आपने हिंदी साहित्य के महान कवि, सोहन लाल द्विवेदी के द्वारा लिखी गई यह पंक्ति तो सुनी हीं होगी।
“लहरों से डर कर नौका पार नहीं होती।
कोशिश करने वालों की हार नहीं होती!”
इस पंक्ति को चरितार्थ किया है, चेन्नई (Chennai) के पल्लवरम के रहने वाले आसिफ अहमद (Asif Ahmed) ने, जिन्होंने अपने आर्थिक हालात सही नहीं होने के कारण मजबूरन अपनी पढाई छोड़ दी लेकिन अपने हौसलें को मजबूत रखा और परिवार से चार हज़ार रूपये लेकर ठेले पर बिरयानी बेचने का कारोबार शुरू कर दिया और आज उनका सालाना टर्नओवर 40 करोड़ के पार है।
पिता के नौकरी से सस्पेंड होने के बाद बिगड़ी घर की स्थिति
बता दें कि, आसिफ (Asif Ahmed) चेन्नई (Chennai) के बहुत हीं सामान्य परिवार से ताल्लुक रखते हैं। उनके पिता एक सरकारी कर्मचारी थे, जिन्हे नौकरी से सस्पेंड कर दिया गया। जिसके बाद इनके घर की स्थिति बिगड़ने लगी और परिवार की स्थिति सुधारने के लिए मजबूरन आसिफ को अपनी पढ़ाई छोड़ने पड़ी और महज 12 साल की उम्र से काम करना शुरू करना पड़ा।
कई कारोबार में आजमाया अपना हाथ
आसिफ (Asif Ahmed) जब 12 साल के थे, तभी से न्यूज़ पेपर की डिलीवरी और पुराने किताब बेचकर पैसे कमाते थे। फिर ज्यादा पैसा कमाने के लिए उन्होंने कई कारोबार में अपनी क़िस्मत आजमाया।
बता दें कि, आसिफ ने ज्यादा पैसा कमाने के लिए महज 14 साल की उम्र में चमड़े के जूते का एक कारोबार शुरू दिया, जिसमें शुरुआती दौर में उन्हे सफलता भी मिली और उन्होंने इसमें एक लाख तक की कमाई किया लेकिन कुछ ही दिनों के बाद चमड़ा उद्योग मंडी के दौर में चला गया और आसिफ का कारोबार भी बंद हो गया।
बचपन से ही खाना पकाने का शौक, जिसे दिया कारोबार का रूप
आसिफ ने बताया कि, बचपन से हीं उन्हे खाना पकाने बहुत शौक था, जिसे आगे चलकर उन्होंने करोबार का रूप दे दिया। सबसे पहले वह एक बिरयानी विशेषज्ञ के यहाँ सहायक के रूप में शामिल हुए, जो शादियों और अन्य स्थानीय कार्यक्रमों में काम किया करते थे, लेकिन कुछ हीं समय बाद उन्होंने इस नौकरी को छोड़ खुद बिरयानी का ठेला लगाना शुरू कर दिया।
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लगाया खुद का बिरयानी का ठेला
आसिफ को हमेशा से एक अच्छी नौकरी की तलाश थी इसलिए उन्होंने एक एजेंट को 35 हज़ार रुपये दिया ताकि वे उनका नौकरी लगा दे। फिर वे उस एजेंट के कहने पर मुम्बई में नौकरी करने के लिए पहुंचे, लेकिन उनके मुम्बई पहुंचते हीं वह एजेंट पैसे लेकर भाग गया और उन्हें वापस चेन्नई लौटना पड़ा।
अपनी बैंक सेविंग्स के पैसों से लगाया खुद का बिरयानी का ठेला
आसिफ, चैन्नेई वापस लौट कर 4000 रुपये की अपनी बैंक सेविंग्स से खुद का बिरयानी का एक ठेला लगाए और घर से प्रतिदिन बिरयानी बनाकर उसे बाज़ार में बेचने जाया करते थे। फिर धीरे-धीरे उनके द्वारा बनाए गए बिरयानी के टेस्ट लोगों को खूब पसंद आने लगा और उनकी बिक्री तीन महीने के भीतर ही प्रतिदिन 10 से 15 किलो के पार हो गया।
किराए पर लिया छोटा सा दुकान
इस कारोबार से अच्छी कमाई होने के बाद साल 2002 में उन्होंने (Asif Ahmed) एक छोटा का दुकान किराये पर लिया और उस दुकान का नाम “आसिफ बिरयानी” दे दिया। फिर तीन साल बाद उन्होंने 1500 वर्ग फुट क्षेत्र में एक बड़ा आउटलेट खोला, जहां उन्होंने 30 लोगों को काम पर रखा।
बैंक लोन की मदद से आठ रेस्टोरेंट खोला
आसिफ (Asif Ahmed) ने बैंक लोन की मदद से आठ और रेस्टोरेंट खोले लेकिन इसके बाद इनके परिवार में मतभेद शुरू हो गया। जिस वजह से उन्होंने दो रेस्टोरेंट अपनी माँ और दो अपने भाइयों के नाम कर दिया।
सालाना टर्नओवर है आज 40 करोड़ के पार
आज के समय ने “आसिफ बिरयानी प्राइवेट लिमिटेड” का टर्नओवर 40 करोड़ के पार हो चुका है। आसिफ (Asif Ahmed) की यह मेहनत और जुनून भरी कहानी से लोगों को बहुत प्रेरणा मिल रही है।
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