“उड़ान तो भरना है, चाहे कई बार गिरना पड़े।
सपनों को पुरा करना है, चाहे खुद से भी लड़ना पड़े।”
कई बार हम एक-दो असफलता हाथ लगने के बाद निराश होकर बैठ जाते हैं और किस्मत को दोषी ठहराने लगते हैं, जो कि गलत है। जी हां, मंजिल तक वहीं पहुंचते हैं जो बार-बार असफल होने के बाद भी निरंतर प्रयासरत रहते हैं और एक दिन पूरी दुनिया में अपना परचम लहराते हैं।
कुछ ऐसी ही कहानी है कि, माउंट एवरेस्ट पर चढ़ाई करनेवाली विश्व की पहली विकलांग महिला (First handicapped woman in the world to climb Mount Everest) की, जिसने अनेकों बाधाओं को पार करते हुए आर्टिफिशल पैर के सहारे आखिरकार दुनिया की सबसे उंची चोटी पर चढ़कर सभी के लिए प्रेरणा की मिसाल कायम कर दिया। इसी क्रम में आज का हमारा यह लेख उसी प्रेरणादायक महिला के बारें में जिसे पढ़कर आपके अंदर भी मंजिल को पाने का जुनून फिर से जाग उठेगा।
कहानी माउंट एवरेस्ट पर चढ़ने वाली विश्व की पहली महिला अरुणिमा की..
यह कहानी है जाबांज महिला अरुणिमा सिन्हा (Arunima Sinha) की, जिनका जन्म 1988 में उत्तरप्रदेश (Uttar Pradesh) के अम्बेडकर नगर में हुआ था। अरुणिमा को शुरु से ही खेल-कूद में काफी रुचि थी और इसी रुचि ने उन्हें नेशनल लेवल का वॉलीबॉल प्लेयर बनाया था। हालांकि, वह भारतीय सुरक्षा बल सेवा में शामिल होकर देश की सेवा करना चाहती थीं। लेकिन उनका यह सपना शायद किस्मत को मंजूर नहीं था।
चोरों ने फेंक दिया चलती ट्रेन से, डॉक्टर ने दिया पैर काटने का सलाह
भारतीय सुरक्षा बल सेवा के सपने को पूरा करने के लिए उन्होंने देश की राजधानी दिल्ली जाने का फैसला किया। यह बात साल 2011 की जब उन्होंने CISF की परीक्षा देने के लिए पद्मावती एक्सप्रेस में बैठकर दिल्ली के लिए रवाना हुईं। सफर के दौरान कुछ चोर कोच में घुस आए और उनसे उनका बैग और चेन छीनने की कोशिश करने लगे। इस घटना का विरोध करने पर चोरों ने अरुणिमा को ट्रेन से बाहर फेंक दिया और बदकिस्मती यह थी कि दूसरी तरफ से भी ट्रेन तेजी से आ रही थी। इस घटना में उनके पैर बुरी तरह से जख्मी हो गए और पूरी रात अरुणिमा पटरियों पर बेजान लाश की तरह पड़ी रहीं।
अगले दिन सुबह जब लोगों ने उन्हें देखा तो उन्हें इलाज हेतु अस्पताल लेकर गए। उनके पैर की स्थिति इतनी खराब हो चुकी थी कि डॉक्टर ने पैर काटने के लिए कह दिया। अरुणिमा के कुचले हुए पैर को काटने के बाद डॉक्टर ने उन्हें आर्टिफिशल पैर लगा दिया। इस घटना ने उन्हें चार महीने तक एम्स में एडमिट रख दिया। The story of Arunima Sinha, the world’s First Woman to Climb World’s Highest Peak Mount Everest.
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माउंट एवरेस्ट पर चढ़ने का किया फैसला
अरुणिमा के साथ हुए इस हादसे ने उन्हें झकझोर कर रख दिया था लेकिन उन्होंने हार नहीं मानी। पैर कटने के बाद जहां लोग उन्हें लाचार और बेसहारा समझने लगे थे वहीं अरुणिमा का मनोबल सातवें आसमान पर था। उन्होंने विश्व की सबसे उंची चोटी माउंट एवरेस्ट को फतह करने के लिए दृढ़ निश्चय कर लिया था। The story of Arunima Sinha, the World’s First Woman to Climb World’s Highest Peak Mount Everest.
प्रशिक्षण के लिए चली गईं उत्तरकाशी
अपने मजबूत हौसले के साथ उन्होंने माउंट एवरेस्ट की चढ़ाई करने के लिए उन्होंने माउंट एवरेस्ट पर चढ़ने वाली भारत की प्रथम महिला बछेंद्री पाल से सम्पर्क किया। अरुणिमा के हौसले ने उन्हें भी कुछ समय के लिए हैरत में डाल दिया। उसके बाद अरुणिमा एवरेस्ट को फतह करने के लिए शुरुआती ट्रेनिंग के लिए उत्तरकाशी में स्थित टाटा स्टील एडवेंचर फाउंडेशन गईं। शुरुआती कोर्स कम्प्लीट करने के बाद उन्होंने उत्तरकाशी के ही नेहरु माउंटनरिंग इंस्टीटयूट में दाखिला लिया।
एवरेस्ट फतह करने से पहले शुरु किया घोर अभ्यास
सभी कोर्सेज पुरा करने के बाद अरुणिमा (Arunima Sinha) ने सीधे एवरेस्ट की चढ़ाई न करके पहले उसके लिए अभ्यास करने का फैसला लिया। इसके लिए उन्होंने दो वर्षों तक आइसलैंड पीक और माउंट कान्गड़ी पर चढ़ने-उतरने की कोशिश करने लगी। कड़े अभ्यास के बाद उन्होंने माउंट एवरेस्ट (Mount Everest) पर चढ़ने का सफर शुरु किया। हालांकि, यह सफर ऐसा था मानों जैसे रेत के मैदान में पानी की तलाश करना।
काफी चुनौतिपूर्ण था यह सफर
पूरी तरह से स्वस्थ इन्सान के लिए भी एवरेस्ट चढ़ने मे फसीने छूटने लगते हैं ऐसे में बिना रस्सी के सीढ़ी और आर्टिफिशल पैर के साथ एवरेस्ट पर चढ़ना काफी चुनौतिपूर्ण था। रस्सी की सीढ़ी नहीं होने पर मार्ग में आ रही बाधाओं को पार करने के लिए उन्हें कूदना पड़ता था जो बेहद संघर्षपूर्ण था। लेकिन उन्होंने हार नहीं मानकर सभी बाधाओं को पार करते हुए ऐसे आगे बढ़ रहीं थी मानों जैसे कोई नदी पहाड़ों को चीरते हुए अपना मार्ग बना रही हो।
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बनीं माउंट एवरेस्ट पर चढ़ने वाली विश्व की प्रथम विकलांग महिला
विश्व की सबसे उंची चोटी माउंट एवरेस्ट (World’s Highest Peak Mount Everest) को फतह करने के सफर में वे कई बार अपने साथियों से पीछे छूट जाती थीं। ऐसे में एक बार उनके गाइड ने उन्हें एवरेस्ट पर चढ़ने के बजाय वापस लौटने के लिए कह दिया। लेकिन अरुणिमा के हैसले पहाड़ जैसे अडिग थे, उन्होंने जीतने का ठान लिया था। अन्ततः साल 2013 में 52 दिनों का सफर तय करके अरुणिमा माउंट एवरेस्ट की चोटी पर चढ़ने में सफलता हासिल किया। अरुणिमा माउंट एवरेस्ट पर चढ़नेवाली पहली विकलांग महिला बनकर पूरी दुनिया में अपना परचम लहरा दिया।
पद्मश्री सम्मान से हो चुकी हैं सम्मानित
माउंट एवरेस्ट पर चढ़ने वाली विश्व की पहली विकलांग महिला (Arunima Sinha, First Handicapped Woman in the world to Climb Mount Everest) बनने के लिए भारत सरकार ने अरुणिमा सिन्हा को पद्मश्री सम्मान से सम्मानित किया। वहीं यूपी सरकार ने उन्हें इनाम के तौर पर 25 लाख रुपये का चेक दिया। अरुणिमा ने इस महान उपलब्धी को हासिल करके यह साबित कर दिया कि यदि दृढ़ निश्चय और पूरे मन के साथ कुछ किया जाए तो सफलता जरुर मिलेगी।
अरुणिमा (Arunima Sinha) की कहानी से उन सभी लोगों को सीख लेनी चाहिए जो छोटी-छोटी बाधाओं से हार मानकर बैठ जाते हैं। The story of Arunima Sinha, the world’s first woman to climb World’s Highest Peak Mount Everest.
अरुणिमा सिन्हा के हौसले को The Logically सलाम करता है।