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22 वर्षीय युवा, झुग्गी-झोपड़ी में रहने वाले लोगों के लिए मुफ्त क्लासेज चलवाता है, पढाई के साथ ही मिलता है भरपेट भोजन

समाज में कुछ चीजों में “बदलाव” हर इंसान चाहता है। “बदलाव” जिस की बातें ज्यादातर लोग करते हैं। “बदलाव” जिसके लिए कदम उन ज्यादातर लोगों में से आधे लोग हीं बढ़ाते हैं। “बदलाव” जिसके लिए अपने बढाए कदमों पर कुछ हीं लोग अड़े रहते हैं।

ऐसे ही बदलाव की कोशिश में नोएडा के प्रिंस शर्मा पिछले 4 सालों से लगे हैं। प्रिंस ने युवाओं का एक समूह बना रखा है जिसका नाम है “चैलेंजर्स ग्रुप”। इस ग्रुप का संचालन प्रिंस खुद करते हैं। 22 वर्ष के प्रिंस और उनके साथ काम कर रहे कुछ युवा बस्तियों में रह रहे बच्चे जो स्कूल नहीं जा सकते उन्हें पढ़ाकर शिक्षत बनाने में लगे हुए हैं। इतना ही नहीं ये समाज में हो रही गतिविधियों पर भी ध्यान दें उसमें भी अपना पूरा योगदान देने की कोशिश करते हैं।

हमारे देश में कई ऐसी बस्तियां हैं, जहां के बच्चे पेंसिल पकड़ना सीखने की जगह छोटी-मोटी मज़दूरी करना सीखने लगते हैं। उनकी एक दिन की कमाई पर उनका और उनके परिवार का भोजन निर्भर करता है। कभी-कभी ऐसा भी होता है कि पूरे दिन की कमाई ना हो तो उन्हें भूखा भी सोना पड़ता है। चैलेंजर्स ग्रुप ऐसे हीं बच्चों को शिक्षित बनाने में जुटा है। प्रिंस और उनके सथी उन छोटे-छोटे बच्चों को मजदूरी की राह से हटा कर शिक्षा की राह पर लाने की कोशिश कर रहे हैं। और प्रिंस अपनी नि:शुल्क पाठशाला चला रहे हैं जिसका नाम है “चैलेंजर्स ग्रुप के द्वारा संचालित चैलेंजर्स की पाठशाला”। प्रिंस बताते हैं कि शुरुआती दिनों में इन बच्चों से मजदूरी छुड़वा इनके हाथ में पेंसिल पकड़ाना एक चैलेंज की तरह ही था। बच्चे जब कूड़ा बीनने जाते थे तो चैलेंजर्स टीम के कुछ लोग उन बच्चों के पीछे-पीछे जाते ताकि बच्चों को समझा कर उनमें पढ़ने का जज्बा जगा सकें। उन बच्चों के माता-पिता को भी समझाना थोड़ा मुश्किल था। उनका मानना था कि बच्चे पढ़ लिख कर क्या करेंगे, करना तो उन्हें मजदूरी ही हैं तो क्यों ना अभी से ही मजदूरी करें।

Challengers Group

लेकिन फिर भी प्रिंस ने हार नहीं मानी और उन्हें समझाना शुरु किया कि ज़रूरी नहीं कि बच्चे मजदूरी ही करें, पढ़ लिख कर वे अपना भविष्य कुछ हद तक ज़रूर सुधार सकते हैं। साथ ही उन्हें थोड़ा लालच देना भी शुरू किया कि बच्चे अगर पढ़कर कुछ सवालों का जवाब देंगे तो हम उन्हें उनके जरूरत की चीजें जैसे चप्पल, जूते, कपड़े, खाने की कुछ चीजें देंगे। फिर कुछ माता-पिता ने अपने बच्चों को पढ़ने भेजना शुरू किया और फिर एक दूसरे को देखते हुए और भी बच्चे चैलेंजर्स की पाठशाला में पढ़ने आने लगे। वैसे बच्चे जो पेंसिल तक पकड़ना नहीं जानते थे अब वे अपना नाम लिख लेते हैं, किताबें पढ़ लेते हैं। इन्हें ना सिर्फ किताबें ही पढ़ना बताया जाता है बल्कि गाने गाना, नृत्य करना, चित्र बनाना, गिटार बजाना, कंप्यूटर चलाना भी सिखाया जाता है।

इतना ही नहीं प्रिंस और उनकी टीम उन बच्चों की माताओं को भी शिक्षक बना रहे हैं वे हर शनिवार और रविवार को उनकी माताओं को पढ़ना और अपना नाम लिखना सिखाते हैं। ताकि उन्हें अंगूठा लगाने की जगह हस्ताक्षर करना आ जाए और वे अशिक्षित ना कहलाएं। उन माताओं में भी सीखने की इच्छा होती है और वे भी काफी खुश होती हैं कि उन्हें कम से कम अपना नाम लिखना आ गया। प्रिंस का एक बहुत बड़ा सपना है कि वे भारत से “अशिक्षित” शब्द हटा सकें। इन 4 सालों में प्रिंस ने अब तक चैलेंजर्स की पांच पाठशालाएं अलग-अलग स्लम एरिया में खोल दी हैं।

प्रिंस और उनकी टीम ने लॉकडाउन में भी लोगों की काफी मदद की


वैसे लोग जो लॉकडाउन में एक जगह से दूसरी जगह पलायन कर रहे थे, जिनके पास अपने पेट भरने के भी पैसे ना थे, उन तक लगातार भोजन पहुंचाया। वैसे लोग जो मेट्रो स्टेशन पर बैठ कर इंतजार करते हैं कि कोई उन्हें खाने को कुछ दे जाए तो उनका पेट भरे, उन तक भी खाना पहुंचाया। इस लॉकडाउन में उन्होंने जरूरतमंद, असक्षम या शारीरिक असहाय लोगों तक हर संभव मदद पहुंचाने की कोशिश की। वैसी जगह जहां सरकार की भी मदद नहीं पहुंच पाती थी वहां तक उन्होंने पहुंचने की कोशिश की। वे एक दिन में लगभग 700 से 800 लोगों तक पहुंचते थे।

उन्होंने ना सिर्फ इंसानों की मदद की बल्कि बेजुबान जानवरों का भी पेट भरने की कोशिश की। सड़कों पर घूमने वाले जानवर जैसे- गाय, कुत्ता, बिल्ली ये भी किसी ढाबे, रेस्टोरेंट के फेंके हुए भोजन पर निर्भर हुआ करते हैं। लॉकडाउन में जब सारी चीजें बंद थी तो इन्हें भी भूखे पेट ही रहना होता था।प्रिंस और उनकी टीम ने जानवरों का भी पेट भरने की कोशिश की। जिसके लिए शुरुआत में उन्होंने किसी से डोनेशन तक नहीं मांगा। लेकिन धीरे-धीरे जब लोगों ने उनके काम को देखा तो वे भी मदद के लिए आगे आए। किसी ने आटा दिया, तो किसी ने चावल, तो किसी ने दाल ऐसे ही लोगों ने भी काफी मदद की। चैलेंजर्स ग्रुप की महिला टीम ने तो कई ज़रूरतमंद महिलाओं तक महावारी के दौरान इस्तेमाल में लाए जाने वाले सेनेटरी नैपकिन भी पहुंचाए। प्रिंस और उनके चैलेंजर्स ग्रुप के इन कार्यों को काफी सराहा जा रहा है और आशा है कि “बदलाव” के इस क्षेत्र में प्रिंस की ये कोशिश अन्य युवाओं को भी काफी प्रेरित करेगी और बदलाव ज़रूर लेकर आएगी।

स्वाति सिंह BHU से जर्नलिज्म की पढ़ाई कर रही हैं। बिहार के छपरा से सम्बद्ध रखने वाली स्वाति, अपने लेखनी से समाज के सकारात्मक पहलुओं को दिखाने की कोशिश करती हैं।

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