Wednesday, December 13, 2023

10 सालों की मेहनत के बाद विकसित हुआ Bionic Eye, अब पूर्ण रूप से दृष्टिहीन भी देख सकेंगे दुनिया

खुली आंखों से सबकुछ देख पाने का मोल एक दृष्टिहीन व्यक्ति ही समझ सकता है, जिसने कभी संसार को देखा ही नहीं या किसी कारण उसकी आंखों की रोशनी चली गई हो। बहरहाल वैज्ञानिकों ने अब इसका भी उपाय निकाल लिया है। क्योंकि अब विज्ञान काफी तरक्की कर चुका है इसी कड़ी में एक नई तकनीक विकसित हुई है, जिससे बायोनिक आंखों (Bionic Eye) का आविष्कार मुमकिन हो पाया है। खास बात यह है कि बायोनिक आंखों की मदद से अब दृष्टिहीन व्यक्ति भी दुनिया को देख पाएगा। आइए इसके बारे में और गहराई से जानते हैं।

ऑस्ट्रेलिया में विकसित हुआ विश्व का पहला बायोनिक आंख

ऑस्ट्रेलिया की मोनाश बायोमेडिसिन डिस्कवरी यूनिवर्सिटी (Monash Biomedicine Discovery Institute) के रिसर्चर्स ने बायोनिक आंख का आविष्कार किया है, ये आंख काफी गहन रीसर्च के बाद विकसित की गई है। खुशी की बात यह है कि इस बायोनिक आंख का परीक्षण हो चुका है, और अब इसे मनुष्य के दिमाग में लगाने की तैयारी चल रही है। रिसर्चर्स ने यह दावा किया है कि ये दुनिया की पहली बायोनिक आंख है।

fit bionic eye

क्या है बायोनिक आंख, कैसे करेगा काम ?

मीडिया रिपोर्ट्स के अनुसार यूनिवर्सिटी के इलेक्ट्रिकल और कंप्यूटर इंजीनियरिंग विभाग के प्रोफेसर लाओरी ने बताया कि – रिसर्चर्स ने एक वायरलेस ट्रांसमीटर चिप तैयार की है, जो मस्तिष्क की सतह पर फिट की जाएगी। वैज्ञानिकों ने इस आविष्कार को बायोनिक आंख का नाम दिया है। इस आंख में कैमरे के साथ हेडगियर भी फिट किया गया है। ये आस-पास होने वाली गतिविधियों पर नजर रखकर सीधा दिमाग से संपर्क करेगा। इस डिवाइस का आकार नौ गुणा नौ मिमी है। बायोनिक आंख को बनाने में दस साल से ज्यादा का समय लगा है। जिसमें कई लोगों की कड़ी मेहनत शामिल है।

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डिवाइस बेचने के लिए फंड की मांग

प्रोफेसर लाओरी का मानना है कि इस बायोनिक आंख की मदद से मनुष्य की दृष्टिहीनता को कम करने में मदद मिलेगी। ये आंख जन्म से नेत्रहीन व्यक्ति को भी लगाई जा सकती है। फिलहाल रिसर्चर्स ने इस डिवाइस को बेचने के लिए फंड की मांग की है। हालांकि पिछले साल उन्हें 7.35 करोड़ रुपये का फंड दिया गया था।

developed world's first bionic eye

भेड़ों पर हुआ सफल परीक्षण, अब इंसानों में फीड करने की तैयारी

मोनाश इंस्टीट्यूट के डॉक्टर यांग वोंग ने बताया कि रीसर्च के दौरान दस डिवाइस का परीक्षण भेड़ों पर किया गया था। इनमें से सात डिवाइसों ने भेड़ो को कोई नुकसान नहीं पहुंचाया था और नौ महीने तक वो भेड़ों की आंखों में सक्रिय रही थीं।