Sunday, December 10, 2023

पैर से विकलांग होने से नहीं मिली नौकरी, खुद से खोला ढाबा, आज दिव्यांग क्रिकेटर भी करते हैं काम

यदि आप में कुछ करने की इच्छा हो और आप निरंतर और सटीक मेहनत करते रहें तो आपकी अपंगता भी आपको रोक नहीं सकती और आप सफलता की ऊंची से ऊंची उड़ान उड़ सकते हैं”। हमारे देश भारत में ऐसे कई लोग हुए हैं जिन्होंने विकलांगता को कभी भी अपने सपने को पूरा करने के बीच में आने नहीं दिया और आपने मजबूत इरादे और जज्बे से अपने लक्ष्य को पूरा किया।

विकलांग शब्द जेहन में आते ही एक बेबस और लाचार शख्स की तस्वीर उभर पड़ती है। उनके सामने उनकी जिंदगी एक पहाड़ सी लगने लगती है और यह तब और विकराल रूप ले लेता है जब उनकी विकलांगता को आपकी कमजोरी बता कर आपको काम देने से इनकार कर दिया जाता है। आज इस कड़ी में हम मेरठ (Meerut) के एक ऐसे ही विकलांग युवा अमित कुमार शर्मा (Amit Kumar Sharma) की कहानी बताने वाले हैं जिन्होंने नौकरी के लिए दर-दर की ठोकरें खाई लेकिन उन्हें किसी ने नौकरी नहीं दी और अंततः उन्होंने खुद ही एक ढाबे की शुरुआत की।

यह भी पढ़ें:-शख्स ने ट्रक को बना दिया चलता-फिरता मैरिज हॉल, क्रिएटिविटी से आकर्षित आनंद महिंद्रा ने कही ये बात..

जब यह युवा नौकरी के लिए दरवाजे खटखटा रहे थे उस समय सभी लोगों ने इनकी अपंगता का मजाक उड़ाया। कोई कहता कि तुम सीढ़ी कैसे चढोगे, कोई कहता कि तुम समय पर डिलीवरी कैसे दे पाओगे। इस तरह से कई तरीके की बात कर उनके मनोबल को गिरा दिया जाता और नौकरी देने से भी इंकार कर दिया जाता। लोगों के द्वारा किए गए सवालों को उन्होंने अपनी मजबूती बनाई और खुद जैसे कई विकलांगों को इकट्ठा किया और खुद से ही कुछ करने का विचार किया।

अमित कुमार शर्मा (Amit Kumar Sharma) ने मेरठ हाइवे (Meerut Highway) पर एक ढाबा खोला और उनका यह ढाबा “दिव्यांग ढाबा” के नाम से मशहूर हो गया और आज उनके हिम्मत को लोग प्रशंसा ही नहीं कर रहे बल्कि उसे सलाम भी कर रहे हैं। आपको बता दें कि अमित बचपन में ही अपना एक पैर खो दिए थे उनके यहां काम करने वाले सभी लोग दिव्यांग क्रिकेटर हैं। दिव्यांग क्रिकेटर की बात आती है तो इसके पीछे अमित की मेहनत और सोच ही है।

यह भी पढ़ें:-भारत में समुद्र के भीतर 300 किमी प्रति घन्टे की रफ्तार से दौड़गी बुलेट ट्रेन, 65 किमी गहराई में बनेगी Under Sea Tunnel

अमित बताते हैं कि मेरठ का ही रहने वाला शावेज (Shawej) नाम का एक लड़का दिल्ली (Delhi) में क्रिकेट खेलता था। दरअसल शावेज भी अपना एक बार खो चुके हैं। जब उन्हें दिव्यांग क्रिकेट के बारे में पता चला तो उन्होंने अपने पिता के सहयोग से दिव्यांग क्रिकेट खेलना शुरू किया। वे एक समय दिल्ली की टीम से खेला करते थे। उन्होंने ही अमित को और उनके सभी दिव्यांग साथियों को दिव्यांग क्रिकेट के बारे में जानकारी दी। इसके बाद उनके सभी साथी उत्सुक हो झूठे और आगे चलकर अमित ने दिव्यांगों का मैच भी करवाया।

लाल सिंह (Lal Singh) नाम के एक शख्स हैं जो अमित के इस ढाबे के महत्वपूर्ण सदस्यों में से एक हैं, वह इस ढाबे में खाना बनाने का कार्य करते हैं। वहीं एक अन्य दिव्यांग सदस्य गिरिराज (Giriraj) का कहना है की क्रिकेट का जज्बा उनसे कभी नहीं छूटा। पैर से विकलांग होने के बावजूद भी उनके परिवार वालों ने भी कभी नहीं रोका और नहीं भी वे खुद को रोक पाए।