जब आपके हौसले बुलंद हों तो लोगों के साथ-साथ किस्मत भी आपके साथ आ जाता है। कभी-कभी जिंदगी आपको कब और किस वक्त फर्श से अर्श तक पहुंचा देती है इसकी कल्पना भी आप नहीं कर पाते हो। ये तो सच है कि आज भी हमारे देश में समाज कई वर्गों में बंटा हुआ है। कई जगह आज भी जातीय आधार पर समाज में लोग विभाजित हैं। जिसमें कई निम्न स्तर से आते हैं तो कई उच्च स्तर से। जब हम इन दोनों स्तरों का आज भी अध्यन करते हैं तो बड़ा अंतराल आज भी दिखता है।
ये बातें हम आज आपको इसलिए बता रहे हैं क्योंकि आज जो कहानी आपको बताने वाले हैं वो एक आदिवासी लड़की की है। उन्होंने एक आदिवासी समुदाय में अपना जीवन गुजारा है। जिनकी मां इन्हें मजदुरी कर के पढ़ाई हैं। तंगी से संघर्ष करते हुए आज ये एक डेप्युटी मेयर बन गई हैं। इस बेटी का नाम दमयंती मांझी है। जिसकी कहानी लोगों के लिए एक मिसाल है।
ये तो सत्य है कि दमयंती मांझी ने छोटी सी उम्र में जो कुछ ऐसा कर दिखाया है, इसके बाद उनका नाम इतिहास में स्वर्ण अक्षरों में दर्ज हो चुका है। साथ हीं साथ वह लोगों के लिए एक रोल मॉडल बन चुकी हैं। दरअसल, दमयंती ने बीजू जनता दल (बीजेडी) के टिकट पर कटक का नगर निगम चुनाव लड़ी जिसके बाद आज वे डिप्टी मेयर बनकर सफलता की मिसाल पेश की।
दमयंती का इस चुनाव में जीतना कई मायनों में बेहद हीं खास है क्योंकि इनके परिवार के लोगों में से किसी का आज राजनीति से कोई वास्ता नहीं रहा है। यूं कहें तो इनके पूर्वजों में भी आज तक किसी ने राजनीति से नही जुड़ा है और न हीं उसने पहले कभी चुनाव लड़ा है। दमयंती आदिवासी समुदाय में रहती थीं। ये संथाल आदिवासी समुदाय के जगतपुर-बलीसाही झुग्गी में रहती है। इसलिए इनके लिए ये चुनाव जीतना और मेयर बनना बेहद हीं खास है। फिलहाल दमयंती रैवनशॉ विश्वविद्यालय से एम. कॉम कर रही हैं।
दरअसल, दमयंती ने बीते 24 मार्च को हुए चुनाव में जीत हासिल की है और साथ हीं साथ कटक की सबसे कम उम्र की डिप्टी मेयर भी बन चुकी हैं। हालांकि बीजेपी और कांग्रेस के कॉर्पेटर इस चुनावी प्रक्रिया से नाखुश थे और विरोध जताते हुए बाहर निकल गए जिसके बाद दमयंती को डिप्टी मेयर की कुर्सी मिली है।
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दमयंती के अभी तक के जीवन में कुछ मुश्किल पल भी रहे हैं। दमयंती के पिता को गुजरे हुए 5 वर्ष हो गए, जिसके बाद परिवार की जिम्मेदारी दमयंती और उसकी मां पर आ गई। दमयंती और उसकी मां ने मेहनत-मजदूरी कर परिवार का पालन-पोषण किया। इस कठिन पलों में दमयंती की मां का बहुत बड़ा योगदान रहा है। इसके बाद दमयंती अपना घर चलाने के लिए और अपनी पढ़ाई जारी रखने के लिए झुग्गी के बच्चों को ट्यूशन पढ़ाना शुरू किया और इन पैसों से घर के साथ-साथ अपनी पढ़ाई भी जारी रखी।
दमयंती का राजनीति में प्रवेश की बात करें तो ये नगर निगम चुनाव से पहले राजनीति में किसी भी तरह से सक्रिय नहीं थी। चुनाव जीतने के बाद जब वी उप मेयर बनीं तो उसने साफ बताया कि राजनीति उसकी पहली पसंद नहीं है। कटक डिप्टी मेयर का चुनाव उनके लिए पहला चुनाव था। यहां तक कि वो कभी भी छात्र राजनीति का हिस्सा भी नहीं रही थीं। इससे साफ समझा जा सकता है कि दमयंती के लिए ये चुनाव जीतना बहुत बड़ी बात है।
भले हीं दमयंती राजनीति क्षेत्र में नए हीं क्यों न हो लेकिन वे अपने क्षेत्र की समस्याओं से बखूबी परिचित हैं और बीजेडी के नेताओं को ये गुण अच्छा लगा जिसके बाद उन्हें टिकट मिला और आज ये डिप्टी मेयर बन चुकी हैं। अब दमयंती आगे अपने क्षेत्र में एक अच्छा बदलाव लाना चाहती हैं, और लोगों की समस्याओं को सुलझाना चाहती हैं। मुझे लगता है कि दमयंती इस दायित्व को अच्छे से निभाएगी। क्योंकि ये जमीन से जुड़ी हुई हैं और लोगों के समस्यायों को बखूबी जानती हैं।
दमयंती मांझी का फर्श से अर्श पर पहुंचने के बाद उन्होंने जो कहा है वो वाकई लोगों के लिए एक प्रेरणा है। उन्होंने कहा कि मेहनत और धैर्य से इंसान हर मकाम हासिल कर सकता है। सच्ची लगन हो, खुद पर भरोसा हो तो कोई भी शख्स, फर्श से अर्श तक पहुंच सकता है।
दमयंती के इसी लाइन को बढ़ाते हुए कहना चाहूंगा कि वाकई जब आप अपने जीवन में एक आदिवासी समुदाय से एक अच्छे पद पर पहुंचते हैं तो न केवल उस समुदाय के लिए सीखने की चीज है बल्कि सभी लोगों के लिए एक प्रेरणा है।