इस बात से हम सभी भली-भांति परिचित भी हैं कि धान, गेहूं की अपेक्षा सब्जियों का उत्पादन में अधिक मुनाफा है। यह इस बात पर भी निर्भर करता है कि खेती करने में कौन सी तकनीक का इस्तेमाल हो रहा है। आजकल ज्यादातर लोग धान, गेहूं जैसे अनाजों की फसल न उगा कर सब्जियों की खेती अधिक मात्रा में करने लगे हैं। क्यूंकि सभी हरी-भरी साग-सब्जियों का सेवन करना चाहते हैं। सब्जियों में यदि बात हो लौकी की तो उसके फायदे बहुत है। यह मधुमेह रोगी के लिए बहुत लाभदायक होता है तथा यह पाचन शक्ति को भी दुरुस्त करता है।
आज हम आपको ऐसे हीं किसान के बारें में बताने जा रहें हैं जिसने लौकी की खेती करने के लिए सिर्फ 15 हजार रुपये खर्च कर के 1 लाख रुपये की आमदनी कर रहा है। आइए उस किसान से समझते हैं लौकी की खेती करने के तरीके जिससे मुनाफा अधिक हो सके।
अम्बिका प्रसाद रावत सिगहा गांव के एक किसान है। पहले बाराबंकी क्षेत्र के किसान सिर्फ धान, गेहूं और मोटे अनाजों को ही अपने आमदनी का स्रोत मानते थे। लेकिन अब वह अनाजों के अलावा लौकी, टमाटर और आलू जैसी सह फसलों की खेती कर के अच्छी-खासी आमदनी कर रहे हैं। इसके साथ ही वह जिले का नाम भी रोशन कर रहे हैं।
जिला मुख्यालय से 38 किलोमीटर दूर उत्तर दिशा में फतेहपुर और सूरतगंज के ब्लॉक के छोटे किसानों के लिए आलू, लौकी और टमाटर जैसी सह फसल एक तरह से वरदान की तरह असरकारी सिद्ध हो रही है।
लौकी की फसल वर्ष में 3 बार उगाई जाती है, जायद, खरीफ और रबी में लौकी की फसल ली जाती है। मध्य जनवरी में जायद की बुआई, मध्य जून से प्रथम जुलाई तक खरीफ की तथा सितम्बर अंत और अक्तूबर आरंभ में लौकी की खेती की जाती है।
लौकी करने की विधि।
अम्बिका प्रसाद रावत के अनुसार, जायद की अगेती बुआई के लिए मध्य जनवरी लौकी की नर्सरी की जाती है। उसके बाद मिट्टी को भुरभुरी कर के एक मीटर चौड़ी क्यारी बनाई जाती है और उसे जैविक खाद मिला कर के तैयार किया जाता है। लौकी की नर्सरी करीब 30 से 35 दिनों मे तैयार हो जाती है।
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उन्होंने आगे बताया कि नर्सरी तैयार हो जाने के बाद 10 से 12 फीट की दूरी पर पंक्तियाँ बनाई जाती है। उसमें पौधे से पौधे की दूरी 1 फीट रखी जाती है। जिसमें टमाटर की फसल को भी आसानी से उगाया जा सकता है। टमाटर की खेती में लौकी की फसल को झाड़ बनाकर उस पर फैला दिया जाता है। इससे फायदा यह होता है कि कम लागत में दोनों फसलों का उत्पादन अच्छा होता है।
रामचन्द्र मौर्य ने बताया कि, “कुछ किसान अक्तूबर में आलू की बुआई के वक्त आलू की 8 लाईनों के बाद एक पंक्ति उन्नत प्रजाति के देशी लौकी की बुआई करते हैं। जनवरी के माह में आलू की खुदाई होती उसके बाद फरवरी माह के अंत में लौकी का उत्पादन शुरु हो जाता है। यह सह फसली खेती किसानों को काफी पसंद आ रही है।” फसल सम्माप्त होने पर लौकी की लताओं को हलों से जुताई करके मिट्टी में मिला दिया जाता है। इससे मिट्टी की उर्वरा शक्ति में बढोतरी होती है।
शोभाराम मौर्य कस्बा बेल्हारा के किसान हैं। उन्होंने बताया कि, ” एक एकड़ में लौकी की खेती करने में 15 से 20 हजार की लागत आती है। एक एकड़ में करीब 70 से 90 क्विंटल लौकी का उत्पादन होता है। मार्केट मे अच्छा मूल्य मिलने के बाद 80 हजार से एक लाख रुपये की आमदनी होने की संभावना रहती है।” उन्होंने आगे बताया कि रबी के मौसम में लौकी खेती जो सितम्बर और अक्तूबर में होती है, उसमें केवल हाइब्रेट बीज का इस्तेमाल किया जाता है जिससे ठंड के मौसम में भी उत्पादन अच्छा होता है।
देखें अम्बिका प्रसाद रावत द्वारा किए गए खेती का वीडियो
The Logically उन सभी किसानों को खेती करने के लिए बधाई देता है तथा उससे जुड़ी कुछ महत्वपूर्ण बातें बताने के लिए शुक्रिया अदा करता है।