Sunday, December 10, 2023

पहाड़ी जमीन पर ड्रिप इरिगेशन के जरिए शुरू की खेती, आज कमाई के साथ दूसरे किसानों को कर रहे प्रेरित

पहले पहाड़ी तथा आदिवासी इलाकों में लोगों के लिए खेती करना बेहद कठिन काम था। क्योंकि यहां बारिश की कमी के कारण फसल अच्छे नहीं हो पाते थे और मिट्टी भी काफी कठोर हुआ करती थी। हालांकि ये समस्या आज भी है लेकिन लोग नई तकनीक का उपयोग कर खेती करने में सक्षम हो रहे हैं।

पहाड़ी इलाकों में खेती करना था मुश्किल

यह कहानी मध्य प्रदेश के आदिवासी जिला झाबुआ की है जहां किसानों का खेती करना बेहद कठिन काम था। खेती पूरी तरह बारिश के ऊपर ही आधारित रहती थी जिस कारण किसानों को हमेशा घाटे का सामना करना पड़ रहा था। रमेश बारिया जो कि यहां के निवासी थे वह अपनी खेती से काफी हताश हुए। वे चाहते थे कि उनकी खेती में उन्हें अच्छी-खासी आमदनी मिले परन्तु ये मुश्किल हो रहा था। -Drip Irrigation

शुरू की खेती

उन्होंने इसके लिए वर्ष 2010 में एनआईएपी केवीके वैज्ञानिकों से कांटेक्ट किया और फिर उन्होंने खेती शुरू की। उन्हीं के बदौलत वह सर्दी तथा बरसात के सीजन में भूमि के एक छोटे से हिस्से में सब्जी की खेती प्रारंभ की। जो यहां की खेती के लिए उचित था। उन्होंने यहां करेला लौकी स्पंज आदि उगाए। खेती में सफलता मिलने के बाद उनका मनोबल बड़ा और उन्होंने यहां नर्सरी खोली। फिर जब उन्हें मानसून में लेट होने के कारण पानी को लेकर समस्या आई तब वह हताश हुए। -Drip Irrigation

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सिंचाई की व्यवस्था के लिए किया वेस्ट बोतल का उपयोग

अब उन्होंने फिर एक बार एनआईएपी का दौरा किया और कृषि विशेषज्ञों से सलाह ली। उन्हें यह सजेशन दिया गया कि वह वेस्ट ग्लूकोस की पानी की बोतलों को एकत्रित करें और फिर सिंचाई की व्यवस्था का उपयोग करें। तब उन्होंने 20 रुपए प्रति किलोग्राम के हिसाब से ग्लूकोस की प्लास्टिक बोतल खरीदी एवं एक इनलेट बनाने हेतु उसके आधे भाग को काटा गया, फिर इस बोतल को पौधे के नजदीक टांग दिया गया। -Drip Irrigation

मिली खेती में सफलता

अब इन बोतलों में पानी डाल दिया गया और यह पानी बूंद-बूंद होकर पौधों पर गिरने लगा। वह अपने बच्चों से बोल देते कि स्कूल जाने से पूर्व तुम लोग इसमें पानी डाल देना। आज वह इस तकनीक की बदौलत 0.1 हेक्टेयर जमीन में लगभग 16000 रुपए मुनाफा कमाने में सक्षम रहे। -Drip Irrigation

मिला है सम्मान

अब उनकी खेती को देखकर अन्य किसान जागरूक हुए और उन्होंने भी इस तकनीक को अपनाकर खेती की जिससे उन्हें पानी की कमी महसूस नहीं होती। साथ ही प्लास्टिक की बोतलों से कचरे का ढेर नहीं लगता क्योंकि किसानों इसे एकत्रित कर अपने पौधों की सिंचाई के लिए रख लेते हैं। खेती में बेहतर कार्य के लिए रमेश को जिला प्रशासन तथा मध्य प्रदेश सरकार के कृषि मंत्री की तरफ से सराहना के प्रमाण पत्र प्राप्त है। -Drip Irrigation

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