अगर महिलाएं हालातों और मुश्किलों से लड़ने का मन बना लें तो बड़ी से बड़ी समस्या का हल निकाल लेती हैं। ऐसे हीं अहमदाबाद की रहने वाली एक गरीब महिला छाया सोनवाने हैं जो अपनी लगन और मेहनत से काफी मुसीबतों से लड़कर 3000 से भी अधिक लड़कियों को आत्मनिर्भर बना दिया। आईए जानते हैं छाया सोनेवाले की कहानी…
संघर्षों भरा बचपन
छाया सोनवाने खुद की ही नहीं बल्कि लगभग 3000 लड़कियों की ज़िंदगी बदल दी और उन सब लड़कियों को इस काबिल बना दिया जिससे वो अपने पैरों पर खड़ा हो सकें। छाया सोनवाने एक गरीब परिवार से थीं। उन्हें पढ़ने-लिखने का बहुत शौक था। परन्तु पैसों के अभाव के कारण वे 10 वीं तक ही पढ़ पाई। फिर उसके बाद छाया सोनवाने की शादी हो गई। इनके पति कैलिको मिल्स में काम करते थे। लेकिन इनके पति का काम कभी चलता तो कभी छुट जाता। छाया सोनवाने बताते हैं कि जब मेरे पति का काम छुट जाता था तब हमारे घर की स्थिति बहुत खराब हो जाती थी। छाया सोनवाने को अपने बड़े बेटे के जन्म के बाद उसकी पढ़ाई-लिखाई की चिंता सताने लगी। छाया सोनवाने को लगता था कि वो अपने बेटे को अच्छे से अच्छे स्कूल में पढ़ाएं। चूकि वह एक दर्जी जाति से थीं तो इन्होंने फैसला किया कि वो सिलाई का काम सीखेंगी। छाया सोनवाने के पति इस फैसले को तो मान गए परन्तु इनके परिवार वाले खासतौर पर इनकी सास को इनका फैसला मंजूर नहीं था। उनकी सास उनको हमेशा ताने देती रहती थीं और कहतीं उससे कुछ नहीं होगा। सास की ताने सुन छाया सोनवाने को बहुत बुरा लगता था। इस लिए छाया सोनवाने ने ठान लिया कि मुझे घर में पैसे कमाने ही हैं। फिर इनके पति ने ऑटो- रिक्शा चलना शुरू किया और छाया सोनवाने सिलाई सीखने लगी। परन्तु छाया सोनवाने की मुश्किलें कम नहीं थी।
आस-पड़ोस से कपड़े मांग कर सीखीं सिलाई
उनके घर में गरीबी इस कदर थी कि सिलाई की प्रैक्टिस के लिए उनके पास कपड़े भी नहीं थे। कुछ दिन बाद उन्होंने ऐसा लगा कि वे सिलाई कर सकते हैं तो वे अपने आस-पास के पड़ोसियों से कपड़े मांग कर अपना काम करती थी। वे पड़ोसियों से यह कहकर कपड़े मांगती थी कि वे उनके बच्चे के लिए ड्रेस सिलकर देंगी। छाया सोनवाने कहती हैं कि इतना खुद पर भरोसा हो गया था कि मै किसी का कपड़ा खराब नहीं करूंगी। और ऐसे हीं सिलाई कर के सिलाई सिख लीं।
छाया सोनवाने ने अपनी ट्रेनिंग पूरी करने के बाद उन्होंने कुछ दिन एक ट्रस्ट के साथ काम करना शुरू किया। उसमे छाया सोनवाने लड़कियों को सिलाई भी सिखाती थी। लेकिन कुछ दिन के बाद उन्हें पता चला कि वे जितनी उस ट्रस्ट में मेहनत करते उतना पैसा उन्हें नहीं मिलता और उस ट्रस्ट में भ्रष्टाचार का भी काम होता था। इसके बाद उन्होंने उस ट्रस्ट में काम करना छोड़ दिया। फिर इन्होंने अपना काम शुरू करने की सोंचा। उन्हें सिलाई का काम मिलने लगा था। पर उससे उनके घर में उतना ही मदद हो पाता था। और छाया सोनवाने को अपने बेटे को स्कूल में दाखिला भी करवाना था।
इस तरह देना शुरू किया लङकियों को ट्रेनिंग
छाया सोनवाने बताती हैं कि उनको एक जानने वाली से मुलाकात हुई। जो मुझसे कपड़े सिलवाती थी। उसने अपने बेटी को मेरे पास लाई और मुझसे पूछने लगी कि वो मेरी बेटी को सिलाई सिखाएगी तो मैंने हां कर दी। और फिर से हमारी ट्रेनिंग शुरू हो गई। इन्होंने ने बताया कि मुझे किसी के पास जा कर ये कहना नहीं पड़ा कि आप अपनी बेटी को मेरे पास कपड़े सीने की कला सीखने के लिए भेजें। लोग अपने बच्चे को लेकर खुद व खुद मेरे पास आने लगे। मेरे पास इतनी स्टूडेंट हो गई कि मुझे तीन शिफ्ट में क्लास करना पड़ा। इसके बाद छाया सोनवाने ने कभी भी पीछे मुड़कर नहीं देखा !
अपने बेटे को एक अच्छे इंग्लिश मीडियम स्कूल में दाखिला करवाया। कुछ लोग छाया सोनवाने को सलाह देने लगे की वो अपने बेटे का दाखिला सरकारी स्कूल में करवाए क्यूंकि वे बड़े स्कूल की फीस नहीं भर पाएगी। परन्तु छाया सोनवाने ने किसी की भी बात नहीं सुनी। और अपने बेटे का दाखिला इंग्लिश मीडियम स्कूल में करवा दिया। छाया सोनवाने ने बच्चे की पढ़ाई, घर की ज़िम्मेदारी के साथ- साथ अपना काम भी करती थी। वह एक साथ कई काम संभालती थीं। अपनी ज़िम्मेदारी को मेहनत और ईमानदारी के साथ करती थीं। छाया सोनवाने ने अपने क्लास में लड़कियों को सिलाई के साथ- साथ ज़िम्मेदारियां भी सिखाती थी। चूकि वे इन चीजों को खुद झेल चुकी थीं। छाया सोनवाने का काम धीरे- धीरे बढ़ने लगा।
रिश्तेदारों ने दिए तानें
उनके घर में मुश्किलें अभी भी थी। उनके पति ऑटो- रिक्शा चलाते और वे खुद दिन रात सिलाई करती। फिर भी वे अपने बच्चे के पढ़ाई के लिए किसी भी तरह खर्च जुटा पाती थी। छाया सोनवाने कहती थी कि मुझे अभी भी याद है कि मेरे बेटे जब दसवीं कक्षा के बाद साइंस से पढ़ाई करने के लिए बोला तो उनके सभी रिश्तेदारों ने मनोबल तोङ दिया और बोला की जब औकात ना हो तो इतने बड़े ख्वाब नहीं देखना चाहिए। पर मेरा बेटा बहुत ही होशियार था। और मैंने उसको साइंस से ही पढ़ाई करने बोली। फिर ट्यूशन के लिए पैसे देने थे तो मेरे पास उतने पैसे नहीं थे। तो मैंने सोचा कि टीचर से बात करूं, तो कुछ डिस्काउंट मिल जाएगा। फिर मैंने स्कूल के टीचर से बात की और मै अपनी समस्या को बताया तो उन्होंने बिना पैसे के मेरे बेटे को पढ़ाने के लिए कहा। लेकिन फिर भी मुझ से जो बन पाता मै फीस दे देती। फिर इसके बाद इनके बेटे को इंजिनियरिंग कॉलेज में दाखिला हुआ। तो उन्होंने दिन- रात मेहनत कर के अपने बेटे के कॉलेज और हॉस्टल के फीस का इंतजाम कीं।
पेश की सेवा की मिसाल
छाया सोनवाने ने अपनी ज़िन्दगी में बहुत मुश्किल बक्त देखा था। उनके पास एक दिव्यांग लड़की सिलाई सीखने आई थी। उस लड़की के कमर के नीचे का हिस्सा अपंग था। उस लड़की के मां ने छाया सोनवाने से विनती की कि उसे सिलाई सिखा दे। क्यूंकि और जगह कोशिश कर के उन्हें सिर्फ निराशा मिली थी। छाया सोनवाने तो पहले सोच में पड़ गई की लड़की सिलाई मशीन पर बैठेगी कैसे पैर वाली मशीन तो चला नहीं पाएगी। फिर उन्होंने सोचा कि लड़की भी सोचती होगी कि वो खुद संभले। इसलिए उन्होंने हां बोल दी। छाया सोनवाने के पति बोले की इस लड़की के लिए हाथ वाली मशीन खरीद लेंगे। जिससे उसे सीखाया जा सके। छाया सोनवाने ने कहा कि मेरे पास उतने पैसे नहीं थे। परन्तु मुझे उस लड़की के लिए जो करना पड़ेगा मै करूंगी। फिर इसके बाद उन्होंने बताया कि उनके पास नेपाल से आई दो बहने के बारे जो छाया सोनवाने के पास सिलाई सीखने आती थी। उस दोनों बहनों के पिता यहीं किसी फैक्ट्री में गार्ड का काम करते थे।
स्टूडेंट के लिए हैं प्रेरणा
जब दोनों बहने सिलाई सिख कर यहां से जा रही थी। तब वो दोनो बहने मुझसे मिलने आई और बोली टीचर आप अपनी एक फोटो दे दो। हम उस फोटो को अपने यहां रखेंगे और अगर हमें किसी भी प्रकार का समस्या आए तो हम आप की फोटो को देखकर उस समस्या का हल ढूंढ लेंगे। इतना कह कर छाया सोनवाने भावुक हो गईं।
छाया सोनवाने के पास सीखने के लिए लड़कियां आती थी। उनके माता- पिता कई बार बिना कुछ कहे उनको मुसीबतों में साथ दिया। जब वहां डीजल वाला ऑटो- रिक्शा बंद हो गया और गैस वाला ऑटो- रिक्शा चलाने लगा तो छाया सोनवाने के पास इतने पैसे नहीं थे कि वो गैस वाला ऑटो- रिक्शा खरीदकर अपने पति को दे। ऐसे में उनकी एक छात्रा की मां ने उनकी मदद की और नया ऑटो- रिक्शा खरीदने के लिए पैसे दिए। छाया सोनवाने पिछले 31 सालों से सिलाई सीखने का काम कर रही है। सिलाई सीखने के साथ- साथ लड़कियों को रिश्ते को बनाना और उस रिश्ते को संभालना भी सिखाती थी। आज भी उनकी क्लास में सीखने के लिए लड़कियों की कमी नहीं है। छाया सोनवाने ने कहा कि मुझे काम करने का शौक हमेशा से है। आज भले ही पैसा कमाना मेरी जरूरत नहीं, फिर भी मै ये काम करते रहना चाहती हूं। छाया सोनवाने बोले कि मुझे इस बात की खुशी है कि मै जो अपने बेटे के लिए सपने देखे वे पूरे हो गए। आज मेरे बड़ा बेटा पुणे की कंपनी में अच्छे पद पर इंजीनियर है। और छोटा बेटा अमहादाबाद में ही एक आईटी कंपनी में अच्छी नौकरी कर रहा है। हमारे दोनो बेटे चाहते हैं कि मै अब आराम करूं पर मुझे काम करना बहुत पसंद है। और मै अपना काम छोड़ना नहीं चाहती करते रहना चाहती हूं। और हर लड़की को काबिल बनाना चाहती हूं कि उसे किसी पर भी निर्भर रहने की जरूरत ना पड़े।
जिन विपरीत हालातों से जूझते हुए छाया सोनवाने ने खुद को आत्मनिर्भर बनाया और अपने प्रयास से हजारों लड़कियों को हुनरमंद बनाकर उन्हें आत्मनिर्भर बनाया वह अन्य लोगों के लिए प्ररेणा है। The Logically छाया सोनवाने जी को नमन करता है।