Wednesday, December 13, 2023

कोलकत्ता की गलियों में घूमकर साड़ी बेचने से हुई थी शुरुआत, आज एक आईडिया ने 50 करोड़ का मालिक बना दिया

किसी भी मंजिल तक पहुंचने के लिए बस एक छोटी सी शुरुआत की जरूरत है। अगर स्वयं पर विश्वास हो तो एक छोटा सा व्यवसाय भी एक बड़े कारोबार का रूप ले सकता है। कुछ ऐसी ही कहानी है बिरेन कुमार बसाक की जिन्होंने कभी घर-घर घूमकर साड़ियां बेंची और आज 50 करोड़ की कम्पनी स्थापित कर चुकें हैं।

बिरेन कुमार बसाक

बिरेन कुमार बसाक (Biren Kumar Basak) का जन्म 16 मई 1951 को अब बांग्लादेश (Bangladesh) के तंगेल (Tangail) जिले में हुआ। बीरेन चार भाइयों और दो बहनों में सबसे छोटे हैं। यह बुनकर परिवार से ताल्लुक रखतें हैं। इनके पिता बैंको बिहारी बसक (Bainko Bihari Basak) एक बुनकर थे, साथ ही कविताएं भी लिखतें थे। लगभग चार दशक हो गए हैं लेकिन बिरेन उन दिनों को अब तक भूल नहीं पाएं, जब वे कोलकाता (Kolkatta) की सड़कों पर घूमते थे, अपने कंधे पर साड़ियों के भारी बंडल ले जाते थे, दरवाजा खटखटाते और ग्राहकों की तलाश करते थे। आज 66 साल की उम्र में, वह साड़ी व्यवसाय में एक सफल उद्यमी है। देश भर के खरीदारों के साथ एक थोक व्यापारी और 50 करोड़ से अधिक का वार्षिक कारोबार कर रहें हैं।

Biren Kumar Basak

8 लोगों के साथ मिलकर खोला शॉप

उनके उद्यमी दिमाग और कड़ी मेहनत ने उन्हें 1987 में सिर्फ आठ लोगों के साथ अपनी दुकान खोलने के लिए प्रेरित किया। आज वह हर महीने देश भर में 16,000 हाथ से बुने हुए साड़ी बेंचतें हैं। यहां 24 कर्मचारी हैं जो लगभग 5,000 बुनकरों के साथ काम कर रहें हैं।

यह भी पढ़ें :- टीन की छत के नीचे शुरू किए थे काम, अनोखे आईडिया ने मात्र 34 साल की उम्र में अरबपति बना डाला

ग्राहकों की लिस्ट में बड़ी-बड़ी हस्तियों के नाम शामिल हैं

उनके ग्राहकों की लंबी सूची में पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी, पूर्व क्रिकेटर सौरव गांगुली, प्रख्यात शास्त्रीय संगीतकार उस्ताद अमजद अली खान, अभिनेत्री मौसमी चटर्जी जैसे कई नाम शामिल हैं। हालांकि उनके स्वभाव में सादगी और विनम्रता छलकता है।

Biren Kumar Basak sels sharee

2 वक़्त की रोटी के लिए होती थी दिक्क़त

बिरेन ने बताया कि उनके पिता की आय परिवार को चलाने के लिए पर्याप्त नहीं थी और उनकी कविता से एकल प्रदर्शन के लिए उन्हें 10 रुपये ही मिलतें थे। दो वक़्त के भोजन की व्यवस्था करना मुश्किल होता था, लेकिन सौभाग्यवश इनके पास लगभग एक एकड़ की भूमि थी जिसकी कृषि उपज से भोजन प्राप्त होता था।

फुलिया की तरफ हुआ पलायन

बिरेन ने कक्षा 6 तक की शिक्षा शिबनाथ हाई स्कूल से ली। वह अपनी पढ़ाई के साथ-साथ एक स्थानीय पुजारी से भजन भी सीखते थे। कम उम्र से ही ईश्वर के प्रति स्वाभाविक झुकाव था जिससे इन्हें हमेशा शांति मिलती। 1962 में उनके क्षेत्र में सांप्रदायिक तनावों ने उनके परिवार को तांगेल से पलायन करने और फुलिया आने के लिए मजबूर किया, जहां उनके कुछ रिश्तेदार रहते थे। इनके परिवार को यहां बहुत सारी परेशानियों का सामना करना पड़ा। आर्थिक तंगी की वजह से उन्हें पढ़ाई छोड़नी पड़ी।

मात्र 2.50 रुपये पूरे दिन की थी कमाई

फुलिया बुनकरों का एक केंद्र था, वहां साड़ी बुनाई का कार्य मिला जहां 2.50 रुपये प्रति दिन के मिलतें थे। अगले आठ वर्षों तक उन्होंने पारिवारिक आय के पूरक के लिए उसी कारखाने में काम किया।

Biren Kumar Basak sels sharee

शुरू किया खुद का कार्य

1970 में उन्होंने अपना खुद का व्यवसाय शुरू करने का फैसला किया। घर को गिरवी रखकर 10,000 रुपये का ऋण लिया जो उनके एक भाई ने फुलिया में खरीदा था। अपने बड़े भाई धीरेन कुमार बसाक के साथ मिलकर उन्होंने बिक्री के लिए साड़ियों के बंडल लेकर कोलकाता की यात्रा शुरू की। बीरेन बताते हैं, “हम स्थानीय बुनकरों से साड़ी खरीदते थे और फिर उन्हें बिक्री के लिए कोलकाता ले जाते थे। हर दिन सुबह 5 बजे शहर के लिए एक स्थानीय ट्रेन लेकर, घर-घर जाकर लगभग 80-90 किलोग्राम सामान अपने कंधों घुमा करतें थे। हालांकि साड़ियों की अच्छी गुणवत्ता और कम कीमत के कारण बहुत सारे ग्राहक मिलने लगे।”

50 हजार का हुआ हर महीने लाभ

क्लाइंट बेस बढ़ने लगा और इन्हें अच्छे ऑर्डर मिलने लगे और शुरू हुआ लाभ कमाना। 1978 तक दोनों भाई संयुक्त रूप से लगभग 50,000 रुपये प्रति माह कमा रहे थे। 1981 में दोनों ने दक्षिण कोलकाता में लगभग 5 लाख रुपये की लागत से 1,300 वर्ग फुट जगह खरीदी। 1985 में भाइयों ने अपनी दुकान पर धीरेन और बिरेन बसाक एंड कंपनी (Dhiren & Biren Basak company) की स्थापना की और वहां से साड़ियाँ बेचना शुरू कर दिया। उनकी दुकान का कारोबार अगले एक साल में लगभग 1 करोड़ रुपये का हुआ।

भाइयों का हुआ बंटवारा, लौटे कोलकाता से फुलिया

जल्द ही भाइयों बंटवारा हो गया और बिरेन 1987 में फुलिया लौट आए। बीरेन ने बताया कि उनके पास बचत में लगभग 70-80 लाख रुपये थे। तब वह अपने गांव लौट आये क्योंकि उन्हें ग्रामीण जीवन से प्यार था और वह केवल आजीविका के लिए कोलकाता में रहते थे। वह अपने प्यार का पीछा करना चाहते थे न कि पैसे का। बिरेन का मानना है कि जिन लोगों की धार्मिक मानसिकता है, उन्हें पैसे का लालच नहीं करना चाहिए।

Biren Kumar Basak

स्थापना हुई बिरेन बसाक एंड कम्पनी की

बिरेन ने एक साड़ी थोक व्यापारी बनने का फैसला किया। उनके पास हमेशा एक रचनात्मक दिमाग था और साड़ी डिजाइन करना उन्हें पसंद था। वापसी के तुरंत बाद, 1987 में उन्होंने अपने घर में लगभग आठ स्टाफ सदस्यों के साथ अपनी दुकान, बिरेन बसाक एंड कंपनी (Biren Basak & Company) की स्थापना की। लगभग 800 बुनकरों के साथ शुरुआत की गई, इनके साथ बिरेन की कंपनी ने साड़ियों के ऑर्डर दिए। वह पहले ही साड़ी डीलरों के साथ संपर्क विकसित कर चुके थे और उन्हें अपने नए उद्यम के बारे में सूचित कर चुके थे। जैसे-जैसे इन्होंने अपना बाज़ार बढ़ाना शुरू किया और कोलकाता में उनके भाई की दुकान की बिक्री में गिरावट शुरू हो गई। ऐसा इसलिए हुआ क्योंकि बिरेन अधिक रचनात्मक थे और लोगों को उनके द्वारा डिजाइन की गई साड़ियां ज़्यादा पसंद आती थी। वर्ष 2016-17 में उनकी कंपनी ने लगभग 50 करोड़ रुपये का वार्षिक कारोबार दर्ज किया।

बिरेन ने की शादी

बीरेन ने 1977 में शादी की और उनकी पत्नी बानी का उन्हें बहुत सहयोग मिला। इनक एक बेटा भी है। बीरेन अपनी सफलता का श्रेय काम, ईमानदारी और ईश्वर में विश्वास के प्रति अपने समर्पण को देते हैं।

मिला है अवार्ड

उद्यमी ने 2013 में केंद्रीय कपड़ा मंत्रालय द्वारा सम्मानित प्रतिष्ठित संत कबीर अवार्ड सहित कई पुरस्कार जीते हैं। अपनी कड़ी मेहनत और समर्पण से अधिक वह अपनी सफलता का श्रेय सर्वशक्तिमान को देते हैं और उनकी आध्यात्मिकता अब भी उनके जीवन का केंद्र है। The Logically बिरेन जी को मिली सफलता के लिए बधाई देता है।