किसी की मदद करने के लिए ना हीं उम्र और ना हीं धन की जरूरत होती है बस आपके अंदर दूसरों के लिए प्यार सम्मान और इज्जत होनी चाहिए। यह कहानी एक ऐसे व्यक्ति की है जो हमेशा से लोगों की मदद के लिए तैयार रहते हैं। जब यह 27 वर्ष के थे तब भी लोगों की मदद की और 54 वर्ष के हैं तब भी कर रहे हैं। खाड़ी युद्ध से लेकर महामारी तक, भूखों को खिलाने के लिए भारतीय शेफ वन-मैन मिशन पर तत्पर हैं।
एक अकेला व्यक्ति रात में एक लग्जरी होटल के पिछले दरवाजे से बाहर निकल कुछ मीटर चलने के बाद जरूरतमंदों की मदद करते हुए नजर आता है। उस शख्स का नाम है दमन श्रीवास्तव (Daman Shrivastav) वह कुछ जरूरतमन्दों को देख रुक जाते और उन्हें खाने के पैकेट सौंपते। वर्ष 1990 का था जब इराक (Iraq) खाड़ी युद्ध (Gulf War) हुआ। इस दौरान हजारों की संख्या में लोग राजधानी विस्थापित हो गए और खंडहर बने।

54 वर्षीय दमन श्रीवास्तव
युद्ध के दौरान अल राशीद होटल (Al Rasheed Hotal) में श्रीवास्तव के सहयोगियों ने एक-एक करके शहर को छोड़ दिया लेकिन 27 वर्षीय दमन ने युद्ध के कारण विस्थापित दर्जनों लोगों को खाना खिलाते रहे। इस वर्ष जब महामारी का प्रकोप हुआ और बिखराव की कहानियाँ फिर से आम हो गईं तो श्रीवास्तव ने फिर अपनी नेकदिली का परिचय दिया और कार्य शुरू किया। हालांकि अब वह 54 वर्ष के हो गए हैं और मेलबोर्न (Melbourne) में हैं। वह एक पाक कला व्याख्याता ( culinary Arts Lecturar) के जरिए अपनी वन-मैन डिलीवरी सेवा (One Man Delivery Service) को फिर से शुरू किये हैं।
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कर रहे इंटरनेशनल छात्रों की मदद
इस बार वह अंतरराष्ट्रीय छात्रों को खिला रहे हैं जिनमें से कई अपनी नौकरी खो चुके हैं और विदेशी भूमि में अपना जीवन बसर कर रहे हैं। मार्च के बाद से श्रीवास्तव के घर के रसोई में हर सप्ताह लगभग 500 लोगों के लिए भोजन तैयार किए जाते हैं। वह उस भोजन को कार के माध्यम से शहर भर में पहुँचाते हैं। उन्होंने बताया कि इस साल की स्थिति ने मुझे उस दुख की याद दिला दी जो मैंने पहले देखा था। इराक में इन्होंने ऐसे लोगों को देखा था जो भोजन के लिए भीख माँगने के लिए नियमित रूप से होटल आते थे। उस दौरान जो लोग बमों से बचे थे उन्हें भूख ने जकड़ लिया और दुःखद जिंदगी जी रहे थे। उन्होंने TOI को बताया कि कोविड-19 ने मेरे उन यादों को उभार दिया और मैं चाहता था कि जितनी मेरी मदद करने की क्षमता होगी मै करूँगा।
पत्नी और बेटी कर रही हैं मदद
अपनी पत्नी और आठ साल की बेटी की मदद से श्रीवास्तव के लिए अपनी दानशीलता को जारी रखना आसान हो गया है। श्रीवास्तव ने कहा, “हम वक्त से पहले उठते हैं ताकि भोजन को पैक और वितरित किया जा सके। क्योंकि इसे करने से पहले हम अपनी दिनचर्या में व्यस्त होना नहीं चाहते।

दूसरों ने भी मदद के लिए कदम बढ़ाया है
पिछले महीने स्कूल की शिक्षिका सारा मैरिक ( Sarah Maric) ने किराने से भरे बैग के साथ 50 किमी का रास्ता तय कर दमन के घर आकर खाना बनाने में मदद की। साईं किरण (Sai Kiran) ला ट्रोब विश्वविद्यालय (La Trobe Univercity) के एक मास्टर्स छात्र जो अपनी नौकरी खो चुके थे उन्होंने भी मदद किया।
एक पाक कला प्राध्यापक श्रीवास्तव अंतरराष्ट्रीय 500 छात्रों को एक सप्ताह में भोजन खिला रहे हैं। श्रीवास्तव ने कहा कि उन्होंने अंतरराष्ट्रीय छात्रों पर ध्यान केंद्रित किया क्योंकि उन्हें विदेशी भूमि में इस परिस्थिति में रहना कठीन होगा। मैं इन सभी परेशानियों से अवगत हूं।
लोगों की मदद निःस्वार्थ भाव से करने वाले दमन का प्रयास और दमन के साथ उनकी पत्नी और बेटी के साथ अन्य व्यक्ति जिस तरह मदद में उनका हाथ बंटा रहे हैं वह वन्दनीय है। The Logically दमन श्रीवास्तव के कार्यों को शत-शत नमन करता है और अपने पाठकों से अपील करता है कि वह भी जरूरतमंदों की मदद करें।
