Wednesday, December 13, 2023

अंटार्कटिका की 6200 फीट मोटी बर्फ की चादर पिघली तो क्या होगा..जानकर हो जाएंगे हैरान

यूं तो भगवान की बनाई हुई यह दुनिया काफी खूबसूरत और हसीन है। इस दुनिया में कई प्रकार की ऐसी चीजें हैं जिसे रहना हम लोगों के लिए काफी फायदेमंद है। परंतु इंसानी कुछ हरकतों के कारण प्राकृतिक चीजें धीरे-धीरे लुफ्त होती जा रही हैं और इस कारण आने वाले समय में काफी कठिनाइयों का सामना करना पड़ सकता है। प्राकृतिक से कभी छेड़छाड़ नहीं करनी चाहिए। क्योंकि अगर प्राकृतिक से हम छेड़छाड़ करते हैं तो हम लोगों को काफी नुकसान उठाना पड़ सकता है।

आज हम आपको प्राकृतिक से जुड़ी एक ऐसी चीजों के बारे में बताएंगे जिसे रहना अत्यंत आवश्यक है। हम बात कर रहे हैं अंटार्कटिका के रहस्यमयी दुनिया के बारे में। अंटार्कटिका बर्फ की मोटी चादर से फैला हुआ है। हम आपको अपने लेख से अंटार्कटिका की रहस्यमयी दुनिया के बारे में बताएंगे तथा इसके साथ-साथ हम आपके समक्ष एक वीडियो भी साझा करेंगे जिस से आपको समझने में आसानी होगी।

अंटार्कटिका

अंटार्कटिका पृथ्वी के दशमी ध्रुव पर बसा एक रहस्यमयी दुनिया है। अंटार्कटिका पूरी दुनिया का सबसे बड़ा और पांचवा महाद्वीप है। वैसे तो अंटार्कटिका महाद्वीप को छोड़कर और महाद्वीप सब आपको काफी हरा-भरा दिखेंगे परंतु अंटार्कटिका एक ऐसा महाद्वीप है जहां आपको सिर्फ बर्फ की मोटी-मोटी चादर दिखने को मिलेगी। यह महाद्वीप आकार में ऑस्ट्रेलिया से दो गुणा बड़ा है। अंटार्कटिका महाद्वीप के लगभग 98% हिस्सा यानी 6200 फिट मोटी बर्फ की चादर में लिपटा हुआ है। पूरी पृथ्वी पर जितने भी बर्फ है उसका 90% हिस्सा दो स्थान ग्रीनलैंड और दूसरा अंटार्कटिका में है।

दुनिया के सातों महाद्वीपों में सबसे सुखा सबसे तेज हवाओं वाला तथा सबसे ठंडी जगह है तो वह अंटार्कटिका महाद्वीप है। अंटार्कटिका की सलाना औसत तापमान की बात की जाए तो यहां हर साल -50 डिग्री तापमान होती है। अंटार्कटिका एक ऐसी जगह है जहां इंसानो के रहने लायक जगह बिल्कुल नहीं है यहां सिर्फ रिसर्च करने के लिए जो वैज्ञानिक आते हैं वह यहां के बनाए हुए खास स्टेशनों में रहते हैं। यहां पर आपको सिर्फ एंप्रोपिंगिनो देखने को मिलेगा जो काफी मात्रा में अंटार्कटिका में रहते हैं। पूरे पृथ्वी पर जितना भी ताजा पानी मौजूद है उसका 80% ताजा पानी का हिस्सा अंटार्कटिका में बर्फ के रूप मैं जमा है।

• अंटार्कटिका का वर्फ पिघल तो क्या होगा

अंटार्कटिका में मौजूद जितने भी मोटी चादर के बर्फ है वह सब पिघलने लगे तो क्या हो सकता है। अंटार्कटिका का बर्फ पिघलने से पूरी दुनिया में समुद्र का जलस्तर 60 मीटर बढ़ जाने की संभावना है। इसके साथ-साथ अगर ग्रीनलैंड की सभी बर्फ पिघल जाए तो समुद्र का जलस्तर 6 मीटर बैठने की संभावना है। जिसके कारण अगर यह बर्फ पिघलता है तो पूरी दुनिया में सिर्फ पानी ही पानी नजर आएगा यानी पूरी दुनिया में प्रलय का मंजर छा जाएगा।

यह भी पढ़ें:-इस लड़की ने प्लास्टिक का निकाला विकल्प, बांस से बनाया कागजी बोतल, सस्ता होने के साथ बहुत उपयोगी

अमेरिकी एजेंसी नासा की ग्राफिक के अनुसार पता चलता है कि 25 सालों में अंटार्कटिका के आसपास बर्फ के जमने या पिघलने से उसके आकार में काफी बदलाव होता रहा है। जहां हर तरफ ग्लोबल वॉर्मिंग को लेकर के काफी चिंता जताई जा रही है। तो वहीं पूरी तरह बर्फ के मोटी चादरों के हिस्सों पर नजर रखना या इस पर ध्यान देना काफी जरूरी और आवश्यक है। अगर अंटार्कटिका का तापमान बढ़ता है तो वहां मौजूद बर्फ धीरे-धीरे पिघलने लगता है। अगर अंटार्कटिका का बर्फ पिघलने लगा तो इसका असर पूरी दुनिया पर आने लगेगा।

• अमेरिका के नेशनल आइसस्नो डेटा सेंटर

अमेरिका के नेशनल आइसस्नो डेटा सेंटर के रिसर्च करने के बाद यह पता चला है कि यहां की जलवायु परिवर्तन का अभी ज्यादा असर नहीं पड़ा है। परंतु अंटार्कटिका के कुछ हिस्से ऐसे भी हैं जहां तापमान बढ़ रहा है। और यह हिस्सा अंटार्कटिका के उत्तरी हिस्से में अंटार्कटिका के प्रायदीप के तापमान में 1950 के मुकाबले 2.5 डिग्री सेल्सियस की वृद्धि हुई है। इसी तरह पश्चिमी हिस्से के कुछ तटीय इलाकों में भी समुद्र के गर्म पानी की वजह से बर्फ की चादर धीरे-धीरे पिघलने लगी है। वैज्ञानिकों का कहना है कि अंटार्कटिका में बर्फ पिघलने के कुछ संकेत मिलते रहते हैं। परंतु यहां का बर्फ ज्यादा तेजी से नहीं पिघल रहा है। परंतु ग्रीनलैंड मैं बर्फ पिघलने की रफ्तार अंटार्कटिका से ज्यादा है। परंतु फिर भी अंटार्कटिका में कुछ-कुछ बर्फ डालने से चिंताएं बढ़ती रहती है।

वीडियो यहाँ देखें:-👇👇

• अंटार्कटिका पर रिसर्च

पृथ्वी की जलवायु में काफी परिवर्तन हो रही है इस परिवर्तन को देखते हुए अंटार्कटिका पर रिसर्च करना बहुत जरूरी हो गया है। करीब 100 साल पहले अंटार्कटिका में रिसर्च करने पर काफी जोरों शोर से चर्चा चलने लगी। यहां पर लगभग 80 रिसर्च सेंटर है। जिसमें भारत के अलावा अन्य देशो के वैज्ञानिक यहां रह कर रिसर्च करते हैं। भारत के अलावा अन्य देशो के वैज्ञानिक इस बर्फ से ढकी भूभाग के रहस्य के पता लगाने की लगातार कोशिश में जुटी हुई है।

अंटार्कटिका के एक खास प्रयोगशाला में पृथ्वी के इतिहास को ढूंढा जा रहा है। जो अंटार्कटिका के बर्फ की मोटी चादरों में छुपा हुआ है। अंटार्कटिका के सतह के नीचे बर्फ के नमूने इकट्ठा करने के अलावा वैज्ञानिक आकाश से भी डाटा जमा करते हैं। जिसने वेदर वल्लूनो पर लगे रेडियो ट्रांसमीटर के द्वारा तापमान, नमी और हवा से जुड़ी सारी जानकारी इकट्ठा करते हैं। अंटार्कटिका का इकोसिस्टम काफी संवेदनशील है इसलिए जलवायु परिवर्तन और उसके प्रभाव का सटीक जायजा लिया जा सकता है।

यह भी पढ़ें:-क्या है Agneepath Scheme, कितनी होगी सैलरी और कैसे होगा चयन? Full details

• ब्रिटिश अंटार्कटिक सर्वे के द्वारा

ब्रिटिश अंटार्कटिक सर्वे ने साल 2021 के फरवरी में बताया कि ब्रिटिश के रिसर्च सेंटर के पास एक काफी विशाल हिम खंड अंटार्कटिका की बर्फ से टूट कर अलग हो गया है। जिसका आकार 1270 वर्ग किलोमीटर है। अगर इसके क्षेत्रफल की बात की जाए तो यह दिल्ली से थोड़ा छोटा है। अंटार्कटिका से लगातार हिमखंड टूटकर समुद्र में गिरता रहता है। परंतु जलवायु परिवर्तन के कारण यह आगे चलकर काफी ज्यादा मात्रा में हिमखंड टूटकर गिरने लगेगा। अंटार्कटिका में एंप्रोपिंगिनो के खाने में हो रहे बदलाव और इकोसिस्टम पर ग्लोबल वॉर्मिंग के प्रभाव को बताने वाले जीते जागते एक पैरो मीटर है।

वैज्ञानिक बताते हैं कि हम लोगों की यह चिंता सताए जा रही है कि एंप्रोपिंगिनो पर ग्लोबल वॉर्मिंग की सबसे ज्यादा असर होगा क्योंकि एंप्रोपिंगिनो को बर्फ की सबसे ज्यादा जरूरत होती है। एंप्रोपिंगिनो बर्फ पर चढ़कर समुद्र में गोता लगाते हैं और अपना खाना तलाशते हैं। इसके साथ-साथ जनवरी के महीने में एंप्रोपिंगिनो अपने घोंसले बनाने के लिए इन्हें बर्फ की जरुरत होती है और यही समय होता है कि एंप्रोपिंगिनो के बच्चे खुद शिकार करने के लिए बर्फीले पानी में उतरते हैं। एंप्रोपिंगिनो का घर अंटार्कटिका के पश्चिमी तट पर अंटार्कटिक प्रायद्वीप है। अगर यहां की बर्फ पिघल लगी तो इन एंप्रोपिंगिनो की काफी कठिनाइयों का सामना करना पड़ेगा। जिसके कारण अंटार्कटिका पर रिचार्ज करना काफी जरुरी और आवश्यक है। अंटार्कटिका पर रिचार्ज करने से सिर्फ एंप्रोपिंगिनो कोई नहीं पूरी दुनिया को भी इससे बचने की खास जरुरत है।

अंटार्कटिका और ग्रीनलैंड में जैसी बर्फ की मोटी चादर दिखती है। आखिरी हिमयू के दौरान उत्तरी अमेरिका और इसके नेनेबिया का इलाका भी वैसे ही बर्फ की मोटी चादरों में लिपटा हुआ था। उतरी अमेरिका में अमेरिका, मेक्सिको, कनाडा जैसे कई छोटे-छोटे देश आते हैं। नेनेबिया उत्तरी यूरोप के उस इलाके को कहते हैं जिसमें स्वीडन, नॉर्वे और डेनमार्क जैसे देश आते हैं। अगर यहां का तापमान इसी प्रकार बता रहा तो अंटार्कटिका और ग्रीनलैंड की बर्फ धीरे-धीरे लुप्त हो जाएगी। जिसके लिए जलवायु में जो परिवर्तन हो रहे हैं उसे रोकना अत्यंत आवश्यक है। अगर जलवायु में हो रहे परिवर्तन को नहीं रोका गया तो आगे चलकर पूरी दुनिया में प्रलय आने की संभावना दिखाई देता है।