आज जहा युवाओ को शहर की चका-चौंध की ज़िंदगी पसंद आती हैं और सब गांव छोड़ शहर का रुख कर रहे हैं वही कुछ ऐसे भी हैं जो शहर के चमक-धमक छोड़ गांव की ज़िंदगी मे वापस आ रहे हैं। कुछ ऐसे ही न्यू यॉर्क को छोड़ कर अंजलि रुद्राराजु करियप्पा(Anjali rudraraju cariappa)गांव की परिवेश में लौट आयी। अंजलि रुद्राराजु और कबीर करियप्पा ऐसे दंपत्ति हैं जो शहर को छोड़ गांव में अपना जीवन बसर कर रहे हैं। जहा कबीर करियप्पा(kabir cariappa) का बचपन ही खेतो में गुज़रा वही अंजलि रुद्राराजु शहर में पली-बढ़ी। कबीर के माता-पिता जुली और विवेक करियप्पा(Juli and vivek cariappa)तीन दशक से जैविक खेती कर रहे हैं। इसी का प्रभाव कबीर पर भी पड़ा। उनका पूरा बचपन जैविक खेती देखते और उसे समझते बिता। वही अंजलि रुद्राराजु करियप्पा ने हैदराबाद से प्रबंधन की पढ़ाई की और फिर न्यू यॉर्क में फाइनेंसियल सर्विस में काम किया। लगभग एक दशक तक इसमे काम करने के बाद 2010 में अंजलि नौकरी छोड़ कर भारत वापस आ गयी। भारत वापस आने के बाद इन्होंने जैविक खेती की शुरुआत की । अंजलिं को जैविक खेती में कोई अनुभव तो नही था पर परिवार के साथ इन्होंने छोटे से ज़मीन के टुकड़े पर जैविक खेती करनी शुरू की।
अंजलि और कबीर करियप्पा का यररोवे फार्म(Yarroway farm)
युवा दंपति अंजलि और कबीर ने कर्नाटक के मैसूर शहर के नज़दीक कोटे तालुका के हलासुरु गांव में एक बड़ा फार्म हाउस बनाया और इस फार्म को नाम दिया यररोवे फार्म(Yarroway farm)। कबीर और अंजलि ने यहाँ अन्य सात लोगो की मदद से 50 एकड़ की ज़मीन पड़ जैविक खेती की शुरआत की। इस के अलावा इन दोनों ने गांव के लोगो को जैविक खेती भी सिखाई और उन्हें काम भी दिया।
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सब्ज़ियों की मैसूर और बैंगलोर के बाजार में सप्लाई
अंजलि रुद्राराजु करियप्पा और कबीर करियप्पा(Anjali rudraraju cariappa and kabir cariappa) अपने
50 एकड़ की ज़मीन पड़ अपने लिए फल-सब्ज़िया तो उगाते ही हैं साथ ही बाजार में जिनकी ज़्यादा डिमांड होती है, उसकी भी खेती करते हैं। इनके खेत मे आपको गन्ना, कपास, मूंगफली सरसो से लेकर गेंहू, चावल, ज्वार-बाजरा, रागी जैसे अनेक अनाज देखने को मिलेंगे। अंजलि और कबीर सभी प्रकार के दाल और मसाले भी अपने खेत मे जैविक तरीके से उगाते हैं। खुद के खाने के अलावा यह दंपति फल और सब्जियों को मैसूर और बैंगलोर के बाजार मे बेचते हैं। गुणवत्ता के कारण इनके फल-सब्ज़ियों की डिमांड भी बाज़ार में रहती हैं।
आज प्रदूषण के बीच कट रहे जीवन के पल से अच्छा कही दूर पर्यावरण के नज़दीक अपनी ज़िंदगी बिताना। जहा खुद सब्ज़िया उगाओ और खाओ। इस तरह से इंसान खुद को स्वस्थ भी रखता है और मन को शांति भी मिलती हैं। आज यही सुकून की ज़िंदगी जी रहे हैं अंजलि रुद्राराजु करियप्पा और कबीर करियप्पा।