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बचपन से ही एक पैर नही है लेकिन ऑटो चलाकर अपने परिवार का खर्च उठाती हैं : नारी शक्ति

कहते हैं इंसान अपनी मंजिल पाने की ज़िद कर ले तो उसे मंजिल तक पहुँचने से कोई नही रोक सकता उस समय इंसान हर नामुमकिन काम को मुमकिन कर सकता है , चाहे वह एक लड़की हो या लड़का।

लेकिन कभी- कभी हमारा समाज औरतों की निंदा हद से ज्यादा करता है, इस समाज मे अपनी पहचान बनाने के लिए औरत को शरीरिक और मानसिक रूप से मजबूत रहना पड़ता है , वरना समाज की कुंठता उसे आगे नही बढ़ने देती है । लेकिन सच्चाई यह भी है, की मुश्किल चाहे जैसा भी हो जिसे जो करना है वो कर के ही दम लेता है।

ऐसी ही महानता की मिशाल है अंकिता शाह जिन्होंने विकलांग होने के बावजूद भी खुद को सफल बना कर समाज को करारा जवाब दने के साथ ही एक प्रेरणात्मक सन्देश दिया है।

पोलियो ने छीन लिया अंकिता का बचपन

अंकिता का जन्म गुजरात के पलिताना में हुआ था लेकिन वह अहमदाबाद में अपने परिवार के साथ रहती हैं, अंकिता का दाहिना पैर पोलियो से ग्रसित होने के कारण बचपन मे ही कटवाना पड़ा। अंकिता के पिता अहमदाबाद में एक बेहतर आजीविका के लिए आए थे लेकिन उन्हें भी कैंसर की बीमारी होने की वजह से काम छोड़ना पड़ा और इस तरह परिवार का सारा जिम्मा अंकिता ने अपने ऊपर ले लिया।

पलिताना में अंकिता को हाई स्कूल में क्लर्क का पद मिला था, उन्होंने अंकिता से कहा कि तुम पहले 3 महीने काम करो फिर मैं तुमको सैलरी दूंगा ,अंकिता ने वहां 10 महीने काम किया लेकिन उन्हें सैलरी नहीं मिली। अंकिता अपने परिवार के जीविको-पार्जन के लिए अहमदाबाद में रियल एस्टेट, कॉल सेंटर ,शेयर बाजार के साथ होटल की साफ -सफाई तक का काम किया, लेकिन सभी जगह उनका अनादर हुआ। उनकी विकलांगता की वजह से उन्हें हर कोई मना कर देता की तुम तो विकलांग हो तुम क्या करोगी? उस समय अंकिता के दिल को बहुत ठेस पहुँचती थी।

पिता के कैंसर ने और हिम्मत बढ़ा दिया

जून 2019 में उन्हें पिता के कैंसर के बारे में पता चला। वह जानती थीं कि उनकी लड़ाई अब और भी लम्बी हो गयी है। उस वक़्त वह एक कॉल सेंटर में काम कर रही थीं, जहाँ की 12 घँटे की नौकरी ना तो उन्हें अपने पिता के साथ अस्पताल जाने की इजाज़त देती और न महीने के अंत में आने वाली सैलरी इलाज में सहायक होती थी, तब उन्होंने अपनी नौकरी छोड़ने का फ़ैसला किया।

वह बताती हैं,  “उसके बाद मैंने एक बैक ऑफिस एक्जीक्यूटिव के पद के साथ-साथ दो और इंटरव्यू दिए लेकिन मुझे मेरी विकलांगता के कारण फिर से अस्वीकार कर दिया गया था। मैंने उसी दिन, उसी पल फ़ैसला लिया कि अब जो करुँगी अपने दम पर अपनी मर्ज़ी से करुँगी , अब और किसी की गुलामी नही करूंगी।

बहुत सोचने के बाद अंकिता ने ऑटो रिक्शा चालक बनने का फैसला लिया लेकिन हमारे समाज ने उनकी बहुत निंदा की, समाजिक परिहास को हसिए की ताक पर रखते हुए अंकिता ने अपने नए सफर की शुरुआत की और वह अहमदाबाद की पहली विकलांग महिला ऑटो ड्राइवर बनी।

अंकिता के परिवार को उनका रिक्शा चलाना पसंद नहीं था। उन्होंने बोला हम कैसे भी करके जी लेंगे लेकिन तुम्हें ऑटो नहीं चलाना है। लेकिन उन्होंने किसी की बात नही सुनी।अंकिता ने अपने मित्र लालजी बारोट से ऑटो चलाना सीखा,इनके मित्र ने इनकी बहुत सहायता की, साथ ही हाथ की सहायता से ब्रेक लगने वाले ऑटो ढूंढे। अंकिता लगभग 11 महीने से ऑटो चला रही है वह रोज सुबह काम पर 11:30 बजे निकलती है और रात 9:00 बजे घर आती है लॉक डाउन की वजह से उन्हें थोड़ी परेशानी हुई है। अंकिता ज्यादातर कालीपुर और चांदखेड़ा के बीच में ही ऑटो चलाती है। अंकिता ने ऑटो ईएमआई पर ले रखा है और वह चाहती है कि इसका एमआई पूरा कर वह ओला कैब भीचलाएंगी अंकिता ऑटो चला कर कर हर महीने लगभग 28,000 तक रुपए कमा लेती है।

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अंकिता अपने इस काम से बहुत खुश हैं, और अपना फ्यूचर इसी काम में बनाना चाहती हैं । वो खुद को आत्मनिर्भर बनाकर हर औरत के लिए एक रॉल मॉडल बन गई हैं । अंकिता के पिता या उनके परिवार को जब उनकी जरूरत होती है, तब वह उनके पास उपलब्ध रह पाती हैं ।

हालांकि अब अंकिता के छोटे भाई भी काम कर अंकिता की मदद कर रहे हैं, वह अपने पिता के इलाज और परिवार को आर्थिक रूप से मजबूत बनाना चाहते हैं । आशा करते हैं कि अंकिता अपनी इस दृढ़- संकल्प को पूरा करने में सफल होंगी । अंकिता के इस लगन और परिश्रम के लिए Logically नमन करता है और एक खुशहाल ज़िन्दगी की शुभकामनाएं देता है।

Khushboo loves to read and write on different issues. She hails from rural Bihar and interacting with different girls on their basic problems. In pursuit of learning stories of mankind , she talks to different people and bring their stories to mainstream.

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