प्रत्येक व्यक्ति का कुछ न कुछ शौक ज़रुर होता है। किसी को खेलने का शौक, किसी को किताबें पढ़ने का, किसी को संगीत का, किसी को खाना पकाने का। शौक तो किसी का दूसरें की मदद करने का भी होता है। आज हम जिस अलग शौक की बात कर रहें हैं, वह है- बिछड़ों को उसके परिवार से मिलाने का शौक। सब कोई अपने शौक को पूरा करने की कोशिश करता है। पैशन.. आनन्द, मनोरंजन और कुछ नया सीखने का बहुत अच्छा जरिया है। अपनी पैशन को पूरा करने के लिए आदमी अपनी फुर्सत के समय का सही उपयोग कर पाता है। ऐसे ही एक पुलिस अधिकारी है जिनका शौक सालों से बिछड़े बच्चे को उनके परिवार से मिलाना हैं। भूले हुए उस बच्चे के मिल जाने के बाद परिवार वालों और उस बच्चे के चेहरे की मुस्कुराहट उन्हें बड़ा सुकून देती है।
आइये जानते हैं एक पुलिस अधिकारी होने के बाद भी वह इस भागदौड़ की जींदगी में अपने शौक को कैसे पूरा करते हैं?
एएसआई (ASI) राजेश कुमार (Rajesh Ray) 2015 में हरियाणा (Hariyana) के एंटी-ह्युमन-ट्रैफिकिंग टीम को ज्वाइन किया। वर्तमान में राजेश कुमार पंचकुला (Panchkula) में कार्यरत हैं। 2015 में एंटी-ट्रैफिकिंग दल को ज्वाइन करने के बाद से ही राजेश कुमार ने वैसे बच्चे जो सालों से अपने परिवार से अलग हो गये थे उनको मिलाने का काम प्रारंभ कर दिया था। कुमार यह कोशिश लगातार करतें हैं। यह उनका जुनून हैं। कुमार का यह काम उनकी ड्यूटी (Duty) से अलग हैं। इस सफर का आरंभ उन्होनें एक ऐसे 12 साल के बच्चे को उसके परिजन से मिलवा कर किया जो बच्चा ना तो बोल सकता था और ना ही सुन सकता था। वह बच्चा नजफगढ़ के शेल्टर में था। उसका परिवार मुज्जफ्फरपुर (Muzaffarpur) में रहता हैं। ऐसी स्थिति में कुमार गांव वालों को कॉल कर के गांव के सरपंच और वहां के पुलिस अधिकारी से बात करतें हैं और पता करतें हैं कि वहां कोई शिशु गुम हुआ है या नहीं।
कुमार (Kumar) ने अभी तक 500 से अधिक बच्चों को उनके परिजन से मिलवाया हैं। इनमें से 50 बच्चे दिल्ली के रहने वाले हैं। कई बार कुमार को भाषाई कठिनाइयों का सामना करना पड़ता है, ऐसी स्थिति में वक्त अधिक लग जाता है।
The Logically कुमार के शौक और जुनून को नमन करता हैं, जिनका शौक हमें दूसरों की सहायता करने की सीख देती है।