कभी-कभी सड़क चलते हमलोगों को कुछ ऐसी कलाओं का दर्शन हो जाता है। जिसे देखने के बाद हमलोग उसे निहारने को मजबूर हो जाते हैं। वैसी हीं कलाकृतियों में से एक है दीवार और छत के सिलिंग में चिपकाए जाने वाली कलाकृतियां।
कुछ लोगों की कला उस तरह उजागर नहीं हो पाती जिसके वे हकदार होते हैं। आज हम बात करने जा रहे हैं पटना के हड़ताली मोड़ पर अवस्थित एक दुकानदार के बारे में को लगभग दस बारह वर्षों से इस मोड़ पर अपना दुकान चलाते हैं। जिसे मुख्यत: घरों में सजावट के तौर पर इस्तेमाल किया जाता है। उन्होंने The Indian Stories से बात की और विभिन्न प्रकार की कलाकृतियों को बनाने की विधि और उसके उपयोग को साझा किया। उनके साथ हुई बातचीत की वीडियो भी हम साझा कर रहे हैं जिसे आप अवश्य देखें।
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दरअसल ये शख्स रिंग, गणेश जी की मूर्ति एवं ॐ आदि इस तरह के कई प्रकार के ढांचे अपने हाथों से तैयार करते हैं और उसे सड़क के किनारे बेचते हैं। The Indian Stories से बात करते हुए उन्होंने बताया कि सबसे पहले तो हम में से कुछ लोग इस रिंग को समझ ही नहीं पाते हैं कि आखिर ये होता क्या है? तो आपको बता दूं कि ये रिंग को घर की छतों और किनारों पर लगाया जाता है। जिससे घर की आंतरिक खूबसूरती बढ जाती है। जहां घर के बीच केंद्र पर पंखा लगाया जाता है उसी जगह इसको सेट किया जाता है ताकि इससे घरों की और रौनक बढ़ जाए।
कैसे बनाया जाता है सर्कुलर रिंग
इसी प्रकार मूर्ति का भी इस्तेमाल करते हैं। कई लोग अपने घरों के मुख्य द्वार पर गणेश जी की मूर्ति लगा देते हैं। जो घर को एक भक्तिमय स्वरूप दे देता है। अब सवाल है इसे ये लोग बनाते कैसे हैं तो उनका कहना था की हमलोग प्लास्टर, पेरिस और नारियल सन से तैयार करते हैं। सबसे पहले सांचे पर तेल लगाया जाता है। उसके बाद माल घोलकर उस पर डाला जाता है। उसके ऊपर से नारियल का सन लगाया जाता है। इसके बाद उसके ऊपर फाइबर मारा जाता है और इसे 10 मिनट के लिए छोड़ दिया जाता है। 10 मिनट बाद यह जम जाता है और इसे सांचे से अलग कर लिया जाता है। इस तरह बनी ये कलाकृतियां बहुत मजबूत होती हैं। इनके तरह-तरह के डिजाइंस होते हैं जिसे देख लोग और ज्यादा आकर्षित हो जाते हैं क्योंकि ये कला से परिपूर्ण होता है।
हैरान करने वाली बात तब हुई जब उनसे उनकी आय पूछी गई तो उनके चेहरे पर निराशा साफ झलक रही थी। उनका कहना था कि हमलोग की कोई फिक्स वेतन तो होता नहीं कभी दो चार सौ हो जाते हैं और कभी-कभी कुछ भी नही होता। आखिर इसकी वजह क्या है? क्यों ये लोग इतने कला से परिपूर्ण होने के बावजूद इनके चेहरे पर संतुष्टता नहीं है? वे बताते हैं कि इसका मुख्य वजह है इनके दुकान का फुटपाथ पर होना है। अक्सर लोग फुटपाथ के सामानों को उस नजर से नहीं देखते जिस तरह हम नामचीन दुकानों की तरफ देखते हैं। जो कि मुझे खास वजह लग रहा है।
ये लोग गरीबी में भरसक जी रहे हैं, इनके पास ज्यादा संसाधन भी उपलब्ध नहीं है लेकिन इसके बावजूद भी इनकी काबिलियत और हुनर किसी को भी आकर्षित करने का माद्दा रखता है। इन जैसे लोगों की कला की गहराई को सरकार को समझना चाहिए ताकि ये लोग भी अपने स्तर से ऊपर उठ सकें। सबसे पहले हमें इन लोगों की कला का इज्जत करना होगा। जिसके बाद हीं हमारे देश में इनलोगों के प्रति एक अच्छी चेतना आएगी।