ज़िंदगी में सफलता कभी भी आसानी से नहीं मिलती। इसके लिए लगातार संघर्ष करना होता है। आज की हमारी कहानी एक ऐसे इंसान की है जिसने स्नैक फैक्ट्री में काम करने से लेकर आर्मी अफसर बनने तक का सफर तय किया है। ओडिशा में एक स्नैक फैक्ट्री में प्रतिदिन 50 रुपये कमाकर संघर्ष से अपने जीवन बिताते हुए जिस तरह इस युवा ने भारतीय सेना में एक सैनिक की उपाधि हासिल की है, वह सभी के लिए प्रेरणादायक है।
बालबंका तिवारी
भारतीय सैन्य अकादमी से स्नातक की उपाधि प्राप्त करना आरा (Ara) के सुंदरपुर (Sundarpur) बरजा गांव के 28 वर्षीय बालबंका तिवारी (Balbanka Tiwari) के लिए यह एक लंबी और कठिन यात्रा रही है। शनिवार का दिन इनके लिए एक खास दिन था। उस दिन इन्होंने 325 अन्य भारतीय जेंटलमैन कैडेट्स के साथ पासिंग आउट परेड में हिस्सा लिया था। साथ ही वह अपनी बेटी से उसके जन्म के तीन महीने बाद पहली बार मिले थे।
किया है स्नैक फैक्ट्री में काम
इन्होंने यह कहा कि इस दिन को देखने के लिए मैंने बहुत संघर्ष किया है। आर्थिक रूप से कमजोर होने से इन्होंने स्कूली शिक्षा के दौरान प्रतिदिन 50 रुपये कमाने वाले एक स्नैक फैक्ट्री में काम किया था। अपने परिवार की आर्थिक स्थिति देखते हुए इन्होंने हाई स्कूल की शिक्षा पूरी करने के बाद एक ट्यूशन शिक्षक के रूप में भी काम किया था।
पिता हैं किसान
इन्होंने यह बताया कि मेरे पिता एक किसान थे और हम एक संयुक्त परिवार में रहते थे। हम दो भाई-बहन हैं। जिस कारण मेरे पास दसवीं कक्षा पास करने के बाद काम करने के अलावा कोई चारा नहीं था। इन्होंने बताया कि मैट्रिक पास करने के बाद काम करने के लिए मैं 2008 में ओडिशा (Odisha) के राउरकेला (Rourkela) गया। वहां बालबंका ने पहली बार लोहे की फिटिंग फैक्ट्री में काम किया। यह काम इन्होंने कुछ महीनों के लिए किया। फिर एक स्नैक फैक्ट्री में 12 वीं कक्षा तक 50 रुपये प्रतिदिन कमाये।
पढ़ाया ट्यूशन
अपने संघर्ष के दिनों को याद करते हुए तिवारी ने कहा कि हाई स्कूल पास करने के बाद, उन्होंने कुछ अतिरिक्त पैसे कमाने के लिए एक ट्यूशन शिक्षक के रूप में भी काम करना शुरू किया। जिससे वह पैसे अपने परिवार को बिहार में वापस भेज सकें। उन्होंने स्नातक के लिए एक स्थानीय कॉलेज में दाखिला लिया। एक दिन उनके चाचा ने उन्हें बिहार में अपने घर के पास दानापुर इलाके में एक सेना भर्ती रैली के बारे में सूचित किया।
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हुए सेना में भर्ती
इनके चाचा एक सिपाही के रूप में सेना में थे जिससे यह भी राष्ट्र की सेवा करने के साथ-साथ एक प्रतिष्ठित आजीविका अर्जित करना चाहते थे। आगे वह परीक्षण में उपस्थित हुए और दूसरे प्रयास में पास हुए। फिर सिपाही के रूप में सेना में शामिल हुए। बालबंका बताते हैं कि उनकी पोस्टिंग 2012 में भोपाल में सेना के ईएमई केंद्र में हुई। भोपाल में सेवारत रहते हुए उन्हें सेना के कैडेट कॉलेज (एसीसी) के बारे में पता चला जब उन्हें एक सिपाही से एक अधिकारी के पद पर पदोन्नत किया गया। इन्होंने यह जानकारी दी कि उन्होंने 2017 में आईएमए में टेस्ट में सफलता हासिल की और एसीसी में शामिल हो गए। वहां से आखिरकार आज एक आर्मी ऑफिसर के रूप में काम कार्यरत हैं।
मिले 3 माह बाद अपनी बेटी से पहली बार
उनकी उपलब्धि से उन्हें दुहरी खुशी मिली क्योंकि वह तीन महीने बाद पहली बार अपनी नवजात बेटी से मिले। वह दिन तिवारी के लिए और अधिक यादगार बन गया है। बालबंका अपनी बेटी से पहली बार उसके जन्म के तीन महीने बाद मिलें। अब इनकी चाहत अपने बेटी के साथ समय बिताने की है। अपने सफलता के दिन को देखने के लिए इन्होंने अपने जीवन में बहुत संघर्ष किया है। इनकी पत्नी ने बताया कि मैं अब उसे अपने सपने को पूरा करते हुए देखकर बहुत खुश हूं। मुझे यकीन है कि मेरे पति एक सेना अधिकारी के रूप में सेवा करके हमें और देश को गौरवान्वित करेंगे।
अपनी मेहनत से सेननिवृत होकर देश की सेवा करने के लिए The Logically बालबंका तिवारी (Balbanka Tiwari) को सहृदय सलाम करता है।