झारखंड की रहने वाली छुटनी देवी का नाम भी गणतंत्र दिवस के मौके पर दिए जाने वाले पद्म पुरस्कारों में शामिल है. 25 साल पहले डायन बताकर उन्हें घर से निकाल दिया गया था लेकिन उन्होंने हार नहीं मानी और समाज की यह सोच बदलने के लिए अनवरत काम करती रहीं. इसी का परिणाम है पद्म श्री 2021.
छुटनी की शादी धनंजय महतो से हुई थी. शादी के 16 साल बाद 1995 में एक तांत्रिक के कहने पर गांव वालों ने उन्हें डायन मान लिया. पति ने साथ छोड़ दिया. परिवार वालों ने घर से निकाल दिया. गांव के लोगों ने उन्हें प्रताड़ित करना शुरू किया. पेड़ से बांधकर पीटा. अर्धनग्न अवस्था में गांव की गलियों में घसीटा. थाने में रिपोर्ट कराने गई तो पुलिस वालों ने उनकी नहीं सुनी. अंत में जब उन्हें आभास हुआ कि अब लोग उनके हत्या की योजना बना रहें हैं, वह बच्चों को लेकर गांव छोड़कर चलीं गईं.
छुटनी कहती हैं कि अगर वह डायन होती तो उन अत्याचारियों को उसी वक्त खत्म कर देती, पर ऐसा कुछ होता नहीं है. ओझा के कहने पर ग्रामीणों ने जो जुल्म किया, उसकी कल्पना भी सभ्य समाज नहीं कर सकता.
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गांव छोड़ने के बाद छुटनी देवी डरी सहमी चुप नहीं बैठी. उन्होंने हालात के सामने घुटने नहीं टेके बल्कि वह दूसरी कमज़ोर व हालात से हारी महिलाओं की ताक़त बनीं.
62 वर्षीय छुटनी देवी सरायकेला खरसावां जिले के गम्हरिया प्रखंड की बिरबांस पंचायत के भोलाडीह गांव में रहती हैं. वहां एसोसिएशन फॉर सोशल एंड ह्यूमन अवेयरनेस (आशा) के सौजन्य से संचालित पुनर्वास केंद्र चलाती हैं. वह बतौर आशा की निदेशक के तौर पर कार्यरत हैं.
अब अगर कोई किसी महिला को डायन बताकर उसे प्रताड़ित करने की कोशिश करता है तो इसकी सूचना मिलते ही छुटनी देवी अपनी टीम के साथ वहां जाती हैं. पहले लोगों को समझाने की कोशिश करती हैं और नहीं मानने पर अंधविश्वास फैला रहे तांत्रिक और लोगों के ख़िलाफ़ प्राथमिकी दर्ज कराकर उनके जेल तक का रास्ता दिखाती हैं.
छुटनी देवी ने अपनी जैसी पीडि़त 70 महिलाओं का एक संगठन बनाया है, जो समाज के इस संकीर्ण सोच से लड़ रहा है. उनके लिए प्रताडि़त महिलाओं के चेहरे पर मुस्कान लाना हीं सबसे बड़ा सम्मान है. The Logically ऐसी हिम्मती महिला को शत् शत् नमन करता है. पद्म श्री के लिए छुटनी देवी को बहुत बहुत बधाई.