनकी कम्पनी द्वारा 1 दिन में 10 जूते तैयार करती है। जेनरेशन बदल रहा है इसलिए उनके कम्पनी में भी नए डिजाइन के जूते बनते हैं। पहले जूते के मूल्य 200 से 800 रुपए तक था और आज 1000 रुपए हैं। -Padma Shri award to Muktamani Devi of Manipur for her work

आज मुक्तामणि करोड़ों का साम्राज्य स्थापित कर चुकी हैं और सैकड़ों लोगों को रोजगार दे चुकी हैं। हमारे समाज के महिलाओं को मुक्तामणि से प्रेरणा लेना चाहिए और अपने पैरों पर खड़ा होना चाहिए। -Padma Shri award to Muktamani Devi of Manipur for her work