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MBA की डिग्री लेकिन तनिक भी घमण्ड नही, 100 से भी अधिक लाशों के अंतिम संस्कार किया

भारत मे रोजाना बढ़ते कोरोना मरीजों की संख्या तथा उस वायरस से मरने वालों की संख्या ने चारों तरफ एक तबाही का मंजर खड़ा कर दिया है। लोग इतना डर गए है कि अपने पड़ोसी के भी शव नही उठा रहे है। ऐसे में राजामहेंद्रवरम के रहने वाले 27 वर्षीय एमबीए होल्डर भरत राघव (Bharat Raghav) हम सबके बीच एक देवदूत बन कर सामने आए हैं। उन्होंने अभी तक 110 से ज़्यादा शवों का दाह संस्कार व अंतिम क्रिया कराया है।

110 से ज़्यादा शवों का किया दाह संस्कार व अंतिम क्रिया

भारत मे अन्य राज्यो की तरह आंध्र प्रदेश में भी कोरोना मरीजो की संख्या प्रति दिन बढ़ रही है। रोजाना कई लोग इस संक्रमण से मर रहे है। अब तो लोग इस महामारी से इतना डर गए है कि वो अपने दोस्तों, रिश्तेदारों तथा पड़ोसियों का भी शव छूने तथा उनको श्मशान घाट ले जाने से घबराते है। ऐसे में भरत राघव ने अब तक 110 से ज़्यादा शवों का दाह संस्कार व अंतिम क्रिया किया है। भरत सभी मरने वाले लोगों को उनके धर्म के अनुसार अंतिम संस्कार करते है।

Bharat Raghav doing last rites

पिता के मृत्यु के बाद लावारिस शवों का अंतिम संस्कार करने का किया फैसला

भरत बताते है कि, जब वह अपनी पढ़ाई कर रहे थे, उसी समय उनके पिता की अचानक मृत्यु हो गई। उस समय घर की माली हालत ठीक नही होने के कारण उचित समय पर पिता का दाह संस्कार नही हो पाया। घरवालों के पास उतने पैसे नही थे कि शव को विशाखापट्टनम से राजमहेन्द्रवरम लाया जा सके। जिसके कारण उनके पिता के शव को अंतिम संस्कार करने में पूरे एक दिन लग गए। एक दिन तक उनके पिता का शव लावारिसों की तरह पड़ा रहा। इस घटना ने भरत को पूरी तरह झकझोर कर रख दिया। जिसके बाद भरत ने फैसला किया कि, आज के बाद लावारिस शवों का अंतिम संस्कार मैं जरूर करूँगा।

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अंतिम संस्कार पर होने वाला सारा खर्च खुद उठाते है, भरत

भरत राघव (Bharat Raghav) अंतिम संस्कार में होने वाला सभी खर्च खुद उठाते है। अभी भारत मे ऐसा दौर चल रहा है कि कोरोना के डर से लोग खुद के रिश्तेदार तथा पड़ोसियों के शव भी नही उठा रहे है। जब भरत ने इस मंजर को देखा तो उन्होंने अपने कुछ दोस्तों के साथ मिलकर यह तय किया कि, वो उन मरने वाले लोगो का अंतिम संस्कार करेंगे, जिनका कोई नही है तथा जिनके रिश्तेदार तथा पड़ोसी कोरोना की डर से शव को श्मशान नही ले जा पा रहे। वह शवों को श्मशान तक पहुंचाने के लिए वाहन, पीपीई किट्स और अंतिम संस्कार पर होने वाला सभी खर्चे को भी खुद उठाते है। भरत अब इस काम को अपने दोस्तों के साथ मिलकर जिम्मेदारी के साथ पूरा करने में लगे है।

निधि बिहार की रहने वाली हैं, जो अपनी पढ़ाई पूरी करने के बाद अभी बतौर शिक्षिका काम करती हैं। शिक्षा के क्षेत्र में कार्य करने के साथ ही निधि को लिखने का शौक है, और वह समाजिक मुद्दों पर अपनी विचार लिखती हैं।

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