हर कोई पढ़ाई कर के अच्छी खासी नौकरी करने की चाह रखता है। अगर नौकरी अच्छी-खासी होगी तो तनख्वाह भी अच्छी मिलेगी जिससे हमारा परिवार भी खुश रहेगा और साथ में हम भी। लेकिन आजकल जो भी हो रहा है वह इसके बिल्कुल विपरीत है। पढ़ाई तो सभी कर रहे हैं लेकिन अब हर कोई पढ़ाई कर के जॉब करना नहीं चाहता बल्कि खुद का व्यापार या खेती करने का भी लोग शौक़ रख रहें हैं। अधिकतर लोगों की रुचि खेती में बढ़ गई है। आज की यह कहानी ऐसे इंसान की है जो मुंबई से मल्टीनेशनल कंपनी की जॉब छोड़ गांव में आकर खेती करने लगे और आज वार्षिक कमाई 25 लाख से भी अधिक कर रहें हैं।
अभिषेक कुमार का परिचय
अभिषेक कुमार (Abhishek Kumar) औरंगाबाद (Aurangabad) के एक छोटे से बरौली (Barauli) गांव के निवासी हैं। यह मुम्बई (Mumbai) में मल्टीनेशनल कंपनी में कार्यरत थे। इस कम्पनी में इन्हें तनख्वाह भी अच्छी मिल रही थी और ज़िंदगी की गाड़ी भी अच्छे रफ़्तार में चल रही थी। तब इन्होंने निश्चय किया कि अब गांव जाकर खेती करेंगे। फिर साल 2011 में अपने गांव आएंगे। गांव आकर इन्होंने मात्र 20 एकड़ भूमि में खेती करने लगें। यह अपने खेतों में लेमन ग्रास, धान और गेंहू की खेती करतें हैं। इनसे लगभग 2 लाख से अधिक किसान संपर्क में हैं। इनकी वार्षिक कमाई 25 लाख तक है।
अभिषेक की पढ़ाई
इन्होंने अपनी पढ़ाई नेतरहाट (Netarhat) स्कूल से संपन्न की है। फिर यह आगे की पढ़ाई के लिए पुणे (Pune) गए और वहां से एमबीए किया। वर्ष 2007 में इनकी नौकरी बैंक में लगी। उन्होंने लगभग यहां 2 वर्षों तक काम किया। तत्पश्चात यह मुंबई गये। वहां इन्हें 11 लाख के पैकेज पर नौकरी मिली और उन्होंने उसे ज्वाइन किया। तकरीबन 1 वर्ष तक इस काम को इन्होंने किया। जब यह नौकरी कर रहे थे तो वहां के गार्ड के बारे में बहुत कुछ जान गए थे। जो गार्ड था वह बहुत अच्छे घर से था। लेकिन अपना जीवन यापन करने के लिए उसने मुंबई का रास्ता चुना और यहां आकर गार्ड की नौकरी करने लगा। फिर उन्होंने निश्चय किया कि मैं कुछ ऐसा करूंगा जिससे लोगों को अपने गांव से दूसरे शहर में आकर नौकरी करने की जरूरत ना पड़े।
अभिषेक गांव लौटे
वर्ष 2011 में अपने गांव आए लेकिन जब इन्होंने अपने घर वालों से खेती करने के बारे में बताया तो परिवार वालों ने इन्हें बहुत कुछ सुनाया और किसी ने समर्थन नहीं किया। गांव में जब यह बात लोगों को पता चली कि यह खेती करना चाहते हैं तो गांव के लोगों ने कहा कि पढ़े लिखे होने का क्या फायदा जो तुम यह खेती करोगे। फिर भी इन्होंने अपने हौसले को कायम रखा और खेती में लग गये। वैसे तो इनके दादा जी और पिताजी खेती किया करते थे तो उन्हें यह देखते थे। वहां से इन्हें कुछ जानकारी थी और फिर कुछ जानकारी सोशल मीडिया की तरफ से इन्होंने इकट्ठा की और अपने कार्य का शुभारंभ किया।
पहले साल हुआ 4 लाख का फायदा
इन्होंने शुरुआती दौर में जरबेरा के फूल को अपने खेतों में लगाया। पहली बार में ही सफलता हासिल हुई और लाखों की कमाई हुई। फिर इन्होंने फूलों के साथ-साथ सब्जियों को भी खेतों में लगाया। फूलों में इन्होंने लेमन ग्रास रजनीगंधा और सब्जियों में मशरूम आदि को लगाया। उन्होंने बताया कि अगर हमें खेती करना है तो सबसे पहले समझ बूझ कर करना पड़ेगा। अगर हम देखते हैं कि टमाटर को उसके सीजन में उचित मूल्य नहीं मिल रहा तो उसे सावधानी पूर्वक रखकर अगले टाइम में बेचा जाए तो अधिक मुनाफा होगा।
नहीं रहा सफर आसान
अभिषेक के लिए यह सफर आसान नहीं था। वर्ष 2011 में इनके साथ एक दुर्घटना हुई। इन्हें सड़क एक्सीडेंट का सामना करना पड़ा फिर इन्हें वैशाखी के सहारे की मदद पड़ी।
मिलें हैं पुरस्कार
वर्तमान में अभिषेक 20 एकड़ भूमि पर खेती कर रहे हैं और इन्होंने लगभग 500 से भी अधिक व्यक्तियों को रोजगार से जोड़ा है। इन्हें अपनी खेती के लिए बिहार सरकार की तरफ से पुरस्कार मिला है और वर्ष 2016 में इन्हें हमारे देश के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने भी सम्मानित किया है। इतना ही नहीं इन्होंने एक ग्रीन टी किस्म तैयार किया है। जिसका नाम “तेतर” है। इस चाय के ग्राहक हमारे पूरे देश में मौजूद है और इसका डिमांड अत्यधिक मात्रा में है।
अच्छी नौकरी छोड़, लोगों के ताने सुन, बैशाखी का सहारा लिये, बग़ैर हार माने जिस तरह इन्होंने खेती कर अधिक व्यक्तियों को रोजगार से जोड़ा वह कार्य सराहनीय है। The Logically अभिषेक को उनकी खेती के लिए सलाम करता है।