हमारा देश भारत या यूं कहें तो विकासशील देश भारत, आज कई क्षेत्रों में आगे बढ़ चुका है, कई आईटी कंपनियां यहां अपना कदम जमा चुकी हैं। लेकिन फिर भी भारत अभी भी भूखमरी में 102वें स्थान पर है लेकिन साथ-ही-साथ हमारे देश में कई सारे ऐसे लोग भी हैं जो जरूरतमंदों में भोजन बाँटकर उन्हें भूखमरी से बचाते हैं।
उन्हीं में से एक राजस्थान के चित्तौड़गढ़ के रहने वाले कुलप्रीत सिंह भी हैं। कुलप्रीत पिछले एक महीने से “डिलीवरींग देसी फूड” के नाम से एक मुहिम चला रहे हैं। जिसमें वे हफ्ते में एक दिन, हर रविवार को कम-से-कम 90 से 100 भूखे, जरूरतमंद या वैसे लोग जिनके पास रहने के लिए घर तक नहीं उन तक खाना पहुंचाते हैं। कुलप्रीत ने बताया कि वह चित्तौड़गढ़ से हैं जो कि एक छोटा शहर है और एक छोटे शहर में कई सारे ऐसे लोग मिल जाते हैं जिनके पास ना तो रहने के लिए घर है ना हीं खाने के लिए भोजन। साथ हीं इस लॉकडाउन में कई सारे लोगों की आमदनी भी ठप पड़ गई। कुलप्रीत चाहते हैं कि उन से जितना बन सके वे उन गरीब और असहाय लोगों की मदद कर सकें।
कुलप्रीत की टीम में सिर्फ चार लोग हैं। वे खाना भी खुद अपने घर से ही बनवा कर गरीब लोगों तक पहुंचाते हैं। उनकी मां लगभग 100 या उससे ज्यादा लोगों के लिए खाना बनाती हैं जिसमें कुलप्रीत के साथ उनकी बहन और उनके भाई भी मदद करते हैं। फिर वे 10-11 बजे के लगभग निकल पड़ते हैं जरूरतमंदों तक अपना पैकेट पहुंचाने के लिए। सबसे बड़ी बात यह है कि कुलप्रीत इस मुहिम के लिए किसी से भी डोनेशन नहीं लेते बल्कि खुद से ही जितना संभव हो गरीबों की मदद करते हैं। कुलप्रीत ने बताया कि कई बार उनके दोस्तों ने भी कहा कि वे कुछ डोनेशन देंगे तो उन्होंने मना करते हुए कहा कि “अभी तो नहीं लेकिन जब ज़रूरत होगी तो वे डोनेशन पैसे के रूप में नहीं बल्कि खाद्य सामग्री के रूप में हीं लेंगे। क्योंकि उन्हें डोनेशन लेकर काम करना पसंद नहीं है।
The Logically से बात करते समय कुलप्रीत ने बताया कि शुरुआती दौर में फ़ेसबुक और इंस्टाग्राम पर भी लोगों से संपर्क कर आस-पास के गरीबों के बारे में जानने की कोशिश की लेकिन किसी ने भी वहां दिलचस्पी नहीं दिखाई। अब कुलप्रीत और उनकी उनके परिवार के लोग घूम-घूम कर देखा करते हैं कि किसे और कितने लोगों को भोजन की ज़रूरत है, जिन तक उन्हें खाना पहुंचाना है। कुलप्रीत बताते हैं कि उनकी मां धार्मिक विचारों वाली है और कुलप्रीत का मानना है कि किसी मंदिर में हमेशा पैसे दान करने से बेहतर है कि हम उन्ही पैसों से भोजन बना गरीब और ज़रूरतमंद लोगों का पेट भरें। इससे उन लोगों का पेट भी भरेगा और हमें दुआएं भी मिलेंगी।
कुलप्रीत इस मुहिम का नाम “डिलीवरींग देसी फूड” रखने का कारण बताते हैं की “डिलीवरींग” शब्द इसलिए क्योंकि उन्हें लोगों के सामने ज्यादा प्रचार-प्रसार या यह दिखाना पसंद नहीं कि वे समाज सेवा कर रहे हैं और किसी भी तरह का दान कर रहे हैं, बल्कि वे इसे अपना एक काम, अपनी एक जिम्मेदारी समझ कर करना चाहते हैं। और “देसी फूड” इसलिए क्योंकि वे लोगों तक अपनी मां के हाथ से बने पूड़ी-छोले, उपमा, वेज पुलाव, मिक्स वेज पराठा जैसे भारतीय व्यंजन लोगों तक पहुंचाते हैं।
भारत में इस कोरोनाकाल में लगे लॉकडाउन में कई लोग बेरोज़गार हो गए। जिन्हें भूख से लाचार होकर अपने शहर को छोड़ गांव वापस आना पड़ा। अगर हर छोटे-बड़े शहर, बड़ी सोसाइटी में ऐसे लोग हो जो कम से कम अपने आसपास के गरीब, ज़रूरतमंद लोगों का पेट भर सकें तो भारत में भी भुखमरी के अनुपात को और भी कम किया जा सकता है।
कुलप्रीत और इनके परिवार द्वारा किये जा रहे प्रयास को The Logically नमन करता है और अपने तमाम पाठकों से इन जैसे मुहिम को उड़ान देने में मदद की अपील करता है
The Logically के लिए इस कहानी को स्वाति सिंह ने लिखा है। स्वाति सिंह जर्नलिज्म की छात्रा हैं और वह नए भारत को अपने शब्दों से वर्णित करने का प्रयास करती हैं।