मशरूम… मशरूम हमारे शरीर के लिए बहुत ही फायदेमंद होता है। इसमें विटामिन सी, पोटैशियम और फाइबर होता है जो हमारे रक्त संचार को सही रखता है। साथ ही यह हमें कैंसर से बचाता है। इतना ही नहीं यह हड्डियों को मजबूत करता है और प्रतिरोधक क्षमता को भी बढ़ाता है। अब बात इसकी खेती की करें तो दो सवाल उत्पन्न होते हैं, इसे कहां और कैसे उगाएं? इसके फायदे तो हम जान चुके अब इसे उगाने के तरीके को हम इस कहानी के माध्यम से जानेंगे।
यह कहानी बिहार के महिला की है जो मशरूम की खेती करती हैं। खेती के जरिए औरतों को रोजगार देती हैं। साथ ही ट्रेनिंग देती हैं यानी किसानों को यह सारी बातें सिखाती भी हैं। यह महिला 1 या 2 साल से नहीं बल्कि 10 सालों से यह कार्य कर रहीं हैं। आइये पढ़ते है बिहार की इस आत्मनिर्भर महिला की कहानी और इनसे सीखते हैं कि यह अपना कार्य कैसे करती हैं।
45 वर्षीय किसान राजेश्वर पासवान (Rajeshwar Paswa) जो Vaishali ज़िलें से ताल्लुक़ रखते हैं, उनका कहना है कि मैं 4 साल से मशरूम से जुड़ा हूं और यहां कार्यरत हूं। मुझे प्रत्येक महीने 8 हज़ार सैलरी मिलती है और इस कोरोना महामारी में भी मिली है। मुझे इस लॉकडाउन से कुछ ज्यादा दिक्कत नहीं हुई क्योंकि पैसे की कमी महसूस नहीं हुई।
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वैशाली की मनोरमा सिंह
Bihar के वैशाली (Vaishali) ज़िलें की रहने वाली मनोरमा सिंह (Manorma Singh) मशरूम (Mushroom) के उत्पादन में कार्य करती है, वह भी 10 वर्षों से। इन्होंने अपने साथ 100 महिला और पुरुषों को जोड़ रखा है। इन्हीं में से एक है राजेश्वर जिनके बारे आपने ऊपर पढ़ा। इस लॉकडाउन में भी वह और उनके साथ जुड़े सभी व्यक्ति कार्यरत हैं और उन्हें उनकी सैलरी भी मिल रही है। मनोरमा देवी के साथ काम करने वालों को हर माह के 2 तारीख को उनकी सैलरी मिल जाती है। 35 महिलाएं नियमित तौर पर कार्य करती और बाकी दिहाड़ी मजदूरी पर।
महिलाओं को दिया रोजगार
पहली बार इन्होंने अपने घर के पास एक खाली झोपड़ी में मशरूम उगाया। ठंडे के मौसम में इन्होंने 200 बैग रखें। अब यह अपने ही गांव या जिले में नहीं बल्कि हर जगह मशरूम उत्पादन, ट्रेनिंग इनके लिए खाद और बीज का भी यह खुद निर्माण करती हैं। यह Mushroom Spawm making, Button Mushroom spawm मेकिंग, Oyster Spawm making भी करती हैं। इस लॉकडाउन में इनके यहां ज्यादा नहीं लेकिन 5 kg से 6 kg मशरूम की उपज हुई है। पहले जब हमारे यहां सब नॉर्मल था तब इनके मशरूम शहरों में बिकने जाया करते थे, लेकिन अब यह नहीं बिक रहे। फिर इन्होंने आस-पास के गांव में इसे बेचना शुरू किया। गाड़ी पर मशरूम को रख पूरा दिन मशरूम बेचा जाने लगा। जो मशरूम बच गए उसके मुरब्बा और अचार बनाये जाने लगे। इन्हीं नियमों के चलते मनोरमा का कार्य रुका नहीं, जिसे सबको उनकी आमदनी भी मिलती रही।
आखिर कैसे हुई इस काम को करने की शुरुआत
मनोरमा शादी किसान परिवार में हुई। जब यह शादी के बाद घर आई तो जैसा हर किसी के ससुराल का माहौल नया होता है वैसा इन्हें भी लगा। यह अपने पति के साथ खेतों में जाती, तो इनके पति उन्हें हर चीज को बताते जिन्हें यह ध्यान से समझती। इन्होंने अपने ग्रैजुएशन की पढ़ाई मनोविज्ञान से संपन्न की है। मनोरमा ने बताया कि जब इनकी जिम्मेदारी कम हुई बच्चे थोड़े बड़े और समझदार हुए तब इन्होंने कुछ करने के बारे में सोचा। वर्ष 2010 में इन्होंने अपनी मशरूम लगाया और जब वह तैयार हुआ तो घर वालों को उसका स्वाद चखाया।
बिहार के मुख्यमंत्री से भी मिली हैं
इन्होंने पहले तो ट्रेनिंग लिया फिर इसका शुभारंभ किया। सरकार से इन्हें “नेशनल बागानी मिशन“ के द्वारा 15 लाख की राशि मिली। जिससे इन्होंने मशरूम के लिए 8 रूम और लैब बनाया। इन कमरों में एयर कंडीशनर मशीन है जिससे पूरे साल मशरूम को आसानी से उगाया जा सकता है। इनके इस रूम में लगभग प्रत्येक वर्ष 1 करोड़ का खर्च होता है। यह चाहती है कि सरकार इन्हें एक मार्केट का निर्माण कराय जहां यह मशरूम उत्पादन को बढ़ावा दे सकें। यह अपना सारा कार्य खुद करती हैं सरकार ने कोई मदद नहीं दी है। जब मुख्यमंत्री नीतीश कुमार से मिली थी इन्होंने ये सब बताया था। उस दौरान मुख्यमंत्री ने बोला कि मैं इसपर अमल करुंगा, लेकिन अब कुछ नहीं हुआ है।
खुद आत्मनिर्भर होना और गांव में लोगों को भी इसके तरीके बताने के लिए The Logically इस महिला शक्ति को सलाम करता है।
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