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पिछले 20 वर्षों से व्हीलचेयर पर बैठकर 3000 से भी अधिक बच्चों को मुफ्त शिक्षा दे चुके हैं : गोपाल खंडेलवाल

आइये आज हम आपकी मुलाकात कराते हैं एक ऐसे शख्स से जिनका जीवन हमारे लिए प्रेरणास्रोत है। वैसे तो देश में शिक्षा के लिए काम करने वालों की कमी नहीं है, परंतु शारीरिक कमी के बावजूद जो जज्बा इन्होंने दिखाया है, वह अद्वितीय है।

मिलिए गोपाल खंडेलवाल जी से। 

मूलरूप से बनारस के रहने वाले गोपाल जी बचपन से ही पढ़ने में होशियार थे। सब अच्छा चल रहा था। उनका सपना डॉक्टर बनने का था। इसके लिए उन्हें आगरा के एस एन मेडिकल कॉलेज में दाखिला भी मिल गया था।

एक दुर्घटना ने बदल दी इनकी ज़िन्दगी।

एक दिन गोपाल जी साइकिल से कहीं जा रहे थे, तभी पीछे से आ रही कार ने उन्हें टक्कर मार दी। इस घटना के बाद उनके कमर के नीचे का पूरा हिस्सा सुन्न हो गया और उनके पैर अब किसी के काम के नहीं रहे। सड़क दुर्घटना के छह महीने बाद ही उनकी मां का भी निधन हो गया। गोपाल जी पर जैसे दुखों का पहाड़ टूट पड़ा हो। जैसे ज़िंदगी उनसे रूठ गयी हो। पर उनकी माँ ने अंतिम दिनों में उन्हें यही सीख दी कि चाहें ज़िन्दगी कैसी भी इम्तहान ले, बेटा कभी हार मत मानना।

गोपाल कहते हैं, “मेरे लिए जीवन का निर्वाह करना बहुत मुश्किल हो गया था। मुझे लगने लगा था कि मैं अपने सगे-संबंधियों के लिए भी बोझ बन गया हूं। लेकिन मैंने जीवन के लिए जीवटता दिखाई। मैंने बस वही किया जैसा मेरी माँ ने मुझे सिखाया था कि बेटा, कभी हार नही मानना।”

छोटे कमरे एवं परेशान करने वाले संबधियों के कारण गोपाल जी का बनारस में रहना काफी मुश्किल हो गया।

दोस्त ने की मदद

ऐसे कठिन परिस्थितियों में इनके मित्र डॉक्टर अमित दत्ता ने इन्हें एक सलाह दिया। डॉक्टर साहब की मिर्जापुर के पास पत्तिका पुर में कुछ जमीन थी। उन्होंने गोपाल जी को वहीं जाकर बाकि का जीवन शांति से काटने को कहा। उन्होंने इनके लिए एक छोटा सा घर भी बनवा दिया। गोपाल जी वहाँ जाकर किसी तरह गुजर बसर करने लगे। दोस्त ने ही उनके लिए किसी गांव वाले से बात करके भोजन-पानी का भी बंदोबस्त कर दिया।

शिक्षा के क्षेत्र में पिछड़ा था पत्तिका पुर

पत्तिका पुर के समाज में गोपाल जी ने जातिवाद को अपने चरम पर पाया। उन्होंने देखा कि नीची जाति के बच्चे शिक्षा नहीं पा रहे हैं। इससे उनमें नफरत की भावना बढ़ रही थी। मिर्ज़ापुर के नक्सल प्रभावित जिला होने के कारण गोपाल जी को डर लग कि नीची जातियों में फैले असंतोष का फायदा कहीं नक्सलवादी न उठा लें। उन्होंने सोचा कि इस स्थिति को बदलने के लिए उन्हें बच्चों को शिक्षित करना चाहिए ताकि कम से कम आने वाली पीढ़ी भी इसी समस्या से न जूझे।

1999 में गुरुकुल की शुरुआत

1999 में एक पाँच वर्ष की बच्ची के साथ इन्होंने गुरुकुल की शुरुआत की जहाँ बच्चों को मुफ्त शिक्षा दी जानी थी। शुरुआत में कुछ ऊँची जाति के लोगों ने नीची जाति के बच्चों को शिक्षा मिलने का विरोध किया परंतु गोपाल जी टस से मस नहीं हुए। धीरे -धीरे गोपाल जी के इस गुरुकुल की चर्चा आसपास में होने लगी। बाद में ऊँची जाति के बच्चों ने भी गुरुकुल में प्रवेश लिया।

जज्बा आज भी है कायम

आज इक्कीसवें वर्ष में भी गोपाल जी उसी दृढ़ता के साथ अपना गुरुकुल चला रहे हैं। आज भी उनका दिन सवेरे साढ़े पाँच बजे शुरू होता है जब बच्चे आकर इन्हें जगाते हैं। इसके बाद ये शाम के छः बजे तक शिक्षा दान करते हैं।

मदद की है ज़रूरत

गोपाल जी को जिस शारीरिक लाचारी के कारण बनारस छोड़ना पड़ा था वो आज भी इनका पीछा नहीं छोड़ रहा है। उम्र बढ़ने एवं एक ही जगह लेटे एवं बैठे रहने के कारण इनके शरीर पर कई सारे घाव निकल गए हैं। जिस व्यक्ति ने अपना सारा जीवन देश के बच्चों के नाम कर दिया उसके पास इलाज के भी पैसे नहीं हैं। Logically ने ये मुहिम ऐसे महान व्यक्ति के आर्थिक मदद के लिए चलाई है।

यदि आप गोपाल जी की मदद करना चाहते हैं तो नीचे दिए गए लिंक पर क्लिक करें !

गोपाल जी से संबंधित कुछ फोटोज देखें:


Saloni is doing intern with Logically. She has been a house wife but the writer inside her forced her to join Logically. She is a Mathematics graduate and wishes to fulfill her dreams through writing.

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