Wednesday, December 13, 2023

इस तरह गरीबी को दिया मात: पिता चलाते हैं आटा चक्की, बेटा बन गया न्यूक्लियर साइंटिस्ट

मेहनत कभी बेकार नहीं जाती, उसका फल एक-न-एक दिन अवश्य मिलता है। इसमें कोई संदेह नहीं है कि सफलता हासिल होने मे थोड़ा वक्त लगता है परंतु वह एक दिन आपके कदम जरुर चूमती है।

आज हम आपके लिये सफलता की एक ऐसी ही कहानी लेकर आये है। यह कहानी एक ऐसे होनहार बेटे की है जिसने कई सारी चुनौतियों का सामना करते हुये आखिरकार अपनी मेहनत से न्युकिलीयर साइंटिस्ट बनकर अपने माता-पिता का सर गर्व से उंचा कर दिया है। तो आइये जानते है उस युवक के बारे में..

अशोक कुमार का परिचय

अशोक कुमार (Ashok Kumar) हरियाणा (Hariyana) के हिसार जिले के मुकलन गांव के रहने वाले हैं। इनके पिता का नाम मांगेराम है, वह गांव में ही आटा चक्की चलाते है। माता का नाम कलावती है, वह आठवीं कक्षा पास एक गृहिणी है। अशोक अपने तीन भाई-बहनो में सबसे बड़े हैं।

Ashok Kumar becomes nuclear scientist

आर्थिक स्थिति खराब होने के कारण सरकारी स्कूल से शिक्षा

अशोक के पिता के पास एक एकड़ भूमि है और वह आटा चक्की चलाकर अपने घर-परिवार का भरण-पोषण करते हैं। घर की स्थिति सही नहीं होने की वजह से अशोक की शिक्षा गाँव के ही सरकारी विद्यालय से हुईं और उसके बाद वह अपनी मेहनत और काबिलियत के दम पर आगे बढ़े। अशोक ने दसवीं तक की पढाई गांव के सरकारी स्कूल से ही की। उसके बाद उन्होंने 11वीं और 12वीं की शिक्षा नॉन मेडिकल से प्राइवेट स्कूल से पूरी की तथा मैकेनिकल से B.Tech किया।

बचपन से वैज्ञानिक (Scientist) बनने का सपना

अशोक को बचपन से ही डॉ. अब्दुल कलाम की तरह वैज्ञानिक बनने की चाह है। उन्होंने बताया कि जब भी टीवी या अखबार में अब्दुल कलाम को देखते, उन्हीं के जैसा बनने की चाह रखते।

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अशोक कुमार का भामा अटॉमिक रिसर्च सेंटर में हुआ चयन

अपने वैज्ञानिक बनने के सपने को पूरा करने के लिये अशोक ने मार्च 2020 में भामा अटॉमिक रिसर्च सेंटर रिक्रुमेंट की परीक्षा दिया था। उसके बाद दिसंबर में इंटरव्यू के बाद परिणाम घोषित किया गया जिसमें अशोक ने ऑल इंडिया सेकेंड रैंक प्राप्त कर जीत का परचम लहरा दिया है। अशोक ने बताया कि पूरे देश से सिर्फ 30 छात्रों का ही चयन हुआ है जिसमें उनका भी नाम दर्ज है। अशोक ने बताया कि 16 जनवरी को मुंबई में उनकी ट्रेनिंग होगी जिसके लिये वह गुरुवार को गांव से इस नए सफर के लिये निकलेंगे।

Father of nuclear scientist

माता-पिता को गर्व की अनुभूति

अशोक के न्युकिलीयर साइंटिस्ट बनने पर उनके माता-पिता बेहद गौरान्वित महसूस कर रहे है। उनके पिता ने बताया कि अशोक शुरु से ही पढाई मे काफी होशियार थे।

परीक्षा में उतीर्ण होने के लिये 12 घंटे की कठिन मेहनत

अशोक बताते हैं कि इस परीक्षा को पास करने के लिए वह प्रतिदिन 12 घंटे पढ़ाई करते थे। इस दौरान वह टीवी से दूर रहे और प्रतिदिन अखबार पढ़ते। अगर कभी परेशान होते तो प्रेरणा लेने के लिए अब्दुल कलाम की जीवनी पढ़ते। उनकी जीवनी से प्रेरित होकर अपना लक्ष्य हासिल करने के लिए आगे बढ़ते रहें।

प्रधानमंत्री की स्कीम ने की सहायता

देश के प्रधानमंत्री मोदी जी के द्वारा वर्ष 2014 में CSR स्कीम की शुरुआत की गईं थी। अशोक के कामयाबी में देश के मोदी की सोशल रिस्पोंस कॉरपोरेट स्कीम (CSR Scheme) ने बहुत मदद किया है। सरकार के इस स्कीम के तहत ही अशोक अपनी इंजीनियरिंग की पढ़ाई पूरी कर सके।

Ashok Kumar becomes nuclear scientist

इंजीनियरिंग की फीस शिक्षक ने भरी

अशोक ने वर्ष 2015 में JEE मेंस का पेपर क्लियर कर के फरीदाबाद (Faridabad) के इंजीनियरिंग कॉलेज में दाखिला लिया। अशोक के परिवार की आर्थिक स्थिति इतनी अच्छी नहीं थी कि वे उनका फीस भर सके। ऐसे में अशोक के प्रतिभा को देखते हुए हिसार के गणित के शिक्षक रवि यादव ने ₹50000 की फीस भरी। CSR स्कीम के तहत जर्मनी की सीमनस कम्पनी ने छात्रवृत्ति के लिये पूरे देश से 50 छात्रों का चयन किया जिसमें अशोक का नाम भी सम्मिलित था। उसमें चुनाव 10वीं और12वीं के नम्बरों के साथ JEE मेन्स के स्कोर के आधार पर किया गया। इस स्कीम ने कॉलेज की पढ़ाई, किताब और हॉस्टल का खर्च कम्पनी ने उठाया।

अशोक कुमार (Ashok Kumar) ने बताया कि इंजीनियरिंग की पढ़ाई पूरी करने के बाद परीक्षा की तैयारी करने के लिए वह 2 वर्षों तक अपने घर से दूर रहे। वह अपनी मौसी के घर आने लगे क्योंकि वहां कम सदस्य होने के कारण शांत वातावरण था और जगह भी पर्याप्त थी। वह प्रतिदिन 12 घंटे पढ़ाई किए और इंटरनेट से दूर रहे सिर्फ अखबार पढ़े। The Logically अशोक कुमार के सफ़लता के लिए उन्हें बधाई देता है।