जमाना बदल गया है लेकिन जो सुकून पहले के जमाने में थी वो आज के दौर में कहां?? उसी सुकून की तलाश में कुछ लोग हर सम्भव ये प्रयास करते हैं कि पुरानी जीवनशैली को जिएं। ऐसे में मध्यप्रदेश से ताल्लुक रखने वाले देवेंद्र परमार आज के दौर में भी सुकून की ज़िंदगी जीते हैं।
देवेंद्र परमार (Devendra Parmar)
उन्होंने एक ऐसे सिस्टम का निर्माण किया है जिसके तहत गोबर से सीएनजी गैस बने और इसका उपयोग ईंधन के रूप में हो सके। उन्होंने अपने घर पर ही गोबर से बायोगैस का निर्माण करना प्रारंभ किया और आगे इसे सीएनजी में परिवर्तित कर इससे वाहन तथा बिजली आदि के लिए उपयोग करते हैं। उन्हें अपने उपयोग के लिए बिजली तथा पेट्रोल आदि चीजें बाहर से नहीं लानी पड़ती।
गोबर से करते हैं CNG गैस का निर्माण
वह CNG गैस का निर्माण अपने खेत में करते हैं। वह लगभग 15 वर्षों से मवेशी पालन कर रहे हैं। वे बताते हैं कि जैसे-जैसे पशुओं की संख्या बढ़ने लगी मेरे लिए उनके अपशिष्ट को उठा कर फेंकना या फिर अन्य जगह पर ले जाना काफी मुश्किल भरा रहता था। ऐसे में जब उन्हें यह पता चला कि गोबर से बायोगैस का निर्माण कर सकते हैं तब उन्होंने बायो प्लांट के कार्य को अंजाम देने का निर्णय किया।
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होता है 70 किलोग्राम CNG का निर्माण
हालांकि उन्हें इसके विषय में अधिक जानकारी नहीं थी इसीलिए इसे धीरे-धीरे धीरे पूरा किया गया और इसके निर्माण में उन्हें लगभग 50 लाख रुपए की लागत आई। वह बताते हैं कि उनके पास लगभग से 100 पशु हैं जिनसे उन्हें ढाई टन गोबर प्राप्त होता है और वे इस गोबर से 60 से 70 किलो सीएनजी गैस का निर्माण करते हैं।
हैं लोगों के लिए आदर्श
CNG गैस के निर्माण के बाद जो गोबर बच जाता है उससे वह केंचुआ खाद का निर्माण करते हैं। पशुओं के दूध एवं खाद से वह अच्छा पैसा कमाते हैं। जहां लोग एक बेहतर जीवनशैली के लिए अधिक मेहनत कर बिजली तथा पेट्रोल की अधिक खपत कर रहे हैं वहीं देवेंद्र इसकी बचत कर लोगों के लिए आदर्श बने हैं।