छत्तीसगढ़ (Chhattisgarh) धान के लिए ना केवल अपने देश में बल्कि पूरी दुनिया में प्रसिद्ध है। वहां के किसान अब धान छोड़कर कॉफी (Coffee) में अपना हाथ आजमा रहे हैं। उनकी मेहनत से अब छत्तीसगढ़ कॉफी (Coffee) के लिए जाना जाएगा। इस कार्य में ज़िला प्रशासन भी किसानों की पूरी मदद कर रहा है। उनके मदद के जरिए ही सघन वनांचल क्षेत्र में विश्व की सबसे दुर्लभ किस्म की कॉफी(Coffee) की खेती की जा रही है। धान की तुलना में कॉफी की खेती करने से किसानों को अधिक मुनाफा होगा।
बस्तर में की जा रही कॉफी की खेती
उद्यानिकी विभाग, छत्तीसगढ़ के किसानों को कॉफी (Coffee) की खेती का प्रशिक्षण दे रहा है, ताकि वह अधिक मुनाफा कर सकें। माओवादी दहशत के बावजूद अब आदिवासी भी अपनी आय बढ़ाने के लिए नए फसलों के उत्पादन के बाड़े में सोच रहे हैं। कुछ दिनों से बस्तर (Bastar) के दरभा ब्लॉक के दरभा, ककालगुर और डिलमिली गांव में कॉफी ( Coffee) की खेती की जा रही है। यहां के हॉर्टीकल्चर कॉलेज (Horticulture College) के ज़रिए कॉफी (Coffee) की खेती की तकनीक ग्रामीणों को सिखाया जा रहा है। वैज्ञानिकों का कहना है कि बस्तर दरभा से लेकर ककनार और कोलेंग जैसे इलाके की पहाड़ियों पर कॉफी (Coffee) की खेती आसानी से की जा सकती है।
कॉफी के बीज की पैदावार
छत्तीसगढ़ (Chhattisgarh) के जगदलपुर से करीब आठ किमी दूर तितिरपुर गांव बसा है। वहां के रहने वाले 25 वर्षय कुलय जोशी (Kulaya Joshi) पिछले तीन-चार सालों से कॉफी (Coffee) की खेती कर रहे हैं। वह बताते हैं कि पहले साल में उन्होंने दो एकड़ ज़मीन पर कॉफी की खेती की थी। उसके दूसरे साल में वह 18 एकड़ अतिरिक्त ज़मीन पर फसल उगाए। कुलय अब हर साल कुल 20 एकड़ जमीन पर कॉफी (Coffee) की खेती कर रहे हैं। उन्होंने कॉफी के लिए दो बाई दो मीटर में प्लांट लगाया था। इस तरह एक प्लांट में लगभग डेढ़ किलोग्राम से दो किलोग्राम तक कॉफी (Coffee) के बीज पैदा होते हैं। वह पिछले तीन साल से दो एकड़ जमीन पर कॉफी (Coffee) की खेती कर रहे हैं। कुलय बताते हैं कि तीसरे साल में जब हमने पहली फसल काटी, तो कुल पांच क्विंटल कॉफी के बीज का उत्पादन हुआ था।
एक एकड़ जमीन में 30 से 40 हजार रुपए मुनाफा
कुलय जोशी (Kulaya Joshi)अपनी कमाई का आंकड़ा बताते हुए कहते हैं कि यह सरकारी प्रोजेक्ट था। वह कॉफी एक रुपए प्रति ग्राम की किमत से बाजारो में बेचते हैं। उनके इस ब्रैंड का नाम ‘बस्तर कॉफी’ (Bastar Coffee) है। वह इसके 250 ग्राम का पैकेट बनाकर 250 रुपए में बेचते है।कुलय बताते हैं कि उन्हें एक एकड़ में एक साल में लगभग 30 से 40 हज़ार रुपए का मुनाफा होता है। कॉफी (Coffee) की फसल साल में केवल एक बार कि जाती है। खेतों में कॉफी (Coffee) के साथ-साथ मूंगफली और काली-मिर्च भी पैदा की जाती है, जिससे किसानों को अतिरिक्त लाभ होता है। कुलय बताते हैं कि जब कॉफी (Coffee) की खेती कि शुरूआत करते हैं, तो उस साल ज़्यादा ख़र्चा होता है।
कॉफी के पौधों से लगातार 60 सालों तक फसल पैदा होते हैं
भारत में पहले कॉफी (Coffee) का उत्पादन मुख्य रूप से कर्नाटक, केरल और तमिलनाडु जैसे राज्यों में किया जाता है, परंतु अब छत्तीसगढ़ के बस्तर ज़िले में भी कॉफ़ी (Coffee) की खेती शुरू हो चुकी है। कई जगहों पर इसे कहवा के नाम से भी जाना जाता है। एक बार कॉफी के पौधों को लगाने के बाद करीब 60 सालों तक लगातार इसमें से फसल पैदा होते रहते हैं। वनांचल क्षेत्रों के किसान भी पारंपरिक खेती छोड़कर कॉफी (Coffee) की खेती में हाथ आजमा रहे हैं। इससे उस क्षेत्र में रोज़गार बढ़ेगा और वहां के किसानों की आमदनी भी बढ़ेगी।
बस्तर में दुनिया भर के सबसे दुर्लभ कॉफी उगाए जा रहे हैं
बस्तर के दरभा घाटी के किसान दुनिया भर के सबसे दुर्लभ कॉफी जैसे अरेबिका–सेमरेमन, चंद्रगरी, द्वार्फ, एस-8, एस-9 कॉफी रोबूस्टा- सी एक्स आर जैसे कॉफी (Coffee) की खेती कर रहे हैं। जिसकी कीमत धान तथा अन्य किसी पारंपरिक फसलों की तुलना में बहुत ज्यादा है। इस क्षेत्र के लोग केवल खेती पर ही निर्भर हैं। कॉफी (Coffee) की खेती करने से इनकी आर्थिक स्थिति मजबूत हो रही है। वैज्ञानिक बताते हैं कि बस्तर का दरभा और उसके आस-पास का क्षेत्र कॉफी (Coffee) की खेती के लिए बहुत अच्छी है, क्योंकि कॉफी के खेती के लिए समुद्री तल से 500 मीटर की ऊंचाई जरूरी होती है। वहां ऊंची पहाड़ियां हैं और उन पहाड़ियों पर स्लोप वाली खेती की जगह भी उपलब्ध है।
बस्तर के इलाके कॉफी के खेती के लिए है अनुकूल
दरभा ब्लॉक के इन गांव में कुल 687 से 800 मीटर ऊंचे इलाके हैं। उन ऊंचाइयों पर खेती करने के लिए अनुकूल जगह भी है, जिनपर कॉफी (Coffee) की खेती बहुत आसानी से कि जा सकती है। यहां की मिट्टी में नमी भी होती है। कॉफी (Coffee) की खेती के लिए जमीन पर छांव रहना बहुत जरूरी है। इसके लिए किसानों ने यहां कुछ पेड़ भी तैयार किए हैं, जिससे उनका उत्पादन बढ़ सके। कॉफी (Coffee) की खेती के साथ ही वहां आम, कटहल, सीताफल, काली मिर्च जैसे फसलों को भी लगाया जा सकता है। इससे कॉफी के पौधे को छाया भी मिल जाएगी और किसानों की दुगनी कमाई भी हो जाएगी। छत्तीसगढ़ के किसान पहली बार इस तरह अनोखी खेती कर रहे हैं।
योजना के जरिए बस्तर में हो रही है कॉफी की खेती
इसे पहले भारत में केवल ओडिशा, आंध्रप्रदेश, तमिलनाडु और असम में ही कॉफी (Coffee) की खेती होती है। परंतु अब मध्य भारत में बस्तर पहला ऐसा जिला है, जहां कॉफी की खेती की जा रही है। कॉफी (Coffee) से पहले यहां के किसान सिर्फ धान की खेती करते थे। 4 साल पहले नक्सल प्रभावित क्षेत्र के 20 एकड़ में कॉफी की खेती हुई और उसमें उन्हें सफलता मिली। उसके बाद अब इसी क्षेत्र के डिलमिली में एक पहाड़ी पर करीब 100 एकड़ में कॉफी की खेती शुरू की गई। इस योजना के तहत 50 किसानों को चुना गया है जिनकी जमीन पहाड़ी पर है। इसी योजना के जरिए कॉफी की खेती की शुरूआत हुई।
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कॉफी की खेती की शुरूआत करने में डेढ़ लाख तक की लागत लगती है
छत्तीसगढ़ उद्यानिकी महाविद्यालय और अनुसंधान केंद्र, जगदलपुर के प्रोफेसर डॉ. केपी सिंह (Dr.KP Singh) बताते है कि सौ एकड़ जमीन में एक लाख अरेबिका और रोबस्टा किस्म के कॉफी के पौधे लगाए गए हैं। पहले साल में प्रति एकड़ लगभग डेढ़ लाख रुपए की लागत लगेगी परंतु उसके बाद हर साल केवल 10 हज़ार रुपए ही खर्च होते है। वह बताते हैं कि अगर एक बार आपको इसमें सफलता मिल गई तो लगातार 60 सालों तक इसकी फसल की जा सकती है। एक बार इसकी प्लांटेशन करने के बाद इसकी देखरेख तीन साल तक उद्यानिकी महाविद्यालय के वैज्ञानिक करेंगे। उसके बाद इसे किसानों को दे दिया जाता है।
किसानों को होगा मुनाफा
दिवेंद्र सिंह (Devendra Singh) बताते है कि अभी प्रोसेसिंग का कार्य महाविद्यालय में ही हो रहा है। अगर आगे चल कर इसका उत्पादन बढ़ता है, तो इसके लिए प्रोसेसिंग यूनिट भी लगाई जाएगी। रोबस्टा प्रजाति की किस्मों के पौधों में रोग की मात्रा बहुत कम होती है। इसी वजह से इस प्रजाति की किस्मों का उत्पादन अधिक प्राप्त होता है। अनुमान लगायत जा रहा है कि भारत के कुल कॉफी (Coffee) उत्पादन में से 60 प्रतिशत हिस्सेदारी केवल इसी प्रजाति की है। जिसे विदेशों में लोग बहुत पसंद करते हैं। बस्तर कलेक्टर रजत बंसल (Rajat Bansal) ने यह जानकारी दी है कि ज़िला प्रशासन किसानों को नई तकनीकों के माध्यम से वैकल्पिक खेती करने के लिए जगरुक कर रह है। अच्छी बात यह है कि अब इसमें किसानों को लाभ भी मिल रहा है।
कॉफी के जरिए बस्तर को मिलेगी नई पहचान
अरेबिका और रोबूस्टा जैसी कॉफी अब बस्तर की पहचान बन चुकी है। कॉफी (Coffee) की खेती से वहां के किसानों की आर्थिक स्थिति भी मजबूत हुई है, जिससे युवाओं को एक नई दिशा में आगे बढ़ने का मौका मिल पाया है। जानकारों की मानें तो किसानों की आजीविका बढ़ाने के लिए बस्तर कॉफी (Coffee) मील का पत्थर साबित होगी। बस्तर कॉफी बहुत ही जल्द एक बड़ा ब्रांड बनकर पूरे विश्व के सामने आएगी। इसकी खेती के लिए किसानों को सबसे पहले कॉफी (Coffee) के फल को तोड़कर उसके बीज को निकालकर सुखाया जाता है। इसे फिर प्रोसेसिंग यूनिट के ज़रिए बीज रूप में अलग किया जाता है। उसके बाद इसे अच्छी तरह भुना जाता है, जिससे यह कॉफी पीने के लिए तैयार हो सके। इसका पाउडर ही फिल्टर कॉफी (Coffee) के लिए तैयार किया जाता है। बस्तर कॉफी के उत्पादन से यहां के किसानों को रोज़गार मिल पाया है।