उत्तर प्रदेश के लखीमपुर खीरी में आदिवासी समुदाय की महिला जिनका नाम आरती थारू है। वह सिर्फ पांचवीं पास हैं और आज वे थारू समुदाय की 10 हजार महिलाओं को हैंडीक्राफ्ट कला के गुर सिखाकर रोजगार मुहैया करा चुकी हैं। उनके इस काम के लिए उन्हें कई नामी पुस्कारों से सम्मानित किया गया है।
छुप-छुप कर आरती ने पांचवी तक पढ़ाई की
मंगलपुरवा में आरती का जन्म हुआ था और उनके गांव के माहौल में लड़कियों के पास आजादी का कोई संविधान नहीं होता था। आरती को बचपन से पढ़ने-लिखने की बहुत शौक़ था, लेकिन उनके बाबा ने उनको पढ़ने ही नहीं दिया। जब भी वह ज़िद करती तो उनके बाबा यही कहते की शादी के बाद तो उनको चुल्हा चौका ही फूंकना है, तो पढ़कर क्या करोगी? फिर भी उन्होंने छुप-छुप कर पांचवी पास की। जिस दिन उनके बाबा को मालूम पड़ जाता कि आरती स्कूल गई है तो उस दिन घर पर वह आरती को मारने के लिए डंडा संभाल कर रखते थे।
इसी माहौल में उन्होंने अपना बचपन तो काट लिया, लेकिन उनको उनकी जवानी पहाड़ जैसी लगने लगी। आरती आपस में चार बहनें और एक भाई थे। इसके बावजूद उनका परिवार समाज के ताने-बानों में फंसा था। पर आरती के पिता के विचार बहुत अच्छे थे, यई वजह थी कि वे मानते थे कि लड़कियों की शादी जल्दी नहीं होनी चाहिए बल्कि उन्हें पढ़-लिखकर कुछ काम करना चाहिए।
30 की उम्र में हुई आरती की शादी
जब तक आरती की शादी नहीं हुई तब गांव वालों के लिए वह किसी ‘बुरी औरत’ से बुरी नहीं थी। आरती के गांव में रिवाज था कि लड़की पांच साल की हो जाए तो उसका कन्यादान कर दो, लेकिन उन्होंने 30 की उम्र में आकर शादी की। और अब उनका पता लखीमपुर खीरी जिला मुख्यालय से लगभग 100 किलोमीटर दूर पलिया ब्लॉक का गोबरौला गांव है।
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कुछ यूं शुरू हुआ आरती का सफर
शादी से पहले आरती रोज लोगों के तानों को पीती थी। एक दिन साल 1997 में जनजाती परियोजना कार्यालय में उनका जाना हुआ। वहां थारू बच्चों के लिए सिलाई की ट्रेनिंग होती थी। उन्होंने ने भी वहां सीखना शुरू किया। उस समय उन्हें डेढ़ सौ रुपए मिलते थे। सीखते-सीखते आरती मास्टर ट्रेनर बन गई। इसके बाद 2008 में आरती विश्व प्रकृति निधि भारत (WWF) एवं टाईगर रिजर्व से जुड़ी। उनका इनसे जुड़ना भी ऐसे हुआ कि उनके घर में एक ही हैंडलूम था जिस पर वह काम कर रही थी और फिर एक बार दुधवा नेशनल पार्क (डब्लूडब्लूएफ) की एक टीम आरती के घर विजिट करने आई। टीम को उनका काम पसंद आया और उन्होंने आरती को 10 महिलाओं का ग्रुप बनाने को कहा जिसके बाद टीम उनकी मदद करेगी।
आरती ने रानी लक्ष्मीबाई वीरता और नारी शक्ति सम्मान अपने नाम किया
2015 में डीएम गौरव दयाल की पत्नी अपने हस्बैंड के साथ आरती के गांव में घूमने आईं। उन्हें थारू लोगों का जीवन देखना था। यहां आने के बाद उन्होंने आरती का काम देखा और उन्होंने तुरंत उनकी मदद की। उन्होंने आरती को इस काम में महिलाओं को जोड़ने की सलाह दी। आरती को अपने साथ उन महिलाओं को जोड़ना था, जिनके पास बीपीएल कार्ड हो, लेकिन उस दौरान सभी महिलाओं के पास यह कार्ड नहीं था।
दूसरा, की पुरुष समाज महिलाओं को आगे बढ़ने ही नहीं देना चाहता था। फिर आरती ने डीएम साहब को ये परेशानी बताई और उन्हें बिना बीपीएल कार्ड के समूह बनाने की इज़ाजत मिल गई। इसके बाद आरती ने 508 महिलाओं को रोजगार दिलाया। इस उपलब्धि के बाद उनको 2016 में रानी लक्ष्मीबाई वीरता पुरस्कार दिया गया। अब आरती तेजी से महिलाओं के समूह बना रही है और उन्होंने उत्तर प्रदेश राष्ट्रीय ग्रामीण मिशन के अंतर्गत 350 स्वयं सहायता समूह बनाए। आरती ने एक जनपद एक उत्पाद के अंतर्गत दो हजार महिलाओं को जोड़ा तो पिछले साल आठ मार्च को उत्तर प्रदेश सरकार ने नारी शक्ति पुरस्कार दिया।
44 गांव की महिलाओं ने दिया आरती का साथ
आरती के पलिया ब्लॉक में थारू समुदाय के 46 गांव हैं और आज उनके पास 44 गांव की महिलाएं जुड़ी हैं। आज कुल 10 हजार महिलाएं अपने-अपने घरों में कुटीर उद्योग लगाकर काम कर रही हैं जिसके चलते आरती को नारी शक्ति पुरुस्कार राष्ट्रपति की तरफ से इसी साल मिला है। वह दरी, थारू पेजवर्क, थारी कसीदाकारी, मूंज, जूट आदि के प्रोडक्ट्स बनाती हैं।
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दिल्ली से लेकर लखनऊ तक आरती को मिली पहचान
अपने काम की वजह आज आरती पूरा भारत घूम रही है। पहली बार वह गोवा फ्लाइट में बैठकर गई। पहली बार फ्लाइट से ट्रैवल करने पर उनको डर लग रहा था। वह एअरपोर्ट देखकर ही चौंक गई थी। अब आरती को दिल्ली, राजस्थान, जयपुर, लखनऊ सभी जगह उनको उनके प्रोडक्ट्स के साथ बुलाया जाता है।
आरती का सीखना आज भी जारी है
आरती के दो बेटे हैं और उनके पति भी उनके साथ ही काम करते हैं। हर महिला को वह यही कहना चाहती है कि काम करना जरूरी है। आर्थिक रूप से स्वतंत्र होने पर महिलाएं अपने दम पर देश नहीं विदेश भी घूम सकती हैं। अगर मन में सच्ची मेहनत और विश्वास हो तो उनके सारे काम पूरे होंगे। आरती को पहले थारू बोलनी आती थी, फिर उन्होंने हिंदी सीखी अब वह इंग्लिश बोलने की कोशिश करती है। सफलता के साथ-साथ उनकी सीखने की प्रक्रिया भी तेजी से चालू है।
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