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तमिलनाडू के रामेश्वरम मंदिर के ऊपर भी एपीजे को मिला है स्थान, सभी धर्मों द्वारा पूज्य हैं एपीजे कलाम

आप The Logically द्वारा प्रकाशित लेख पढ़ते हैं व उन पर अपनी प्रतिक्रिया देते हैं जो बेशक ही एक अच्छी बात है। लेकिन, अगर आज The Logically अपने पाठकों से यह सवाल करना चाहे कि आपके लिए धर्म या धार्मिक पुस्तकें बड़ी हैं या शिक्षा, ज्ञान और देशभक्ति तो आपका जवाब क्या होगा ? दरअसल, इस सवाल का कारण साल 2018 में तमिलनाडू के रामेश्वरम मंदिर में भारत के मिसाइल मैन (Missile Man) की उपाधि से सम्मानित पूर्व राष्ट्रपति डॉ. एपीजे अब्दुल कलाम (ex- President APJ Abdul Kalam) की प्रतिमा लगाए जानें और एपीजे मेमोरियल में प्रतिमा के आगे धर्म विशेष की पुस्तक रखे जानें पर उठनें वाला विवाद है। आप कहेंगें कि भाई खबर तो पुरानी है लेकिन सच तो यह है कि इसके पीछे जो सवाल या किंकर्त्तव्यविमूढ़ता कि स्थिति है वो सदैव नवीन रहेगी।

डॉ. एपीजे अब्दुल कलाम की प्रतिमा को मंदिर के ऊपर मिला स्थान

तमिलनाडू के रामेश्वरम में पूर्व राष्ट्रपति डॉ. एपीजे अब्दुल कलाम का जन्म हुआ। देश की सेवा में खुद को समर्पित करनें से पूर्व अपनें जीवन का तकरीबन आधा भाग उन्होनें रामेश्वरम में ही गुज़ारा। रामेश्वरण निवासी किस हद तक एपीजे अब्दुल कलाम से प्रेम करते, उन्हें भगवान के समान पूजते व अपना ईष्ट मानते हैं इस बात का अंदाज़ा इसी से लगाया जा सकता है कि मुस्लिम धर्म से संबंध रखनें के बावजूद कलाम की मूर्ति को तमिलनाडू के रामेश्वरम मंदिर के ऊपर स्थान दिया गया है। ऐसे में सोशल मीडिया के माध्यम से पूर्व क्रिकेटर मुहम्मद कैफ नें भी मंदिर के ऊपर स्थित एपीजे कलाम की प्रतिमा की फोटो शेयर करते हुए उन्हें सच्चा नायक व समाज के लिए एक प्रेरणा बताया।

controversy over keeping ‘Geeta’

रामेश्वरम के पेई काराम्बू में स्थित है एपीजे की कब्र

बता दें कि 2015 में मृत्यू उपरांत रामेश्वरम के पेई काराम्बू मैदान में भारत रत्न से सम्मानित पूर्व राष्ट्रपति कलाम को दफनाया गया। मतलब यहां उनकी कब्र स्थित है जहाँ हमेशा ही लोगों की भीड़ लगी रहती है। केवल मुस्लिम वर्ग ही नही बल्कि हिंदु भी रामेश्वरम मंदिर में दर्शन से पहले कलाम की इस कब्र पर दर्शन करनें आते हैं जिसे देख लगता है मानों लोगों नें कलाम को भगवान का स्थान दे दिया है। और तो और रामेश्वरम मंदिर को जानें वाली बसें भी पेई काराम्बू में इस कब्र पर ज़रुर रुकती हैं।

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हिंदु धर्म के चार धामों में से एक माना जाता है रामेश्वरम

रामेश्वरम, यानि वह स्थान जिसे हिंदु धर्म के चार पवित्र धामों में से एक माना जाता है। कलाम का जन्मस्थान होनें के साथ-साथ यहां स्थापित शिवलिंग को बारह द्वादश ज्योतिर्लिंगों में से एक माना जाता है।

प्रतिमा के आगे गीता रखनें के चलते हुआ विवाद

पूर्व राष्ट्रपति एपीजे कलाम की दूसरी पुण्य तिथि के अवसर पर पेई काराम्बू मैदान स्थित उनकी कब्र को एक मेमोरियल के रुप में तब्दील कर दिया गया है। जिसका उदघाटन प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी नें किया। इसी तमाम प्रक्रिया के दौरान एपीजे की प्रतिमा के सामनें हिंदु धार्मिक ग्रंथ भगवत-गीता को भी रख दिया गया। किंतु, कुछ राजनीतिज्ञों और धर्म व समाज के ठेकेदारों को ये प्रयास कुछ रास नही आया और ये कृत्य विवादों का कारण बन गया। ऐसे में विवादास्पद स्थिति को शांत करनें के लिए प्रतिमा के आगे कुरान व बाइबल भी रख दी गईं।

गीता रखनें को सांप्रदायिकता थोपनें का कारण कहा गया

इस स्थान को एक मेमोरियल और नालेज सेंटर बनानें में भले ही सरकार और डीआरडीओ(Defence Research and Development Organisation, DRDO) द्वारा कड़ी मेहनत की गई हो। बावजूद इसके प्रतिमा के आगे भगवत-गीता रख जानें को डीएमके नेता स्टालिन नें सांप्रदायिकता थोपनें का प्रयास करार दिया। यहां तक कि वीसीके नेता तिरुमवलन नें कहा कि – मूर्ति के आगे गीता रखकर कहीं कलाम को हिंदु धर्म के महान प्रेमी व प्रेरणा के रुप में जाहिर करनें की मंशा तो सरकार की नही है।

अब आपके लिए सवाल

धर्म विशेष के ग्रंथ रखनें को लेकर जो तमाम उठा-पटक हुईं अच्छी बात है, लेकिन ऐसे में सवाल ये उठता है कि मातृ-भूमि के प्रति लगाव, समाजिक उत्थान, वैश्विक प्रगतिशीलता के लिए नये-नये प्रयोग, परस्पर एकजुटता, कौमी एकता व भेदभाव रहित जीवन जीने की जो प्रेरणा, ज्ञान व शिक्षा ये तमाम ग्रंथ देते हैं क्या वो एपीजे नें अपनें जीवन में नही दिये? क्या पूर्व में एक धर्म विशेष की पुस्तक रख, तदुपंरात विवाद खत्म करनें के लिए अन्य धार्मिक पुस्तकें रखकर एक लीपा-पोती की स्थिति लाना ज़रुरी था? क्या धार्मिक ग्रंथ एक व्यक्ति द्वारा किये गए सद्-कार्यों से बड़े हैं? आखिरकार ये ग्रंथ भी तो एक इंसान नें किसी महापुरुष द्वारा जनमानस की भलाई किये जानें वाले कार्यों से प्रेरित हो लिखे हैं? एक बार इन सवालों पर विचार ज़रुर करियेगा और स्वंय में ही उत्तर तलाशनें की कोशिश भी।

अर्चना झा दिल्ली की रहने वाली हैं, पत्रकारिता में रुचि होने के कारण अर्चना जामिया यूनिवर्सिटी से जर्नलिज्म की पढ़ाई पूरी कर चुकी हैं और अब पत्रकारिता में अपनी हुनर आज़मा रही हैं। पत्रकारिता के अलावा अर्चना को ब्लॉगिंग और डॉक्यूमेंट्री में भी खास रुचि है, जिसके लिए वह अलग अलग प्रोजेक्ट पर काम करती रहती हैं।

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