इरादे अगर मजबूत हों तो मुश्किल से मुश्किल परिस्थिति भी हमें अपने लक्ष्य को हासिल करने से नहीं रोक सकती। इसका सबसे अच्छा उदाहरण हमें असम के गुवाहाटी की रहने वाली दीपाली भट्टाचार्य के जीवन की कहानी से मिलती है। दीपाली- जिन्होंने “प्रकृति” नाम की एक संस्था की स्थापना की। जिसमें अचार और नमकीन बनाए जाते हैं। दीपाली की मेहनत से प्रकृति एक ब्रांड बन चुका है। एक समय था जब दीपाली की जिंदगी भी बहुत सामान्य हुआ करती थी। सुबह उठना, नाश्ता बनाना, घर संभालना, सभी का ध्यान रखना और इसी में पूरा दिन गुजर जाता था। दीपाली की शादी 1990 में हुई और 2003 में उनके पति का दिल के दौरे से देहांत हो गया।
उस वक्त उनकी उम्र 40 वर्ष थी, पेशे से असम के शिक्षक थे और बहुत ही नेक और गुणवान विचारों वाले व्यक्ति थे। उन्होंने थिएटर भी किया और बच्चों को संगीत भी सिखाते थे। उनके देहांत के बाद बेटी और सास की जिम्मेदारी दीपाली पर आ गई। दीपाली ने आचार का कारोबार शुरू किया। वे रोज सुबह उठकर पीठा टोस्ट भी बनाती हैं जो असम की परंपरा का हिस्सा है। उसे बनाने के लिए गुड़, आटा, नारियल और इलायची का प्रयोग किया जाता है और लोगों के स्वास्थ्य का ध्यान रखते हुए दीपाली उसे तलने की जगह बेक कर लेती हैं। उनके पड़ोस के मिठाई के दुकानदार हर रोज उनसे 60 पीठे लेकर जाते हैं।
दीपाली हमेशा कुछ नया बनाने की कोशिश करती हैं। अब तक उन्होंने 30 किस्म के आचार बनाए हैं। जिनमें से कुछ अचार मशरूम, नारियल और हल्दी के भी हैं और लोगों ने भी इसे खूब पसंद भी किया है। दीपाली हर महीने लगभग 250 अचार के डब्बे तैयार कर बेचती हैं। इस काम में उनकी बेटी भी उनका हाथ बटाती हैं। उनके ये आचार ना केवल गुवाहाटी बल्कि देश के और भी हिस्से दिल्ली, राजस्थान, बेंगलुरु, इत्यादि जगह भेजे जाते हैं। जिससे दीपाली की सालाना आय 5 लाख रुपये तक हो जाती है।
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दीपाली बताती हैं कि जब उनके परिवार में सब कुछ सही चल रहा था तो वे और उनके पति घर पर हीं ऐसे कामों की शुरुआत करने के बारे में बातें किया करते थे। उनके पति ने पहले ही कंपनी का नाम “प्रकृति” सोंच रखा था। उनके देहांत के बाद दीपाली उनके सपनों को पूरा करने की ठानी और संस्था शुरू करके उसका नाम “प्रकृति” हीं रखा और एक सफल कारोबारी बनीं। दीपाली के हाथों में पहले से ही जादू था। उनके परिवारवाले, उनके रिश्तेदार, दोस्त सभी उनके आचार की बहुत तारीफ करते थे। तभी दीपाली ने इसी क्षेत्र में आगे बढ़ने का विचार किया और वर्ष 2015 में अपनी कंपनी को पंजीकृत कराया।
उन्होंने अपने इस काम की शुरुआत छोटे-छोटे प्रतियोगिताओं में हिस्सा लेकर किया था और सभी में जीत भी हासिल की। पुरस्कार में कभी उन्हें बर्तन के सेट मिले तो कभी नगद राशि और यह जरूरी भी था क्योंकि उन पर परिवार की जिम्मेदारी भी थी। फिर उन्होंने 10,000 के निवेश से ‘प्रकृति’ की शुरुआत की। लहसुन, भट जोलोकिया, चिकन, मछली, इमली का आचार बनाना शुरू किया और लोगों को यह काफी पसंद भी आया। इसके बाद उन्होंने “रेडी टू ईट” का कांसेप्ट लाया। जिसमें नाश्ता पहले से ही तैयार होता था जैसे- मोढ़ी, चिवड़ा, चावल का पाउडर, चीनी का मिश्रण आदि। साथ हीं दीपाली अपने दही-बड़े के लिए भी बहुत प्रसिद्ध है। उन्हें शादियों में दूर-दूर से दही-बड़े के आर्डर भी आते हैं।
प्रकृति से पहले उन्होंने एक स्कूटर खरीदकर “होम फूड डिलीवरी” का काम शुरू किया। जिसमें दीपाली के हाथ के बने आलू चॉप, दही-बड़े, इडली इत्यादि डिलीवर को जाते थे और लोग बहुत पसंद से खाते थे। दीपाली बताती हैं कि उनके मायके में भी उनके परिवार का मसालों का एक प्रसिद्ध ब्रांड था, जिसका नाम था “गौन्धराज मसाला”। उसी मसाले से उनके घर में स्वादिष्ट अचार बनते थे और उस अचार बनाने की प्रक्रिया को वे बहुत ध्यान से देखती थी और सीखती थीं। लेकिन उनके भाई के देहांत के बाद मसाले के उस काम को बंद कर दिया गया। दीपाली की सास भी बहुत अच्छा खाना बनाती हैं और उनसे दीपाली ने खाने की बारीकियों को सीखा जो आज उनके काम आता है।
दीपाली बताती हैं कि प्रतियोगिता में भाग लेना उनके लिए एक वरदान साबित हुआ। इसी प्रतियोगिता के दौरान एक बार नारियल विकास बोर्ड ने उनके डिश की बहुत सराहना की और उन्हें 2005 में कुच्ची जाकर 10 दिन की ट्रेनिंग लेने का अवसर दिया। वहां दीपाली ने नारियल के अलग-अलग डिश, जैसे- मिठाई, केक, आइसक्रीम, आचार इत्यादि बनाना सीखा और वहां से लौटने के बाद दूसरी महिलाओं को भी सिखाया। जिससे उन महिलाओं को भी फायदा हुआ। वर्ष 2012 तक वे कई पत्रिकाओं में अपनी रेसिपी भी छपवाती थीं। इसके साथ ही उन्होंने प्रकृति को ब्रांड बनाने की भी ठाना जिसके बाद 2015 में उसे पंजीकृत भी करवा लिया।
प्रकृति का सारा काम जैसे- अचार बनाना, पीठा टोस्ट बनाना या पैकेजिंग दीपाली अपने घर से ही करती हैं। उनके पीठा टोस्ट का डिमांड भी दूर-दूर तक है। उनका आचार भी स्वास्थ्य के अनुकूल है, जिसमें तेल की मात्रा बहुत ज्यादा नहीं होती।
दीपाली अपनी बेटी सुदित्री के साथ एक दोस्त बनकर रहती हैं। सुदित्री ने 2015 में इलेक्ट्रॉनिक इंजीनियरिंग की पढ़ाई पूरी की और कुछ सालों तक दूरसंचार कंपनी में काम किया। फिर वे अपने काम को छोड़कर वापस आईं और अपनी मां के बिजनेस को आगे बढ़ाने में जुट गईं। ट्विटर, व्हाट्सएप, फेसबुक जैसे सोशल प्लेटफॉर्म से वे प्रकृति को ज्यादा से ज्यादा लोगों तक पहुंचा रही हैं। दीपावली का जीवन और उनका कार्य हमें काफी प्रेरणा देता है और अपने क्षेत्र में बेहतर काम करने की हिम्मत भी देता है।
दीपाली जी ने जिस तरह अपने हुनर को बखूबी इस्तेमाल कर सफल बिजनेस खङा किया उसके लिए The Logically दीपाली जी की खूब सराहना करता है।