हमारे समाज में बहुत से लोग ऐसे हैं जो किसी व्यक्ति की शारीरिक अक्षमता या दिव्यांगता को उसकी उन्नति के मार्ग में रुकावट समझने की भूल कर बैठते हैं। इतना ही नही, बार-बार उपहास या कटाक्ष करके उसका मनोबल गिराने की कोशिश भी करते हैं। ऐसे में, इस सच्चाई को कभी नही भूल चाहिए कि किसी व्यक्ति की शारीरिक विकलांगता उसे सामान्य लोगों की तुलना में अपेक्षाकृत अधिक दृढ़ और संकल्पित बना देती है।
इसका एक साकार उदाहरण है अहमदाबाद की 35 वर्षीय महिला ऑटो रिक्शा ड्राइवर अंकिता शाह। बचपन में पोलियो होने की वजह से अंकिता का दाहिना पैर काटना पड़ा था। इसके बावजूद वे पिछले 6 महीनों के ऑटो रिक्शा चलाकर अपने कैंसर पीड़ित पिता का इलाज करवा रही हैं।
अहमदाबाद की पहली दिव्यांग ऑटो रिक्शा ड्राइवर हैं अंकिता
अंकिता शाह केवल(Ankita Shah) एक साल की थीं जब उनका दांया पैर पोलियो ग्रसित हो गया था। मजबूरीवश वो पैर काटना पड़ा। पढ़ने में तेज़ और इक्नोमिक्स में ग्रेजुएशन करने के बावजूद विकलांगता की वजह से उन्हे नौकरी नही मिल पाई। भाग्य का कुचक्र देखें कि अंकिता के पिता भी कैंसर ग्रसित हो गये। इन तमाम विषम परिस्थितियों में भी अंकिता ने हार न मानते हुए ऑटो चलाने का फैसला लिया। आज वो ‘अहमदाबाद की पहली दिव्यांग महिला ऑटो रिक्शा ड्राइवर’ (First female handicapped auto rickshaw driver of Ahamdabad) के तौर पर जानी जाती हैं।
इक्नोमिक्स में ग्रेजुएट हैं अंकिता
पारिवारिक ज़िम्मेदारियों का वहन करने के लिए इक्नोमिक्स में ग्रेजुएट अंकिता ने एक कॉल सेंटर में 12 हज़ार रुपये प्रतिमाह की नौकरी भी की। लेकिन, कैंसर पीड़ित पिता के लिए उन्होंने यह नौकरी छोड़कर अधिक आय के लिए ऑटो रिक्शा चलाने का फैसला लिया।
कैंसर पीड़ित पिता की देखभाल के लिए अंकिता ने छोड़ी कॉल सेंटर जॉब
अंकिता के मुताबिक – जब उन्हे पिता के कैंसर ग्रसित होने के बारे में पता चला तो उन्होंने अपनी कॉल सेंटर की जॉब छोड़ दी क्योंकि पिता के इलाज के लिए बार-बार अहमदाबाद से सूरत जाना पड़ता है, ऐसे में ऑफिस से छुट्टियां मिलना भी आसान नही था। इसके अलावा 12 घंटे की शिफ्ट में केवल 12 हज़ार तनख़्वाह मिल रही थी। बहरहाल, उन्होंने नौकरी छोड़ना ही उचित समझा।
विकलांगता के चलते जॉब रिजक्शंस भी फेस किये अंकिता ने
अंकिता कहती हैं कि – “2009 में काम की तलाश मे मैं अहमदाबाद आ गई, कई कंपनियों में जॉब इंटरव्यू भी दिये, लेकिन मेरी शारीरिक अक्षमता को देखते हुए मुझे हर बार रिजक्शन्स फेस करने पड़ते थे, कई कंपनियों ने तो यह तक कह दिया कि अगर वो मुझे भर्ती करते हैं तो मेरी दिव्यांगता की वजह से उनकी कंपनी की इमेज खराब होगी, मेरे परिवार में सात लोगों हैं और उनकी ज़िम्मेदारी मेरे ही कंधों पर है”
दोस्त से सीखा ऑटो चलाना
कंपनियों से लगातार मिल रहे रिजेक्शन्स के बाद अंकिता ने अपना ही कुछ काम करने की ठान ली। जिसमें उनके दोस्त लालजी बारोट ने काफी हेल्प की। ऐसे में, लालजी जो स्वंय भी एक दिव्यांग है उन्होंने अंकिता को न केवल ऑटो चलाना सिखाया बल्कि एक कस्टमाइज़्ड ऑटो, जिसमें हैंड ऑपरेटेड ब्रेक्स(Customized auto with hand operated breaks) हैं दिलवाने में अंकिता की मदद भी की।
वर्तमान में 8 घंटे ऑटो चलाकर 25 हज़ार रुपये कमाने में सक्षम हैं अंकिता
हर दिव्यांग महिला के लिए एक प्रेरणास्रोत के रुप में उभर कर आई अहमदाबाद की अंकिता शाह आज 8 घंटे ऑटो चलाकर 25 हज़ार रुपये तक कमा पा रही है साथ ही अपने कैंसर पीड़ित पिता का इलाज और अपने परिवार का ख्याल भी रख पाती हैं।