किसी ने सही कहा है कि ‘मंजिलें उन्ही को मिलती हैं, जिनके सपनों में जान होती है। सिर्फ पंखों से कुछ नहीं होता, दोस्तों हौसलों से उड़ान होती है। यह शेर शायद आपने सैकड़ो बार सुना होगा और इसका मतलब भी आप अच्छे से जानते होंगे। लेकिन ये शेर फिट होता है एक ऐसे इंसान पर जिनके हौसलों ने आज उन्हें दुनिया भर में सम्मान दिलवाया है।
इन पंक्तियों के प्रत्यक्ष उदाहरण है आयुर्वेद के जरिए समाज सेवा करने वाले आयुर्वेदिक डॉक्टर गुरदीप सिंह। गुरदीप सिंह (Professor Gurdip Singh) कभी इंजीनियर बनना चाहते थे, लेकिन उनके दोस्त ने उनको आयुर्वेद कॉलेज (Ayurveda College) में नामांकन लेने की सलाह दी। जिसके बाद उन्हें एहसास हुआ कि इसी के जरिए लोगों की सेवा कर सकते हैं। इसलिए गुरदीप सिंह ने आयुर्वेद को चुना।
गुरदीप सिंह साल 2003 में गुजरात के जामनगर आयुर्वेद मेडिकल कॉलेज के डीन रहे। कई देशों में उन्होंने आयुर्वेद को बढ़ावा दिया। उन्होंने विदेशों के यूनिवर्सिटी में आयुर्वेद की सीटें बढ़ाने में भी अपना योगदान दिया। वह वर्तमान में जामनगर गुजरात से रिटायर होने के बाद अब कर्नाटक के हसान जिले में आयुर्वेद के लिए काम कर रहे हैं। आयुर्वेद के लिए उनके काम को देखते हुए भारत सरकार ने उन्हें पद्मश्री से भी नवाजा है। आइये जानते हैं उनके बारे में।
President Kovind presents Padma Shri to Shri Gurdip Singh for Medicine. Dr. Singh was instrumental in infusing science and raising the standard of Ayurveda research and scientific explanations of Panchkarma leading to its global acceptance. pic.twitter.com/mEQNGUDliM
— President of India (@rashtrapatibhvn) November 8, 2021
बचपन बुरे दौर में गुजरा
गुरदीप सिंह (Gurdip Singh) पंजाब के रहने वाले थे। उनके पूर्वज भी वही के थे। किन्तु सिंधिया महाराज ने उन्हें रायतपुरा गांव में बुलाया था। लेकिन यहां आने के तीन साल बाद ही उनके पिता की मृत्यु हो गई थी। जिसके बाद घर की आर्थिक स्थिति बहुत खराब हो गई। सिंधिया राजघराने ने ही नौनेरा में 1947 में उनकी प्राइमरी तक की पढ़ाई कराई। 5वीं के बाद गोहद में मिडिल स्कूल था, जो गांव से 20 किमी दूर था। शुरू में वहां पढ़ने गए, लेकिन ज्यादा दिन नहीं जा सके। जिसके बाद उनकी मां ने उन्हें अपनी सहेली के घर उन्हें पढ़ने के लिए भेज दिया लेकिन वो यहां तक ज्यादा पढ़ नहीं सके। जब वो डबरा से वापस आए तो मां ने ग्वालियर में मिलने वालों के यहां भेजा। ग्वालियर में ही उन्होंने साइंस कॉलेज से बीएससी की। इस दौरान एनसीसी बहुत अच्छी थी तो थ्योरी एक्जाम सेकंड लेफ्टीनेंट के लिए चयनित नही हुए।
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आर्थिक स्थिति खराब हुई
प्रैक्टिकल परीक्षा में पास न होने के कारण गुरदीप सिंह के लिए नौकरी का संकट गहरा गया था। जिसके कारण कोलकाता में उन्होंने अपने एक रिश्तेदार के यहां 50 रूपये महीने की मुंशी की नौकरी कर ली। लेकिन नौकरी में उनका मन नहीं लगा वो इंजीनियर बनना चाहते थे, पर कॉलेज की फीस इतनी ज्यादा थी कि वो इसकी पढ़ाई नहीं कर सकते थे। इसके बाद उनके एक दोस्त ने उन्हें आयुर्वेद कॉलेज में नामांकन लेने की सलाह दी। इस दौरान उनकी आर्थिक स्थिति अत्यंत दैनीय हो गई थी। पर उन्होंने हिम्मत से काम लिया।
कॉलेज में नौकरी मिली (Gurdip Singh Padma shri)
गुरदीप सिंह के पास किताबों को खरीदने के पैसे नहीं थे इसलिए उन्होंने ट्यूशन पढ़ाना शुरू किया। जिससे उनकी कुछ आमदनी होने लगी। फाइनल ईयर में उन्होंने विश्वविद्यालय में टॉप किया। इससे स्कॉलरशिप मिली और कॉलेज में ही नौकरी मिल गई। जिसके बाद उन्होंने यहीं से पीएचडी की पढ़ाई पूरी की । वह गुजरात के जामनगर कॉलेज गए। यहां रहकर उन्होंने इम्युनिटी बढ़ाने की दवा पर रिसर्च किया। वहां वह कॉलेज के डीन भी बन गए। जामनगर से वो 2003 में डीन के पद से रिटायर हुए।
Veteran Ayurvedic Researcher and Professor, Gurdip Singh is one of the foremost authorities on the Charaka Sahita – awarded the Padma Shri for his distinguished service to the Nation. #PadmaAwards2020 #PeoplesPadma pic.twitter.com/ugP5pq4mRz
— Padma Awards (@PadmaAwards) January 31, 2020
आयुर्वेद के लिए पद्मश्री (Gurdip Singh Padma shri)
आयुर्वेद को देश-विदेश में नई पहचान दिलाने पर भारत सरकार ने डॉ. गुरदीप सिंह को देश के चौथे सर्वोच्च सम्मान पद्मश्री सम्मान से सम्मानित किया है। आयुर्वेद में अपने उत्कृष्ट कार्यों के लिए गुरदीप सिंह कई सम्मान से सम्मानित हो चुके हैं। आयुर्वेद को विदेशों में नई पहचान दिलाने वाले गुरदीप सिंह आज सही मायने में लाखों लोगों के लिए प्रेरणा हैं। उनसे लोगों को सीखने की आवश्यकता है। जिस तरह बुरे परिस्थिति में उन्होंने हिम्मत नही हारी यह काबिले तारीफ है। इसकी जितनी भी प्रशंसा की जाए कम है।