खेती करना भी एक कला है। अगर हम एकाएक खेती करने की कोशिश करें तो ये सफल होना मुश्किल होता है। इसके लिए हमें पहले से पूरी जानकारी प्राप्त करनी होती है। हमारे जीवन में किसानों की एक बहुत अहम भूमिका है। उनके द्वारा किए गए कड़ी मेहनत की वजह से हीं हमें भोजन प्राप्त होता है। हमारे देश को कृषि प्रधान देश भी कहा जाता है। हमारे देश के किसानों के अधिकारों के लिए सरकार के द्वारा बहुत से मुद्दे भी उठाए गए हैं जिनपर आज काम किया जा रहा है।
आधुनिक खेती
समय के साथ खेती करने के तरीके में भी बहुत से बदलाव पाए गए हैं। 21वीं सदी में जहां जीवन की हर सुविधा के लिए हम आधुनिक होते जा रहे हैं, वहीं किसानों ने भी आधुनिक खेती को अपनाया है। इस तरीके से किसानों को अधिक लाभ होता है। उसमें उनकी लागत कम होती है और लाभ ज्यादा। सिर्फ इतना ही नहीं इसमें किसानों को बहुत ज्यादा मेहनत भी नहीं करना पड़ता। आज हम एक ऐसे हीं किसान की बात करेंगे जिन्होंने अपने अनोखे कार्य से अपनी अलग हीं पहचान बनाई है।
मिश्रीलाल राजपूत (Mishrilal Rajput)
मिश्रीलाल राजपूत भोपाल (Bhopal) शहर के खजूरीकला (Khajuri kala) गाँव के रहने वाले हैं। वह एक किसान हैं। जंगली पौधों के बारे में हम कुछ ज्यादा नहीं जान पाते, क्यूंकि हमें ऐसा लगता है कि वह हमें कुछ नहीं देता। वो किसी काम मे नहीं आता। परंतु मिश्रीलाल ने इस बात को गलत साबित करते हुए जंगली पौधों में टमाटर, बैंगन जैसी सब्जियां उगाईं। उन्होंने ऐसा करने के लिए ग्राफ्टिंग तकनीक का प्रयोग किया।
मिश्रीलाल ने दी ग्राफ्टिंग की जानकारी
इस तकनीक में जैविक खाद का प्रमुखता से इस्तेमाल किया जाता है। इस तकनीक की सबसे खास बात यह है कि इसमें पौधा हर मौसम का प्रहार आसानी से झेल पाता है। जैसे कि कम पानी हो या अन्य विपरीत परिस्थितियां, उनका इन पौधों पर ज्यादा असर नहीं पड़ता। इस तकनीक से उगाए गए पौधों का जङ जंगली पौधे के जैसा रहता है, जिसकी वजह से वह कम पानी और विपरीत परिस्थितियों में भी तेजी से बढ़ता है। इस तकनीक से एक साथ कई वैरायटी भी पैदा की जा सकती है।
रमन राव (Raman Rao) ने की मिश्रीलाल के कार्य की तारीफ
केंद्रीय कृषि अभियांत्रिकी संस्थान, नबीबाग, भोपाल के वरिष्ठ कृषि वैज्ञानिक रमन राव (Ranan Rao) बताते हैं कि मिश्रीलाल द्वारा किया गया यह प्रयोग बहुत जल्द हीं सब्जी उत्पादन में क्रांति लाने वाला है। मिश्रीलाल बताते हैं कि इन पौधों का जङ जंगली प्रजाति के पौधे की तरह होने की वजह से इन पर ग्राफ्टिंग तकनीक से टमाटर का पौधा लगाया जा सकता है। यही प्रयोग मिर्च के पौधों के साथ भी किया गया है।
मिश्रीलाल ने साझा किया अपना अनुभव
मिश्रीलाल अपने अनुभव के जरिए बताते हैं कि एक ट्रे में जंगली पौधा और दूसरे में टमाटर, आदि का पौधा लगाया जाता है। ग्राफ्टिंग का सबसे सही समय तब होता है जब जंगली पौधा 6 इंच तक लंबा हो जाए और साथ हीं टमाटर का पौधा 15 दिन का हो जाए तो ये ग्राफ्टिंग का सही समय है।
मिश्रीलाल ने बताया ग्राफ्टिंग का तरीका
मिश्रीलाल ने ग्राफ्टिंग के तरीके को बताते हुए कहा कि जब जंगली पौधे की जड़ के ऊपरी तने में कट लगाकर संबंधित सब्जी के पौधे को ग्राफ्ट कर दिया जाता है। उसके बाद उसको 15 दिन तक छांव में ही रखना चाहिए उसके बाद ये पौधा बाहर लगाने के लिए पूर्ण रूप से तैयार होता है। इसमें भी मदर प्लांट जंगली होता है, जबकि उसके तने में सब्जी का पौधा ग्राफ्ट कर दिया जाता है।
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कृषि वैज्ञानिकों ने की मदद
मिश्रीलाल ने ये प्रयोग कृषि वैज्ञानिकों के मदद से किया। वह बताते हैं कि इस तकनीक से वो जंगली पौधे में कई स्थानों पर ग्राफ्टिंग करके एक हीं पौधे से सब्जी के कई वैरायटी की पैदावार कर लेते हैं। यह तकनीक कई तरह की बीमारियों को दूर भगाने में भी कारगर है।
मिश्रीलाल बनें कृषकों के लिए प्रेरणा
भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद, दिल्ली के वेजीटेबल सेक्शन हेड भोपाल सिंह ( Bhopal singh) बताते हैं कि मृदा जनित बीमारियों की वजह से बहुत से सब्जियों का फसल खराब हो जाता है। जिसमें ग्राफ्टिंग टेक्नोलॉजी (Grafting Technology)मददगार साबित होती है। इससे मिश्रीलाल को प्रेरणा मिली और वो इस क्षेत्र में कार्य करने लगे। आज वो एक सफल कृषक बनें और दूसरे कृषकों को भी ग्राफ्टिंग टेक्नोलॉजी के बारे में प्रोत्साहित किया।
The Logically मिश्रीलाल राजपूत के इस अनोखे कार्य की तारीफ करता है तथा उनके इस कामयाबी के लिए उन्हें बधाई देता है।