नौकरी को ठुकराकर बंजर जमीन को फूड फॉरेस्ट में तब्दील किया, अब लाखों में कर रहे है कमाई
उत्तराखंड के रुद्रप्रयाग जिला में रहने वाले जगत सिंह (Jagat Singh) 1980 में बीएसएफ (BSF) से रिटायर्ड हुए थे। दोबारा नौकरी मिलने के ऑफर को ठुकराते हुए वे नहीं गए। पर इसकी जगह जगत सिंह ने गांव में रहकर अपनी बंजर पड़ी जमीन को हरा-भरा बनाने की मुहिम शुरू की। जगत ने एक के बाद एक अलग-अलग वैराइटी के पेड़-पौधे लगाने शुरू किए। 42 साल की मेहनत के बाद उन्होंने अपनी तीन हेक्टेयर जमीन को फूड फॉरेस्ट (Food Forest) में बदल दिया है। फूड फॉरेस्ट में 70 वैराइटी के 5 लाख से ज्यादा प्लांट मौदूत हैं। जिसकी बदौलत हर साल जगत की लाखों रुपए की कमाई हो रही है। साथ ही अब इस मुहिम में 50 से ज्यादा लोग जुड़ चुके है। इस मुहिम के लिए उन्हें उत्तराखंड का ग्रीन ऐंबैस्डर (Green ambassador) भी बनाया गया है।
गांव में लोगों को रोजगार दिया
साल 1967 में जब जगत ने अपनी ग्रेजुएशन की पढ़ाई पूरी की उसके बाद जगत सिंह बीएसएफ (BSF) में भर्ती हुए। साल 1971 में पाकिस्तान के साथ हुई जंग में भी उन्होंने भाग लिया। जगत का कहना कि साल 1974 में जब वो छुट्टी पर अपने गांव आए थे, तो उन्होंने देखा कि गांव के लोग नौकरी की तलाश में इधर-उधर भटक रहे थे। पहाड़ी इलाका होने और पानी की कमी की वजह से लोग खेती भी नहीं कर थे। सबसे ज्यादा दिक्कत तो महिलाओं को थी, उन्हें जलावन के लिए लकड़ियां भी नहीं मिल रही थीं।
तब जगत ने तय कर लिया था कि इन लोगों की मदद के लिए वह कुछ न कुछ जरूर करेंगे। उनके पास 1.5 हेक्टेयर की एक जमीन थी, जो बंजर पड़ी थी और इस पर कुछ होता नहीं था। जगत को लगा अगर इसमें पेड़-पौधे लगाए जाए तो कम से कम लकड़ी के लिए तो गांव की महिलाओं को इधर-उधर नहीं भटकना पड़ेगा। इसके बाद उन्होंने एक-एक करके पेड़-पौधे लगाना शुरू किया। हालांकि पानी की कमी की वजह से उन्हें काफी दिक्कतों का सामना करना पड़ा क्योंकि बारिश का पानी भी ठहरता नहीं था। फिर भी मैंने कोशिश जारी रखी। जब भी जगत छुट्टी पर आते थे तो कुछ न कुछ प्लांट लगाकर ही वापस जाते थे।
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कब शुरू हुई जंगल बसाने की मुहिम
साल 1980 में जगत सिंह रिटायर्ड हुए थे। इसके बाद उन्हें एक कंपनी में नौकरी का ऑफर दिया, लेकिन उन्होंने उस ऑफर को इनकार करते हुए दोबारा नौकरी करने की बजाय जंगल बसाने की मुहिम में जुटे रहे। जगत अपने रिटायरमेंट में मिला ज्यादातर अमाउंट भी इस मुहिम में खर्च कर दिया।
सबसे पहले जगत ने कुछ युवाओं के साथ मिलकर छोटे-छोटे बांध बनाना शुरू किया, ताकि बारिश के पानी को रोका जा सके। इसके बाद उन्होंने खेत को मवेशियों से बचाने के लिए खेत के चारों तरफ बाउंड्री लगानी शुरू की और इसका फायदा भी हुआ। कुछ समय बाद धीरे-धीरे ही सही लेकिन हरियाली फैलने लगी थी। इसके बाद जगत ने कभी पीछे मुड़कर नहीं देखा। गांव के दूसरे लोग भी उनके साथ धीरे-धीरे जुड़ते गए।
अब राज्य जंगली बाबा के नाम से जानता है
73 साल के जगत सिंह ने अपनी मेहनत के दम पर तीन हेक्टेयर बंजर जमीन को जंगल में बदल दिया है। उसमें जगत ने केसर, केदार पत्ती, इलायची, ब्राह्मी, आम, अमरूद, बांस सहित 70 से ज्यादा वैराइटी के 5 लाख प्लांट लगाए हैं। अब उनके 29 साल के बेटे राघवेंद्र भी उनकी मुहिम से जुड़ गए हैं। दोनों मिलकर इससे अच्छी कमाई कर रहे हैं। इसके साथ ही उन्होंने आसपास के किसानों और 40 महिलाओं को इस फील्ड में ट्रेन कर रोजगार से जोड़ा है। ये महिलाएं जंगली लकड़ियों से कई तरह की चीजें बनाती हैं। कोई बांस की टोकरी बनाती है तो कोई टी ट्रे और चटाई जिससे उनकी भी अच्छी खासी कमाई हो जाती है।
इतना ही नहीं विदेशी टूरिस्ट दूर दूर से जगत द्वारा बनाए गए जंगल का दीदार करने आते हैं। जगत सिंह को प्यार से लोग जंगली बाबा कहते हैं। उत्तराखंड सरकार ने जगह को ग्रीन ऐंबैस्डर बनाया है। साथ ही साथ उन्हें इंदिरा गांधी वृक्ष मित्र पुरस्कार,आर्यभट्ट पुरस्कार जैसे कई पुरस्कारों से नवाजा गया है।
The Logically जगत सिंह की इस मेहनत और जस्बे को सलाम करती है इसी के साथ भविष्य के लिए शुभकामनाएं देती है।
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