भारत में शिक्षा व्यवस्था दो भाग में विभाजित है – सरकारी और प्राइवेट। सरकारी स्कूलों की तुलना में एक्स्ट्राऑर्डिनरी फैसिलिटी से लबरेज प्राइवेट स्कूलों की मांग अधिक है। इसकी वजह बताने के लिए मुझे ज्यादा डीप जाने की जरूरत नहीं हैं क्योंकि सरकारी स्कूलों के बदहाल हालत खुद अपनी दास्तां बयां करते हैं।
सरकारी स्कूल की पलट गई काया
बिहार में मुजफ्फरपुर(Muzaffarpur) के भटोना(Bhatona) गांव में एक ऐसा सरकारी स्कूल है जिसे देखकर हर कोई वाहवाई कर रहा है। तस्वीर देखने पर ये किसी प्राइवेट स्कूल की तरह ही लग रहा है। लेकिन दरअसल यह राजकीय प्राथमिक विद्यालय है जिसकी हालत कुछ दिनों पहले तक काफी दूभर थी। टूटे फूटे दीवारों पर निशान धब्बे तो कहीं सीलिंग से पानी की लीकेज आप तस्वीरों में साफ देख सकते हैं। पर अब यही स्कूल लोगों के आकर्षण का केंद्र बन गया है।

गांव निवासियों के खिल उठे चेहरे
दो मंजिले इस स्कूल में 6 क्लासरूम, एक लाइब्रेरी, किचेन और वॉशरूम की सुविधा है। साथ ही दीवारों पर हुई खूबसूरत पेंटिंग इस पर चार चांद लगा रही है।
पूरे परिसर में सफाई रंगाई हो जाने के बाद गांव के लोग भी इससे काफी खुश है। और लगातार टीम के प्रयासों का बखान कर रहे हैं। वास्तव में इसे देखकर कोई भी बच्चा स्कूल जाने को अब ना नहीं कह पाएगा।

“Being social-एक नई शुरुआत” के टीम का अहम योगदान
इसके पीछे दरअसल “Being Social-एक नई शुरुआत” की टीम का अहम योगदान है। वह संस्था जो मानव कल्याण के प्रयासों में कई सालों से कार्यरत है।
The Logically से बातचीत के दौरान संस्था के संस्थापक गौरव(Gaurav Singh) ने बताया कि अबतक उन्होंने अपनी टीम के साथ बैंगलोर और पुणे में ऐसे ही कई सरकारी स्कूलों पर काम किया है और हाल ही में बिहार के इस स्कूल को मिलाकर अबतक कुल 14 स्कूलों की काया पलट चुके हैं। अकेले मुजफ्फरपुर के इस सरकारी स्कूल के नवीकरण के लिए 70 हजार का व्यय लगा। देखते ही देखते 10 दिन में स्कूल का हुलिया बदल गया। बता दें कि इसका व्यय खुद संस्था और वॉलंटियर्स ने उठाया है।

गौरव(Gaurav Singh) ने बताया कि उन्हें फिलहाल 7-8 सरकारी स्कूलों से नवीकरण के लिए निवेदन आ चुके हैं। जिसके लिए वह और उनकी टीम प्रयास में लगे हुए हैं।
“Being Social क्यों है स्पेशल” कैसे हुई इसकी शुरुआत ?
Being social दरअसल चार दोस्त गौरव सिंह, प्रवीण, गौरव खुराना और आशीष की सोच है। इनकी मुलाकात पहली बार सोशल मीडिया पर हुई। सभी ने मिलकर अपनी सूझबूझ से 2015 में इस संस्था की नींव रखी।

शुरुआती दौर में वें गरीब बस्तियों में बेहतर शिक्षा, सैनिटेशन फैसिलिटी और सीनियर सिटिजन के लिए प्रयासरत रहें। बाद में लोग मिलते गए और कारवां बढ़ता चला गया। आज उनकी टीम में तकरीबन पांच हजार वोलंटियर्स शामिल है। जबकि वे अब तक प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से 2.5 मिलियन जरूरतमंदों की मदद कर चुके हैं। जो अपने आप में ही किसी रिकॉर्ड से कम नहीं।

कोविड के दौरान भी यह संस्था जरूरतमंदों के लिए सक्रिय रहीं। संस्था के ही वॉलंटियर ने बताया कि बीते कुछ महीनों पहले बिहार में आई बाढ़ ने कई घरों को उजाड़ दिया था। जिस दौरान उन्होंने 15 हजार पीड़ितों के लिए राशन, दवा और अन्य जरूरी चीजों की पूर्ति की थी। इसके अलावा संस्था की ही पहल “पहचान” गरीब बस्तियों के नौनिहालों के अंदर छिपे टैलेंट को पंख देने का काम करती है।

इन सब के बाद Being social-एक नई शुरुआत को आगे अभी लंबा सफ़र तय करना है। आपको बता दें कि मुजफ्फरपुर(Muzaffarpur) के जिस सरकारी स्कूल में उन्होंने हाल ही में नवीकरण का काम किया है वह अभी पूरा नहीं हुआ है। स्कूल के प्लेग्राउंड को बेहतर बनाने के लिए टीम अभी भी काम कर रही है। फिलहाल स्कूल में बिजली तक की व्यवस्था नहीं है। ऐसे में अगर आप टीम को अपना समर्थन दे सकेंगे तो ग्रामीण इलाकों में मौजूद इन सरकारी स्कूलों में नौनिहालों के लिए और भी बेहतर स्कूल तैयार हो सकते हैं।
The Logically इस टीम के प्रयास को नमन करते हुए अपने पाठकों से अपील करता है कि, जहां भी मौका मिले समाजिक उत्थान में अपनी सहभागिता सुनिश्चित करें और ऐसे नेक कार्यों में बढ़-चढ़कर हिस्सा लें।