कृषि हमारे देश की अर्थव्यवस्था का एक महत्वपूर्ण हिस्सा है। किसान यहां अपने खेतों में दिन-रात मेहनत करके अपनी फसल उगाते हैं। जिसमें से वैसे कुछ किसानों को कृषि के क्षेत्र में काफी सफलता मिलती है। और अन्य किसानों को इन किसानों से प्रेरणा भी मिलती है।
आज हम एक ऐसे किसान के बारे में चर्चा करेंगे जो नौकरी में थे तो देश सेवा की और नौकरी त्यागने के बाद भुमि सेवा कर रहे हैं। जिन्होंने थल सेना की नौकरी छोड़ कर अपने गांव आकर खेतों में काम करके एक सफल किसान बन गए।
अरुण वर्मा जो फतेहपुर जिला के पूर्वा विकास खंड मलवा के बेला ग्राम के निवासी हैं। इनके पिता का नाम श्री सूर्य प्रसाद वर्मा है। अरुण वर्मा का जन्म एक कृषक परिवार में हुआ था। इनके पिता एक किसान थे और वे अपने खेतों में काम करते थे। परंतु अरुण वर्मा का ध्यान खेतों में न रहकर नौकरी की तरफ रहा। अरुण वर्मा को वर्ष 1984 में भारतीय थल सेना में नौकरी लग गई। अपने मातृभूमि की रक्षा करने के लिए इन्होंने नौकरी ज्वाइन कर लिया। कुछ दिन नौकरी करने के बाद अरुण वर्मा को अपने घर की याद बहुत आने लगी। वे बताते हैं कि जब उन्हें घर की याद आती थी। तो उनको ऐसा लगता था की आंखों के सामने में उनके पिता और उनका पूरा परिवार खेतों में काम करते हुए देखते थे।
नौकरी छोड़कर खेती करने का फैसला
अरुण वर्मा को नौकरी से जब भी छुट्टी मिलती थी तो वह अपने गांव आकर अपने पिता के साथ खेतों में काम करने में हाथ बंटाते थे। अपने पिता के साथ खेतों में काम करते हुए देख इनका मन अब खेती करने की तरफ जा रहा था। अरुण वर्मा साल 2001 में भारतीय सेना के नौकरी छोड़ कर अपने गांव वापस आ गए। जब इन्होंने अपने देश में खेतों में काम करने के नए-नए तरीके और नए तकनीक को देखा तो इन्होंने अपने पुरवा गांव में इस खेती की तकनीक को अपनाने के लिए अपने खेतों में दिन रात मेहनत और लगन से काम करने लगे।
फिर से शुरू की नौकरी
जब इन्होंने अपने खेतों में गेहूं, धान, तिलहन आदि जैसे फसलों को लगाया तो इन्हें इन फसलों से मन मुताबिक लाभ नहीं मिला। जिसकी वजह से अरुण वर्मा को खेती से रुझान हटकर फिर से नौकरी की तरफ ध्यान चला गया। इसके बाद इन्होंने बेसिक शिक्षा विभाग में सहायक अध्यापक के पोस्ट पर काम करने लगे। इस नौकरी के साथ-साथ हुआ अपने खेतों में भी काम करते थे। अरुण वर्मा को मन में अंदर ही अंदर ऐसा लगता था कि वह एक ना एक दिन आधुनिक खेती करके अपनी आमदनी बढ़ाएंगे।
पुनः शुरू की खेती
अरुण वर्मा साल 2008-09 में फतेहपुर विभाग के उद्यान एवं खाद्य प्रसंस्करण के संपर्क में आये। इन अधिकारियों द्वारा बताई गई तकनीक से इन्होंने एक हेक्टेयर खेत में टिशू कल्चर केला की गैंड नैन प्रजाति की खेती करना प्रारंभ कर दिया। अरुण वर्मा बताते हैं कि इस केले की खेती अच्छी तरह चल रही थी। केले के पौधों का विकास काफी अच्छा हो रहा था इन पौधों में फूल निकल आए थे। परंतु इनके गांव में नीलगाय ने इनके काफी सारी फसल को बर्बाद कर दिया जिससे इन्हें काफी नुकसान पहुंचा। थोड़ी बहुत जो फसल बची थी उन्हें देखरेख करके उस फसल को बचाया। जब उसमें फल आया तो वह उसे बेचकर लगभग ₹1 लाख का केला बेचा जिसमें उन्हें इन 15 महीनों में इस केले की खेती से 20 से 30 हजार रुपए की आमदनी हुई। इसके बाद इन्होंने विभाग के अधिकारियों से संपर्क किया जिससे उन्हें पता चला कि प्रदेश में सबसे अच्छा केला की खेती करने वाला किसान है। फिर अरुण वर्मा ने उस किसान के यहां जाकर देखा कि वहां केले के साथ साथ टमाटर की भी खेती हो रही है। अरुण वर्मा ने वहां किसानों से जाकर टमाटर की खेती के बारे में जाना।
शुरू की टमाटर की खेती
किसानों ने अरूण से बताया कि या टमाटर की खेती ऐसी है जो कम समय में ज्यादा लाभ देती है। यह आइडिया अरुण वर्मा को पसंद आया और वह साल 2010 में एक बीघा में टमाटर की खेती करने लगे जिसमें उन्हें 5 महीने में ही 27 हजार रुपए की आमदनी हुई। इस मुनाफे को देखकर अरुण वर्मा ने सोचा कि अगर एक बीघे में इतना मुनाफा हो तो अगर हमारे पास जितने खेत हैं अगर खेत में खेती करूं तो और भी लाभ होगा। फिर इन्होंने अपने पूरे खेतों में धान, सरसों और टमाटर का फसल लगाया जिससे उन्हें 1 साल में 2 लाख रुपए का लाभ हुआ। परंतु इन्हें एक समस्या और थी की यहां के मजदूरों को खेतों में सिंचाई करने के लिए पानी की काफी समस्याएं थी।
अधिकारियों से मिलकर ड्रिप सिंचाई शुरू की
अरुण वर्मा ने साल 2012-13 में उद्यान विभाग में जाकर ड्रिप सिंचाई के बारे में बात किया और उनसे आग्रह किया कि उन्हें अपने खेतों की सिंचाई करने के लिए सिंचाई योजना का लाभ मिले। परंतु वहां के विभागीय अधिकारी ने इन्हें साफ मना कर दिया और बोला कि इस साल सूक्ष्म सिंचाई योजना का लाभ के लिए लाभार्थियों का चयन हो चुका है जिसकी वजह से आपको या लाभ नहीं मिल पाएगा।
अरुण वर्मा बताते हैं कि मैंने जैन इरिगेशन सिस्टम से रिंगन को खरीदा। इसका प्रयोग अपने खेतों में लगे टमाटर और खीरा की फसल पर किया। लेकिन फिर भी हमें इससे कोई लाभ नहीं हुआ। अरुण वर्मा लगातार उद्यान विभाग के संपर्क में रहते थे। आखिरकार साल 2013-14 में इन्हें ड्रिप सिंचाई के अंतर्गत क्लोज अस प्रेसिंग फसल में ड्रिप लगाने के लिए चयन किया गया। इस ड्रिप को लगाने के लिए अरुण वर्मा से 33 हजार रुपए के लिए गए और इन्हें एक हेक्टेयर क्षेत्र में टमाटर की फसल पर ड्रिप जैन इरिगेशन सिस्टम लिमिटेड कंपनी के इंजीनियर द्वारा लगाया गया। अरुण वर्मा बताते हैं कि अभी मेरे पास 10 बीघा जमीन है जिसमें पूरे खेतों में शंकर टमाटर की हिमसोना प्रजाति का खेती कर रहे हैं। वे बताते हैं कि आने वाले समय में प्याज की भी खेती बढ़ाएंगे।