हर व्यक्ति की ख़्वाहिश होती है कि वह अपने काम स्वयं करे, लेकिन इसके साथ यह भी जरूरी है कि वह शारीरिक रूप से स्वस्थ्य हो, तभी वह स्वयं अपने काम कर सकता है।
आज की हमारी यह कहानी एक ऐसे शख़्स की है, जिनके रीढ़ की हड्डी टूटी हुई थी। शरीर का निचला हिस्सा लकवाग्रस्त हो गया है लेकिन वह फिर भी अपने कार्य स्वयं करने के लिए कार चलाते हैं।
अरशद अहमद पंडित (Arshad Ahmad Pandith)
अरशद अहमद पंडित (Arshad Ahmad Pandith) जब साल 1995 में श्रीनगर से अपने घर जा रहे थे, तब आतंकवादियों के बीच हुई झड़प में उन्हें 3 गोलियां रीढ़ की हड्डियों में लगी। जिस कारण उनके शरीर का निचला हिस्सा एवं रीढ़ की हड्डी क्षतिग्रस्त हो गई।
मिला मेडिकल साइंस में जॉब
उन्होंने बताया कि उस घटना के बाद वे लगातार दो साल बिस्तर पर रहे। चिकित्सा प्रौद्योगिकी में स्नातक की डिग्री के साथ , अरशद का इरादा दिल्ली के जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय या कश्मीर विश्वविद्यालय में प्रवेश पाने का था। हालांकि उन्हें श्रीनगर के शेर-ए-कश्मीर इंस्टीट्यूट ऑफ मेडिकल साइंस में नौकरी मिल गई, क्योंकि वे मेडिकल के छात्र थे। – Being physically challenged Arshad Ahmad Pandit innovates his own car
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बनाई स्वयं के चलाने लायक कार
नौकरी लगने के बाद उन्हें काम पर पहुंचाने का जिम्मा उनके भाई का था। अरशद को इस बात के लिए बुरा लगता था कि उनके कारण बाकी लोग परेशान रहते हैं। तब उन्होंने निश्चय किया कि वे कुछ ऐसा निर्माण करेंगे, जिससे उनकी समस्या दूर हो और उन्हें लाचारी का अनुभव भी ना हो।
उन्होंने अपने भाई और एक स्थानीय मैकेनिक की मदद से छह साल बाद एक ऐसी कार बनाई जिसे वे चला सकें। यह कार स्कूटर की तरह काम करती है, जिसमें एक्सीलेटर, ब्रेक और क्लच को अपने हाथों से ही कंट्रोल कर सकते हैं। – Being physically challenged Arshad Ahmad Pandit innovates his own car
मिले कई सम्मान
उन्होंने बताया, “मुझे इम्यूनोलॉजी में पोस्ट-ग्रेजुएशन पूरा करने के बाद पीएचडी प्रोग्राम के लिए चुना गया।” “वही वर्ष 2014 में मुझे राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी द्वारा राष्ट्रीय पुरस्कार से सम्मानित किया गया।” उन्होंने यह भी बताया कि उन्होंने एक किताब भी लिखी है। – Being physically challenged Arshad Ahmad Pandit innovates his own car while working in Advanced centre for human genetics, SKIMS
अरशद की जिंदा दिली को The Logically नमन करता है।