भारत में महिलाओं की शिक्षा की बात करें तो आज के समय में यह आंकड़ा लगभग पुरुषों के बराबर हो गया है… लेकिन बीते जमाने की बात करें तो ज्यादातर महिलाएं शिक्षा से वंचित हीं रहती थी। उनके लिए घर गृहस्थी का काम हीं ज़्यादा मायने रखता था। हालांकि कुछ महिलाएं पहले के समय में भी पुरूषों के साथ- साथ अपने कामयाबी का जलवा बिखेरती आईं है। आज हम बात करेंगे देश की पहली महिला डॉक्टर आनंदीबाई जोशी की।
डॉक्टर आनंदीबाई जोशी
डॉक्टर आनंदीबाई जोशी का जन्म पुणे के एक रुढ़िवादी हिंदू-ब्राह्मण मध्यमवर्गीय परिवार में हुआ। उस समय महिलाओं को पढ़ाया नहीं जाता था। ना ही वह बाहरी दुनिया से रूबरू हो पाती थी। साथ ही उस दौर में बाल विवाह का भी प्रचलन था। बचपन में ही लड़कियों की शादी कर दी जाती थी। आनंदी के साथ भी वही हुआ। मात्र 9 साल की उम्र में आनंदी बाई की शादी करा दी गई थी। लेकिन आनंदी ने शादी के बाद अपनी इच्छा जाहिर की और वह मुकाम हासिल की, कि आज उनका नाम इतिहास के पन्नों पर दर्ज है। यह उस समय की बात है जब महिलाएं अपनी इच्छा से ज़्यादा समाज की परवाह करती थी। “लोग क्या कहेंगे” इस सवाल के जवाब में अपनी सारी इच्छाएं दबा लेती थी। लेकिन आनंदी उन महिलाओं में से नहीं थी। इसी वजह से आज हर कोई आनंदीबाई जोशी से परिचित है।
आनंदी जब मात्र 9 साल की हुई तब उनकी शादी उनसे 20 साल बड़े लड़के “गोपाल विनायक जोशी” से करा दी गई। विनायक से शादी के बाद आनंदी का नाम आनंदी गोपाल जोशी रखा गया। आनंदी ने मात्र 14 साल की उम्र में ही एक बेटे को जन्म दिया। उचित चिकित्सा के अभाव में 10 दिनों में ही उनके बेटे का देहांत हो गया। इस घटना से आनंदी को गहरा सदमा लगा। ऐसे हालात में खुद को संभालना उनके लिए बहुत मुश्किल था। इस घटना ने आनंदी को ऐसे झकझोर दिया कि आगे वह चिकित्सा के अभाव में होने वाले मौत को रोकने का प्रयास करने के लिए सोचने लगी और उन्होंने खुद एक डॉक्टर बनने का निश्चय किया।
आनंदी ने जब यह फैसला लिया कि वह डॉक्टर बनेंगी तब उनके घर और समाज वालों ने इसका विरोध किया। लेकिन इस फैसले में आनंदी का साथ उनके पति गोपाल ने दिया। गोपाल महिला शिक्षा के समर्थक थे। वे खुद आनंदी को पढ़ाना शुरू किए। उस समय भारत में एलोपैथिक डॉक्टरी की पढ़ाई की कहीं व्यवस्था नहीं थी, लेकिन आनंदी को डॉक्टरी की पढ़ाई करनी थी जिसके लिए उन्हें विदेश जाना पड़ा। आनंदी का साथ देने के लिए गोपाल को भी काफी तिरस्कार झेलना पड़ा। समाज के ताने सुनने पड़े, लेकिन वह हर कदम पर आनंदी का साथ दिए और आनंदी देश की पहली महिला डॉक्टर बन गई।
साल 1883 में आनंदीबाई पढ़ाई करने के लिए अमेरिका गई। वह उस समय विदेश जाने वाली पहली भारतीय हिन्दू महिला थी। 19 साल की उम्र में आनंदी MD की डिग्री प्राप्त कर भारत लौट आईं। अपने वतन वापस आने के कुछ ही दिनों बाद आनंदी को टीबी हो गया। जिससे मात्र 22 साल की उम्र में उनका निधन हो गया। आनंदीबाई ने जिस उद्देश्य से डॉक्टरी डिग्री हासिल की उसमें वह पूरी तरह से सफल नहीं हो पाईं, लेकिन उनके द्वारा बढ़ाए गए इस कदम से समाज में लड़कियों की जिंदगी में थोड़े बदलाव आए। उनसे यह प्रेरणा मिली कि लडकियां भी अपने हौसले और जज़्बे से पढ़ने के सपने को पूरा कर सकती है।
आनंदी गोपाल जोशी की कहानी पूरे देश के लिए प्रेरणादायक है। वह समाज की प्रताड़ना को झेलते हुए देश की पहली महिला डॉक्टर बन गई। नई परम्परा का सृजन कर सबके लिए प्रेरणा का स्रोत बन गई। The Logically आनंदी गोपाल जोशी को कोटि-कोटि नमन करता है।