विद्यालय दो शब्दों से मिलकर बना है विद्या और आलय। इसका मतलब यह है कि विद्या का घर। यहां विद्या की देवी सरस्वती का वास होता है। अब यह शिक्षक के ऊपर आधारित है कि वह अपने छात्रों को कैसी शिक्षा दे रहे हैं। अगर जिक्र सरकारी विद्यालयों की हो तो बहुत से विद्यालय ऐसे है जहां आपको शर्मसार कर देने वाला माहौल देखने को मिलेगा। शिक्षा के नाम पर यहां सिर्फ बच्चों के भविष्य के साथ खिलवाड़ किया जाता है। लेकिन कुछ सरकारी विद्यालय ऐसे भी हैं जो अपने छात्रों को निःस्वार्थ भाव से बच्चों के बेहतर कल का निर्माण कर सभी सरकारी विद्यालयों और शिक्षकों के लिए उदाहरण बन रहे हैं। यह कहानी मण्डा के राजकीय उच्च प्राथमिक विद्यालय की है जहां पढ़ने की सारी वस्तुएं जैसे कॉपी, पेन, पेन्सिल, बुक आदि छात्रों को निःशुल्क दिया जा रहा है।
अभियान की शुरुआत
“हर हाथ कलम” नाम अभियान के तहत एक युवा सरकारी विद्यालयों को संवारने में लगे है। इनका नाम है “अंसुल जैन”। अंशुल इस अभियान की शुरूआत अकेले ही किए थे। इस अभियान के तहत वह विद्यार्थियों को निःशुल्क कॉपी, पेन पेंसिल, स्केच, कटर, रबर, कलर बॉक्स, पेंसिल बॉक्स सब वितरित कर रहें हैं।
अंशुल जैन
अंशुल (Anshul) राजस्थान (Rajasthan) से सम्बन्ध रखते हैं। यह उन बच्चों की मदद करते हैं जो पढ़ने में रुचि रखते हैं लेकिन ज़रूरत के अभाव के कारण पढ़ नहीं पाते। इन्होंने एक “स्टेशनरी बैंक” की स्थापना की है। राजस्थान के टोक जिले मे “हर हाथ अभियान” की शुरुआत कर हर ज़रूरतमंद बच्चों की मदद कर रहें हैं। अंशुल सरकारी स्कूलों को संवारने का निश्चय कर हर बच्चे को उचित उनके अधिकारों के अनुसार शिक्षा प्रदान करना चाहते है। शिक्षा का अधिकार हर किसी को है, इसे प्राप्त करने का हक सभी को है।
स्टेशनरी के साथ-साथ खिलौने और वस्त्र भी वितरित किए जाते हैं
शुरुआती दौर में यह अकेले ही अपने हौसलों के दम पर कार्य करते रहें, लेकिन अब इनके साथ बहुत से शिक्षक जुड़ गयें हैं। इस योजना के माध्यम से अब सिर्फ स्टेशनरी ही नहीं बल्कि खलने के लिए खिलौने और पहनने के लिए वस्त्र का भी वितरण सरकारी स्कूलों के बच्चों को किया जाता है। इनके इस अनूठे कार्य से हर शिक्षक प्रभावित हुयें और इनके साथ जुड़कर सबकी मदद में अपना सहयोग देने लगे।
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2700 बच्चों को दिया स्टेशनरी किट
प्रारंभिक दौर में लगभग 22 जिलों में इसका आयोजन हुआ। जिस आयोजन में बच्चों को 8 हज़ार 300 पेंसिल और 13 हज़ार 772 कलम का वितरण हुआ।
वर्तमान में 66 मिनी स्टेशनरी बैंक लगभग 16 जिलों में खुला है। भविष्य के लिए 2100 विद्यालय में मिनी स्टेशनरी बैंक खोलने का लक्ष्य है। मकर सक्रांति के वक्त 84 राजकीय विद्यालयों में लगभग 2700 से अधिक ज़रूरतमंद बच्चों को उनकी टीम ने स्टेशनरी किट मुहैया कराया गया। साथ ही वसन्त पंचमी के वक़्त लगभग 750 विद्यार्थियों को एग्जाम किट का वितरण कराया।
जन्मदिन पर केक ना काटकर स्टेशनरी बैंक खुले
जन्मदिन स्पेशल के लिए अनोखी पहल प्रारंभ हुई। इस पहल के अनुसार बर्थडे पर कोई केक ना काटकर बच्चों के बीच जा कर ज़रूरमंद वस्तुओं का वितरण किया जाता है। अंशुल के लिए यह पहल प्रेरणादायक रही। जैन लगातार 4 सालों तक संघर्ष कियें तब जाकर उन्हें इसमें सफलता हासिल हुई। प्रथम स्टेशनरी बैंक की स्थापना उच्च प्राथमिक विद्यालय भवानीपुरा डिग्गी टोंक में खुली।
शिक्षा के महत्व को समझकर सरकारी विद्यालयों की काया Jain ने पलट कर रख दी है। जैन सभी युवा पीढ़ी और शिक्षकों के लिए उदाहरण हैं। The Logically Anshul Jain के कार्यों की प्रशंसा करते हुऐ सलाम करता है।