“या तो मैं लहराते तिरंगे के पीछे आऊंगा, या तिरंगे में लिपटा हुआ आऊंगा… पर इतना तय है, मैं आऊंगा ज़रूर…”
ये शब्द हैं, कैप्टन विक्रम बत्रा के.. 1999 में हुए कारगिल युद्ध में कारगिल के पांच सबसे इंपॉर्टेंट पॉइंट जीतने में अहम भूमिका निभाने वाले.. युद्ध के दौरान अपने हिम्मत, साहस और वीरता का परिचय देने वाले.. जोश से भरे हुए.. भारत का सर्वोच्च सम्मान परमवीर चक्र पाने वाले.. महज़ 24 साल के कैप्टन विक्रम बत्रा के.. युद्ध के लिए जाते समय उन्होंने कहा था, “या तो मैं लहराते तिरंगे के पीछे आऊंगा, या तिरंगे में लिपटा हुआ आऊंगा… पर इतना तय है, मैं आऊंगा ज़रूर…”
कैप्टन विक्रम बत्रा (Captain Vikram Batra) का जन्म 9 सितंबर 1974 को हिमाचल प्रदेश (Himachal Pradesh) के मंडी में हुआ था। बाद में इनका परिवार पालमपुर (Palampur) जाकर बस गया। विक्रम की पढ़ाई वहीं पालमपुर के डीएवी स्कूल, फिर सेंट्रल स्कूल में हुई। पालमपुर में रहने की वजह से विक्रम बचपन से ही सैनिकों के अनुशासन और उनके देश प्रेम की भावना को देखते हुए बड़े हुए।
1997 से अपने सैन्य जीवन की शुरुआत की
1996 में विक्रम ने इंडियन मिलिटरी अकादमी में दाखिला लिया। अपने सैन्य जीवन की शुरुआत उन्होंने 6 दिसंबर 1997 से की। जम्मू और कश्मीर राइफल्स की 13 वीं बटालियन में बतौर लेफ्टिनेंट शामिल हुए। अपनी प्रारंभिक तैनाती में, लेफ्टिनेंट विक्रम बत्रा हम्प व रॉक नाब की चोटियों पर दुश्मन सेना को मारकर उन पर विजय पाई थी। उनकी इस सफलता के बाद सेना मुख्यालय ने उनकी पदोन्नति कर उन्हें कैप्टन बना दिया था।
ये दिल मांगे मोर
कारगिल युद्ध के दौरान मोर्चे पर तैनात कैप्टन विक्रम बत्रा को श्रीनगर-लेह मार्ग के बेहद करीब स्थित 5140 प्वाइंट को दुश्मन सेना से मुक्त करवाने और भारतीय ध्वज फहराने की जिम्मेदारी दी गई। यह प्वाइंट ऊंची और सीधी चढ़ाई पर पड़ता था लेकिन यह इंडियन आर्मी के आत्मबल के आगे कुछ भी नहीं था। 19 जून, 1999 को कैप्टन विक्रम बत्रा के नेतृत्व में इंडियन आर्मी दुश्मनों से प्वांइट 5140 छीनने और वहां तिरंगा फहराने में कामयाब हुई। अपने वरिष्ठ अधिकारियों को जीत का संदेश देते हुए विक्रम बत्रा ने कहा था, “ये दिल मांगे मोर…”
प्वांइट 5140 के बाद प्वांइट 4875 पर जीत को बनाया लक्ष्य
प्वाइंट 5140 पर कामयाबी हासिल करने के बाद विकम बत्रा का अगला लक्ष्य था, प्वांइट 4875। यह सी लेवल से 17 हजार फीट की ऊंचाई पर था और 80 डिग्री की चढ़ाई पर पड़ता था। कैप्टन विक्रम बत्रा लेफ्टिनेंट अनुज नैय्यर (Lieutenant Anuj Nayyar), लेफ्टिनेंट नवीन और अन्य साथियों के साथ अपना अगला लक्ष्य हासिल करने के लिए निकल पड़े। दुश्मन सेना से इंडियन आर्मी की लड़ाई शुरू हो गई। दोनों तरफ़ से गोलियां चल रही थी। इसी दौरान लेफ्टिनेंट नवीन के पैर में गोली लग गई। अपने साथी की जान बचाने के लिए कैप्टन विक्रम बत्रा आगे आए। इस ऑफिसर को बचाते हुए उन्होंने कहा था, ‘तुम हट जाओ, तुम्हारे बीवी-बच्चे हैं।’ उसके बाद दुश्मनों की गोली बत्रा के सीने में जा लगी। 7 जुलाई, 1999 को करीब 16,000 फीट की ऊंचाई पर दुश्मन से लोहा लेते हुए विक्रम बत्रा शहीद हो गए। लेफ्टिनेंट अनुज नैय्यर भी इस जंग में बत्रा के बाद शहीद हो गए। हालांकि, तब तक मिशन लगभग खत्म हो गया था और इंडियन आर्मी ने प्वाइंट 4875 पर भी जीत हासिल कर ली थी।
9 जुलाई, 1999 को अपने कहे अनुसार कैप्टन विक्रम अपनी जन्मभूमि पर तिरंगे में लिपटे हुए वापस आएं। इनके बारे में इंडियन आर्मी चीफ ने कहा था कि अगर वो जिंदा वापस आता, तो इंडियन आर्मी का हेड बन गया होता। कारगिल युद्ध में कैप्टन विक्रम बत्रा (Captain Vikram Batra) की शहादत के बाद उन्हें 15 अगस्त 1999 को भारत के सर्वोच्च सम्मान परमवीर चक्र (Param Vir Chakra) से सम्मानित किया गया। उनके पिता जीएल बत्रा ने भारत के राष्ट्रपति स्वर्गीय के.आर. नारायणन से अपने बेटे के लिए सम्मान प्राप्त किया। लेफ्टिनेंट अनुज नैय्यर (Lieutenant Anuj Nayyar) को दूसरा सर्वोच्च सैनिक सम्मान महावीर चक्र (Maha Vir Chakra) से सम्मानित किया गया।
24 साल के कैप्टन विक्रम बत्रा (Captain Vikram Batra).. जो कारगिल युद्ध में अपने अभूतपूर्व वीरता का परिचय देते हुए वीरगति प्राप्त हुए.. अपने कई साथियों को बचाएं.. परमवीर चक्र पाने वाले आख़िरी आर्मी मैन.. ऐसे वीर सपूत को The Logically श्रद्धेय नमन करता है..!