दिवाली आते ही बच्चों के मन में एक अलग ही उत्साह और कौतूहल बना रहता था. दिवाली के महीनों पहले से हम घर के छत पर या किसी कोने में दिवाली घर बनाने की तैयारी में जुट जाते थे. अपने आसपास के बच्चों के साथ यह मुद्दा बना रहता था की इस बार का सबसे बेहतरीन दीपावली घर किसने बनाया है।
मिट्टी, गोबर, ईंट और पत्थर का जुगाड़ कर हम लगभग एक सप्ताह पहले से ही दीवाली घर बनाने की प्रक्रिया में जुट जाते थे, केवल हम ही नहीं बल्कि इस कार्य में बड़े-बुजुर्ग भी हमारा साथ बखूबी देते थे। दीवाली घर को दो तल्ला, तीन तल्ला और अनेकों रूप देने के बाद अच्छे तरीके से उसकी सजावट की जाती थी और ठीक अगले दिन उसे चूने से दो बार रंगा जाता था ताकि उसमें नयापन आ जाए।
बड़े बुजुर्गों के पूजा के अलावा बच्चों का अपना पूजा होता था जिसके लिए विशेष रूप से मूर्तियां खरीदी जाती थी और दीवाली घर में उस मूर्ति को प्रतिष्ठित कर शाम के वक्त पूजा अर्चना की जाती थी। खुद के घर के पूजा अर्चना के बाद सारे बच्चे घूमने के लिए दूसरों के घर जाया करते थे, उस समय तरह-तरह के बालपन विचारों और सुझावों का समावेश एक दूसरे को प्रेरित करता था।
अब हम बड़े और समझदार हो चुके हैं! हमारे अंदर का बचपन कहीं मर चुका है. अब हम खुद अपने बच्चों को वह सारी चीजें करने से मना कर देते हैं जो कभी बचपन में हमने खुद किया है। हम अपने बच्चों को मिट्टी से खेलने के लिए या फिर मिट्टी के घर बनाने के लिए बड़ी आसानी से मना कर देते हैं। लेकिन हमें सोचना चाहिए कि हमारे बचपन की तरह ही एक दूसरा बचपन है जो अभी पनप रहा है, जिन्हें अपने समझदारी के हिसाब से हर पर्व और त्यौहार को जीने का पूरा हक है।
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हमारी समझ भले ही कुछ और हो चुकी है लेकिन हमें आज के बचपन को खुलकर जीने देना चाहिए और उन्हें वह सारे काम करने के लिए प्रोत्साहित करने चाहिए जो उन्हें रुचिकर लग रहे हों!
इस दीपावली The Logically के तरफ से हम अपने पाठकों से आग्रह करते हैं कि आप अपनी आने वाली पीढ़ी को वह सारी खुशियां दीजिए जो आपने कभी बचपन में महसूस किए थे। अंततः आपको और आपके पूरे परिवार को दीवाली की हार्दिक शुभकामनाएं।