बच्चों को देश का भविष्य कहा जाता है ! बच्चों की स्थिति से देश के आगे की स्थिति और हालत तय होती है ! आज अभाव और सुविधा ना मिल पाने के कारण देश में ऐसे कई बच्चे हैं जो पैसे कमाने के लिए जद्दोजहद कर रहे हैं ! उन पर या तो अपने परिवार चलाने की जिम्मेदारी है या फिर अज्ञानता के कारण वे खुद को इन पेशो में संलग्न किए हुए हैं ! ये सारे परिदृश्य व्यथित करने वाला है ! आंध्रप्रदेश की रहने वाली शांता सिन्हा बेहद नेकदिल महिला हैं जिन्होंने बर्बाद होते देश के भविष्य को सँवारने हेतु अपना जीवन लगा दिया ! बाल मजदूरी , बच्चों के अधिकार के लिए लड़ते हुए शांता जी ने अब तक लाखों बच्चों को उस दलदल से निकाला है ! आईए जानें उनके और उनके कार्यों के बारे में…
शांता सिन्हा आंध्र प्रदेश के नेल्लोर की रहने वाली हैं ! हैदराबाद में रहते हुए उन्होंने उस्मानिया विश्वविद्यालय से मास्टर की डिग्री प्राप्त की ! इसके बाद वे नई दिल्ली जाकर जेएनयू से पीएचडी की पढाई पूरी की ! इसी दौरान उन्होंने अपने साथ हीं पढ रहे एक लड़के से शादी की ! उन्हें आगे की पढाई पूरी करनी थी तो अपने नवजात बच्चे को अपने माता-पिता के पास छोड़कर चली गईं ! वापस आने के बाद उनकी नियुक्ति उस्मानिया विश्वविद्यालय में हो गई ! कुछ वर्ष बीते थे कि शांता पर दुखों का पहाड़ सा टूट पड़ा ! अचानक उनके पति इस दुनिया से चल बसे ! इस घटना ने शांता जी पर जिम्मेदारियों का बहुत बड़ा बोझ आ गया ! शांता ने पढाई के प्रति अपने जुनून को खत्म नहीं होने दिया ! उन्हें ग्रामीण राजनीति पर पढाई करनी थी ! इसके लिए उन्होंने गाँवों में जाना शुरू किया ! इस विषय-वस्तु को वे अपने विश्वविद्यालय का एक अंग बनाना चाहती थीं ! वह श्रमिक विद्यापीठ जो केन्द्र सरकार द्वारा चालित एक श्रमिक शिक्षा कार्यक्रम था से जुड़ने के लिए आवेदन भी किया !
इस तरह आया उन्हें बच्चों और लोगों को बंधन से मुक्त करने का विचार
वह निरन्तर रूप से गाँवों में जाने लगी ! हर शाम वह गाँव जातीं , वहीं रहती और वहीं से विश्वविद्यालय जातीं ! गाँव में वे दलित समुदाय के लोगों और बंधुआ मजदूरों से मिलीं ! उनलोगों की स्थिति को देखकर वे बहुत दुखी हुईं जिससे उनके अंदर विचार आया कि उनलोगों को बंधन से मुक्त करवाना पड़ेगा !
शुरूआती तौर पर कार्यों का आरंभ
शांता सिन्हा अब उन लोगों को बंधन से मुक्त करवाने हेतु संकल्पित हो चुकी थीं वे इसके लिए प्रयास करने शुरू करना चाहती थीं ! उसी क्रम में उनका एक दोस्त जो निकट के जिले में हीं इसी मुद्दे पर कार्य कर रहा था ! उन्होंने अपने दोस्त द्वारा किए जा रहे कार्यों को बखूबी देखा और जाना ! इसके बाद वे अपने दोस्त से मदद मांगी ! लोगों को बंधन से मुक्त करने के लिए उनलोगों को एकत्रित करना शुरू किया साथ हीं अपने पढाने के कार्य को भी जारी रखा ! धीरे-धीरे एक संगठन तैयार करने लगी और लोगों को उनके अधिकारों के प्रति और मजबूत करने करने लगी ! श्रमिक विद्यापीठ में कार्य करते हुए किसानों को मुआवजे मिलने हेतु , महिलाओं को मजदूरी तय करने के लिए व अन्य लोगों को मिलने वाले वेतन हेतु वे उन्हें श्रम अदालत ले जाने लगीं ! इनसभी कार्यों के दौरान उनका श्रमिक विद्यापीठ में कार्यकाल समाप्त हो गया !
खुद के ट्रस्ट की स्थापना कर कार्यों को जारी रखा
श्रमिक विद्यापीठ में कार्यकाल समाप्त होने के बाद शांता ने खुद “मममीदिपुङी वेंकटारागैया फाउंडेशन” की शुरूआत की ! इसके माध्यम से वे गरीब बच्चों की शिक्षा और उनके भविष्य निर्माण हेतु कार्य कर रही हैं ! वह उन बंधुआ मजदूरों और बाल मजदूरी में लिप्त बच्चों को किसी भी कीमत पर आजाद करवाना चाहती थीं ! इसके लिए वह कुछ ऐसा बिल्कुल भी नहीं करना चाहती जिससे उन क्षेत्रों में उनके पहल के लेकर कोई ज्यादा तनाव हो ! इसलिए वे गाँव-गाँव जाकर लोगों को इस कार्य से सहमत करवाने लगी ! लोगों को इसके प्रति जागरूक करना शुरू किया कि यदि कोई बच्चा विद्यालय से बाहर है तो वह एक बाल मजदूर है ! बच्चों को आजाद करवाने के बाद मुख्य समस्या उनके लिए रहने और पढाई का पूर इंतजाम करनी की थी लेकिन उनकी उम्र के हिसाब से ज्ञान और शिक्षा में काफी अंतर था ! सारी बात को ध्यान में रखते हुए उन्होंने “ब्रिद कोर्स क्लास” की शुरूआत की !
बृहद स्तर पर कार्यों का क्रियान्वयन
निरन्तरता से उन बच्चों के बेहतरी हेतु कार्य करते हुए 20 वर्षो में लगभग 60000 से भी अधिक बच्चों को शिक्षित किया है ! इन बच्चों को पढाने का जिम्मा शिक्षकों को है ! इस ट्रस्ट के अंदर आज 3000 स्कूली शिक्षक कार्य कर रहे हैं ! एक चैनल के साथ इंटरव्यू में शांता जी ने बताया कि 2017 तक इस ट्रस्ट में लगभग 86000 स्वयंसेवक हैं ! 10 लाख से भी अधिक बच्चों को बाल मजदूरी के दलदल से निकाला जा चुका है ! शांता जी के इस अथक परिश्रम के कारण आज 168 गाँव बाल श्रम से मुक्त हैं !
पुरस्कार व सम्मान
बाल मजदूरी के दलदल में फँसे बच्चों को उस दलदल आजाद कर उनमें शिक्षा संचार से बेहतरीन परिवर्तन करने वाली शांता सिन्हा जी को 1998 में तत्कालीन भारत सरकार ने पद्मश्री सम्मान से सम्मानित किया ! 2003 में उन्हें “अल्बर्ट शंकर अंतर्राष्ट्रीय पुरस्कार” मिला ! इस उल्लेखनीय कार्य करने के फलस्वरूप वे मैग्सेस पुरस्कार भी प्राप्त कर चुकी हैं ! उनके द्वारा किए जा रहे कार्यों के असरकारक प्रभाव को देखते हुए 2005 में तत्कालीन सरकार ने बाल अधिकार अधिनियम पारित किया ! इसके अंतर्गत बाल अधिकार संरक्षण हेतु एक राष्ट्रीय आयोग बनाया गया जिसके पहले अध्यक्ष के तौर पर शांता सिन्हा जी को नियुक्त किया गया !
शांता सिन्हा ने समाज के एक ऐसे मुद्दे को अपना जीवन लक्ष्य बनाया जिस पर लोग प्राय: उदासीन हीं रहते हैं ! बाल मजदूरी में फँसे बच्चों को उससे निकालकर , उनमें शिक्षा संचार से उनकी जिंदगी प्रकाशित करने के उनके प्रयास सदियों तक लोगों के लिए एक प्रेरणा के रूप में जीवित रहेंगे ! Logically शांता सिन्हा जी और उनके कार्यों को कोटि-कोटि नमन करता है !