शायद ही कोई भारतीय होगा जिसको चावल खाना पसंद ना क्योंकि चावल हो भारतीय खाने का बेहद अहम हिस्सा है। कई लोग चावल को भात के नाम से भी जानते हैं। शायद ही ऐसा कोई भारतीय घर हो जहां रोज दिन में कम से कम एक बार चावल न बने। चावल भारत के हर एक कोने में काफी प्रसिद्ध है फिर चाहे वो उत्तर भारतीय घर हों या दक्षिण भारतीय घर। कितने लोगों के साथ तो ऐसा होता है की अगर वह चावल न खाए तो उनके पेट ही नहीं भरता है। भारत में दाल चावल,राजमा चावल, छोले चावल,खिचड़ी आदि हमारे लिए कम्फ़र्ट फ़ूड है। जिसको खाने के बाद मन और पेट दोनों भर जाते है। चावल तो अनेकों तरह का होता है लेकिन क्या आप बांस से बने चावल (Bamboo Rice) के बारे में जानते हैं, इसकी भी एक खास प्रजाति होती है।
हम भारतीय बरसों से चावलों के साथ तरह तरह के एक्सपेरिमेंट करते आ रहे हैं। दक्षिण के लोग चावल को पीसकर इडली और डोसा बनते है। पूर्वी राज्यों में चावल के आटे से पीठा बनाया जाता है। यहां तक की फिरनी भी चावल से ही बनती है। इसी चावल के कई प्रकार होते है। एक रिपोर्ट की मानें तो भारत में 6000 से ज़्यादा वैराइटी के चावल मिलते हैं।
जंगल से प्राप्त होता है बैम्बू राइस (Bamboo Rice)
इन 6000 से ज़्यादा वैराइटी के चावल में एक किस्म का चावल ऐसा भी है जो आम राशन की दुकानों पर या होलसेल की दुकानों पर नहीं मिलेगा। इस खास किस्म के चावल का नाम है, बैम्बू राइस (Bamboo Rice) या बांस का चावल। इस चावल को मूलयारी (Mulayari) नाम से भी जाना जाता है। ये एक मरते बांस के पेड़ की आख़िरी निशानी होती है।
मरते बांस के झाड़ की आख़िरी निशानी होती है ये चावल
अगर बांस की झाड़ में फूल आ जाए तो इसका मतलब यह होता है कि वो झाड़ मरने वाली है। बैम्बू राइस या बांस का चावल मरते बांस के झाड़ की आख़िरी निशानी है। बांस के फूल से एक बेहद दुर्लभ किस्म का चावल निकलता है जिसे बांस का चावल (Bamboo rice) कहते है। आपको बता दे की वायानाड सैंचुरी के आदिवासियों के लिए ये चावल न सिर्फ़ खाने पीने का बल्कि आय का भी साधन है। इस क्षेत्र में कई महिलाएं और बच्चे बांस के चावल इकट्ठा करते और बेचते नज़र आते हैं।
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मुश्किल होती है बांस के चावल की कटाई
बांस की झाड़ कब फूल देगी इस बारे में पता नहीं लगाया जा सकता। आमतौर पर किसी बांस की झाड़ में 50-60 साल बाद ही फूल निकलते हैं, यानि 100 साल में 1-2 बार ही बांस के चावल उगते हैं। साफ़-सुथरा बांस का चावल इकट्ठा करने के लिए बांस के मूल के आस-पास के क्षेत्र को अच्छे से साफ़ किया जाता है। इसके बाद मूल पर मिट्टी पोती जाती है और उसे सूखने के लिए छोड़ दिया जाता है। सूखने के बाद बांस के चावल (Bamboo rice) को स्टोर किया जाता है और फिर इकट्ठा किया जाता है।
क्यों अलग है बांस के चावल
बांस के चावल में दूसरे चावल की अपेक्षा में पौष्टिक तत्त्वों की ज़्यादा मात्रा होती है। यह चावल का स्वाद गेहूं जैसा होता है। इस चावल का ग्लाइकेमिक इंडेक्स कम होता है और इस वजह से ये शुगर पेशेंट के लिए लाभदायक है। इसके अलावा इसमें प्रोटीन की भी अधिक मात्रा होती है और लो फ़ैट होता है। ये चावल एक अच्छा डिटोक्सिफ़िकेशन एजेंट है और ये रिप्रोडक्शन में भी सुधार लाता है।
बांस के चावल से क्यों आकर्षित होते हैं चूहे
बांस के चावल से चूहे इसीलिए आकर्षित होते हैं क्योंकि इस चावल में प्रोटीन की अधिक मात्रा होती है। चूहे चावल चट कर जाने के बाद वे अन्य पौधों को भी नुकसान पहुंचाते हैं। इंसानों के लिए सबसे सिरदर्दी वाला फ़ैक्ट ये है कि चूहे बेहद जल्दी प्रजनन करते हैं। 1959 में जब यहां बांस में फूल लगे थे और चावल निकले थे, चूहों ने वो खा लिया था और इलाके में अकाल पड़ गया था। अभी फ़िल्हाल देश में कई ऐसे लोग है जो बांस के चावलों से रूबरू नहीं है इसीलिए मार्केट में चावलों की उतनी डिमांड नहीं है लेकिन आने वाले सालों में इसकी मार्केट वैल्यू बढ़ने की उम्मीद है।