30 जनवरी 2021 को पुर्तगाल संसद में यूथेनेशिया(Euthanasia) यानि इच्छा मृत्यू संबंधी बिल पास कर दिया गया है। अब इस बिल पर राष्ट्रपति की सहमति के बाद इसे कानूनी वैधता मिल जाएगी। जिसके बाद पुर्तगाल इच्छा मृत्यू को लीगल(legal) करनें वाला यूरोप का चौथा और दुनिया का 7वां देश बन जाएगा।
लगभग सभी विकासशील देशों में इच्छा मृत्यू को कानूनी स्वीकृति व वैधता मिलना या न मिलना हमेशा से ही एक बहस का मुद्दा रहा है। आखिर ये यूथेनेशिया(Euthanasia) या इच्छा मृत्यू (Mercy Killing) क्या है ?, किन परिस्थितियों में इसकी मांग जायज़ है?, क्यों इसे वैध करनें की मांग हमेशा से उठती रही है ?, किन-किन देशों में इसे कानूनी स्वीकृति मिल गई है? आइये इस लेख के माध्यम से जाननें की कोशिश करते हैं।
यूथेनेशिया या इच्छा मृत्यू क्या है?
यूथेनेशिया या इच्छा मृत्यू जिसे मर्सी किलिंग(Mercy Killing) भी कहा जाता है का मतलब – किसी अत्यंत गंभीर व लाइलाज बीमारी से जूझ रहे मरीज या जो एक लंबे समय से कोमा में हो, उसे इस अवस्था व शारीरिक पीड़ा से मुक्ति दिलानें के लिए डॉक्टरों की सहायता से उसके जीवन का अंत करना है। इच्छा मृत्यू को मुख्यतः दो भागों में बांटा गया है – सक्रिय इच्छा मृत्यू (Active Euthanasia) और निष्क्रिय इच्छा मृत्यू (Passive Euthanasia)। जहां सक्रिय इच्छा मृत्यू में लाइलाज बीमारी से पीड़ित मरीज का अंत डॉक्टर की सहायता से ज़हर का इंजेक्शन देने जैसा कदम उठाकर किया जाता है। वहीं, निष्क्रिय इच्छा मृत्यू में लाइलाज बीमारी से पीड़ित मरीज जो एक लम्बे समय से कोमा में हो, उसके रिश्तेदारों की सहमति से उसका इलाज या उसके जीवन को बचानें वाले उपकरण (life support system) हटा दिये जाते हैं। हालांकि इच्छा मृत्यू का चाहे कोई भी रुप क्यों न हो उसे सदा से ही हत्या के रुप में देखा जाता रहा है।
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भारत को कितनी बार इच्छा मृत्यू संबंधी गंभीर मामलों का सामना करना पड़ा
- भारत में इच्छा मृत्यू का पहला मामला तब सामनें आया जब 1973 में मुबंई के केईएम अस्पताल(KEM Hospital of Mumbai) में अरुणा शानबाग (Aruna Shanbaugh) नाम की एक नर्स जो अस्पताल में ही रेप का शिकार हुई थी, 42 साल तक कोमा में रही। जिसके चलते जर्नलिस्ट पिंकी वीरानी नें सुप्रीम कोर्ट से अऱुणा के लिए इच्छा मृत्यू की मांग की थी। हालांकि, सुप्रीम कोर्ट से उसकी याचिका खारिज कर दी गई। इसी दौरान, 2015 को अरुणा की खुद ही मौत हो गई थी। इसके बाद SC नें पिंकी वीरानी की याचिका पर निष्क्रिय इच्छा मृत्यू को कानूनी करार दे दिया था।
-2005 में बिहार पटना के निवासी तारकेश्वर सिन्हा नें राज्यपाल से अपनी पत्नी कंचन देवी को इच्छा मृत्यू देनें के लिए याचिका दायर की जो कि साल 2000 से बेहोश थीं और एक शव मात्र बनकर रह गई थी, ऐसे में उनके लिए दया मृत्यू की मांग की गई थी।
- इसी प्रकार, साल 2008 में उत्तर प्रदेश के जीत नारायण द्वारा अपनें चार बच्चों जिसमें वे चारों गर्दन के नीचे लकवा मारनें जैसे असाध्य रोग से ग्रसित उनके लिए इच्छा मृत्यू की मांग की
-2001 में असंभव रोग से पीड़ित केरल निवासी बीके पिल्लई के लिए यूथेनिशिया की मांग की गई लेकिन केरल हाई कोर्ट नें इसकी अनुमति नही दी।
-2015 में कानपुर की एक महिला नें पीएम मोदी से अपनी बेटी के लिए एक्टिव यूथेनिशिया की मांग की जो मस्कयूलर डिइस्ट्राफी से ग्रसित थी, आर्थिक संकट के चलते बेटी का इलाज न करा पानें की स्थिति में महिला नें ये मांग की।
- इसके अलावा और भी इच्छा मृत्यू संबंधी केस सामने आये हैं। यहां तक कि कई बार एक लंबे अरसे तक डिप्रेशन या मानसिक तनाव से जूझ रहे लोग भी मर्सी किलिंग की डिमांड करते हैं1
भारत में यूथेनेशिया या इच्छा मृत्यू की स्थिति
भारतीय संविधान में हमेशा से ही इच्छा मृत्यू को असंवैधानिक कृत्य बताया गया है। आईपीसी (Indian Penal Code) की धारा 309 के तहत यह आत्महत्या के बराबर अपराध है। लेकिन इच्छा मृत्यू संबंधी उपरोक्त कईं मामलों के मद्देनज़र और केंद्र सरकार द्वारा बनाई गई कमिटी द्वारा विशेष परिस्थितियों में मरीज के life support system को हटा उसे इच्छा मृत्यू देनें को जायज़ ठहरा सुप्रीम कोर्ट से निष्क्रिय इच्छा मृत्यू की स्वीकृति की मांग की गई। जिसे साल 2018 में सुप्रीम कोर्ट के चीफ जस्टिस दीपक मिश्रा की अध्यक्षता वाली संविधान पीठ नें मरीज को एक गरिमापूर्ण व पीड़ा रहित इच्छा मृत्यू को लिविंग विल यानि जिंदगी की वसीयत और जीवन के अधिकार समान मौत के अधिकार के तहत एक स्ट्रीक्ट गाइडलाइंस के साथ मंज़ूरी दे दी।
कौन कर सकता है इच्छा मृत्यू की मांग
किसी भी असाध्य रोग से ठीक न होने कि परिस्थिति में स्वंय मरीज या उसका कोई निकटतम रिश्तेदार इच्छा मृत्यू की मांग कर सकता है।
इच्छा मृत्यू के गलत उपयोग पर भी उठते रहे हैं सवाल
भले ही भारतीय सुप्रीम कोर्ट नें पैसिव यूथेनिशिया (Passive Euthanasia) की मंज़ूरी दे दी हो लेकिन खुद कोर्ट नें इस बात की चिंता जताई कि – क्योंकि आजकल मध्यमवर्गीय परिवारों में बुज़ुर्गों के इलाज व उनकी देख-रेख को एक बोझ के रुप में समझा जाता है ऐसे में उनके लिए इच्छा मृत्यू की मांग कर या गैर कानूनी तरीके से डॉक्टर को कोई प्रलोभन देकर इस कानून का दुरुपयोग हो सकता है।
दुनिया के वो देश जहां इच्छा मृत्यू को कानूनी वैधता मिल चुकी है
वर्तमान में इच्छा मृत्यू को कानूनी वैधता देनें वाले देशों में अब तक नीदरलैंड, बेल्ज़ियम, कोलंबिया, लग्ज़मबर्ग, वेस्ट ऑस्ट्रेलिया, और कनाडा और अब पुर्तगाल के नाम शामिल हैं। हांलाकि यूरोप के कई देश अभी भी इसके खिलाफ हैं।
अमेरिका में भले ही इच्छा मृत्यू गैर-कानूनी हो लेकिन ओरेगन, वॉशिंगटन, और मोंटाना राज्यों में डॉक्टर की मदद से मरनें को स्वीकार कर लिया गया है।
स्विट्ज़लैंड में भी इच्छा मृत्यू गैर-कानूनी है लेकिन सुई लेकर आत्महत्या करनें की परमिशन है।
क्या कहती है JAMA की रिपोर्ट
यूथेनिशिया और सुसाइड की गणना करनें वाली वार्षिक पत्रिका JAMA(Journal of American Medical Association) के मुताबिक हर साल तकरीबन 0.3% से लेकर 4.6% के बीच इच्छा मृत्यू या डाक्टर सहायता प्राप्त (Physician Assisted Suicide, PAS) की मांग करते हैं। जिसमें कि यूथेनिशिया को वैधता मिलनें के बाद से और वृद्धि ही आई है।