Sunday, December 10, 2023

कई किलोमीटर पैदल चलने के बाद आदिवासियों के घर पहुंचकर इलाज़ करता है यह डॉक्टर

किसी की भलाई करने के लिये अधिक पैसों या साधनों की जरुरत नहीं होती है। इन्सान अपने दायरे में रहकर भी समाज की भलाई कर सकता है और एक नये समाज का निर्माण भी कर सकता है। समाज की भलाई और बदलाव करने के लिये पैसों की नहीं बल्कि हिम्मत और जुनून की आवश्यकता होती है।

आजकल डॉक्टर की फीस बहुत अधिक हो गयी है। हालांकि सरकारी अस्प्ताल है जिसमे कम शुल्क में इलाज होता है। लेकिन अगर देखा जाये तो आदिवासी इलाके के लोग दूरी होने और पैसों के अभाव में डॉक्टर के पास नहीं जातें हैं। इस कारण उनका समय रहते इलाज नहीं हो पाता। आज की यह कहानी एक ऐसे डाक्टर की है जो आदिवासियों को स्वास्थ्य सुविधा उपलब्ध करवाने के लिये खुद कई किलोमीटर पैदल चलकर उनके पास जातें हैं और उन सब का स्वास्थ संबंधी देखरेख करतें हैं।

डॉ. चितरंजन जेना (Dr. Chitaranjan Jena) ओड़ीसा के दशमंतपुर के प्राइमरी हेल्थ सेंटर में सरकारी मेडिकल ऑफिसर के पद पर कार्यरत हैं। यह पिछ्ले ढाई वर्षों से वहां के आदिवासी गांवों में स्वास्थ्य सम्बंधी शिविर लगा रहें हैं और मुलभुत सुविधा मुहैया करवा रहे हैं। डॉ. चितरंजन हमेशा से ही समाज के कामों में हिस्सा लेते थे। जब उनकी पोस्टिंग उड़ीसा के कोरापुटा से दशमांत पुर में  हुईं। वह समय वर्षा ऋतु का था और डायरिया के मरीजों की लम्बी लाइन लगी हुईं थी। डॉ. चित्तरन्जन ने सबका इलाज किया। इलाज करने के बाद वह वहां के कुछ पुराने रिकार्डस की जांच परताल किये तो, उन्हें पता चला की वर्ष 2007 में वहां कोलेरा बिमारी फैला हुआ था और सरकार के औपचारिक रिकार्ड के अनुसार सिर्फ 35 लोगों के मौत को ही दिखाया गया था। यह रिकॉर्ड वास्तविकता से बिल्कुल अलग था। वास्तव में वहां 300 से अधिक लोगों की जान गईं थी। यह सब देख के वह बहुत प्रभावित हुए और समस्या अनदेखा न कर अपने स्तर पर ही कुछ करने का विचार किए।

लोगों को स्वास्थ्य संबंधी सुविधा मुहैया करवाने के लिये किए समिति का निर्माण

डॉ. चितरंजन (Dr. Chitaranjan) ने अपनी मेडिकल टीम के साथ 15 अगस्त 2017 को एक समिति का गठन किया। उस समिति का नाम “गांवकु चला” रखा गया। “गांवकु चला” का अर्थ है, गांवों की तरफ चलों। इस टीम को बनाने के बाद उनहोंने निर्धारित किया कि प्रत्येक सप्ताह छुट्टी के दिन ब्लॉक के हर गांव में जाकर वहां के लोगों को सेहत से संबंधित सुविधा मुहैया करवाएगी। उनका रूटीन चेकअप होगा। इसके साथ ही सेहत से जुड़ी सभी क्रियाकलापों के बारें में जागरुक भी किया जायेगा।

यह भी पढ़े :-

अच्छी पहल :विथुरा के आदिवासी बच्चों को पढ़ाने के लिए इन पुलिसवालों ने शुरू किया मुहिम

वहां के गांवों में मलेरिया, डेंगू और डायरिया की बिमारी सामान्य थी। इसलिए डॉ. चितरंजन ने अपनी समिति में इन तीनों बिमारियों पर ज्यादा ध्यान दिया। 

समिति ने जागरूकता अभियान को सरकारी स्कूल से आरंभ किया।

“गांवकु चला” समिति ने अपने निर्धारित कार्य की शुरुआत सबसे पहले सरकारी स्कूल के बच्चों से की। इनके द्वारा स्कूल के बच्चों को सेहत के बारें में जरुरी बातों को बताकर जागरुक किया गया। इसके बाद धीरे-धीरे गांव के अन्य लोगों को भी इससे जागरुक किया गया। उन्होंने लोगों को समझाया, “खाने से पहले और खाने के बाद हाथों की अच्छी तरह से सफाई करनी चाहिए। वहां के अधिकतर ग्रामीण लोग नदी या झरने के पानी का उपयोग करतें हैं। ऐसे में उन्हें यह भी बताया जाता है कि खाना बनाने या पानी पीने से पहले उस पानी को अच्छी तरफ से उबालना चाहिए। उसके बाद इस्तेमाल में लाना चाहिए। इसके अलावा मलेरिया से बचने के लिए लोगों को मच्छरदानी लगाकर सोने की सलाह दी जाती है। उनका रूटीन चेकअप करने के दौरान यदि किसी की तबियत अधिक खराब होती है तो उन्हें तुरंत प्राइमरी हेल्थ सेंटर या अस्पताल में भर्ती कराया जाता है।”

गांवों तक सफर पैदल तय करतें हैं।

डॉ. चितरन्जन के सेंटर से अधिकतर गांवों की दूरी 6 से 7 किलोमीटर है। उन गांवों तक पहुंचने के लिये पहाड़ों से गुजरना पड़ता हैं। ऐसे में डॉ. चितरंजन अपने टीम के साथ सुबह 6 बजे से निकलते हैं और उन गांवों का सफर पैदल ही तय करते हैं। इसके साथ ही वह आवश्यकता के सभी जरुरी सामानों को अपने साथ लेकर जातें हैं, जैसे साबुन, मच्छरदानी, दवाइयां आदि। उनका ज्यादा ध्यान साफ-सफाई की ओर रहता हैं। गांवों में जमा पानी देखकर डॉ खुद वहां के ग्रामीणों के साथ मिलकर उसकी सफाई करतें हैं, ताकी पानी जमा होने से मलेरिया और डेंगू जैसे मच्छर न पनपे।

डॉ. जेना का कहना है कि बीतते समय के साथ वह अपनी गतिविधियों में भी विस्तार कर रहें हैं। गांव के लोगों ने उनके ऊपर विश्वास करने लगें हैं। डॉ. जेना लोगों से अन्य मामलों के बारें में बातें करने लगे हैं।

डॉ. जेना ने बाल विवाह के बारें में भी लोगों को समझाया कि छोटी उम्र में शादी करने से लडकियों के जीवन को खतरा हो सकता है। महिलाओं के माहवारी सम्बंधी बातों को भी गांवों और स्कूलों में काउंसिल किया जाता है।

डॉ. चितरंजन और उनकी समिति टीम न अभी तक ब्लॉक के अंतर्गत आने वाले सभी 318 गांवों में कैंप कर चुकी हैं। इनमें से 12 गांवों को सेहत सुविधाओं के अनुसार “आदर्श गांव” बनाने के लिये चयनित किया गया हैं। गावों के नाम इस प्रकार है:- घाटमुन्दारो, अलची, बघलामती, कलती, हलादिसिल, गदरी, बेन्देला, अम्बागूदा, कोरागुडा, फन्दागुडा, गदलिगुम्बा और लारेस।

डॉ. जेना के द्वारा एक और नयी पहल की शुरुआत की गयी है। इस पहल का नाम ” स्वास्थ्य सहायक बहिनी” है। इस पहल के तहत प्रत्येक गांव से 7-7 युवकों का एक ग्रुप बनाया गया है। डॉ. जेना के समिति के बाद यह ग्रुप उनके द्वारा बताये गयें तरीकों से सही ढंग से काम करतें हैं या नहीं यह सुनिश्चित किया जाता है। गांव के लोगों को सोने के लिये मच्छरदानी के प्रयोग का सही समय बताने के लिये यह समूह रोज शाम को घंटा बजाता हैं जिससे उन्हें समझ आ जाता हैं कि अब मच्छरदानी लगा कर सोना है।

आदिवासी लोगों के बारें में डॉ. जेना का कहना हैं कि वे लोग बहुत स्वाभिमानी होते हैं। उन्हें कुछ भी मुफ्त में नहीं चाहिए। वह बताते हैं कि जब भी वह घाटमुन्दारु जाते हैं तो वहां एक 72 साल की बूढ़ी दादी उन्हें खाना बनाकर खिलाती हैं। डॉ. जेना उन्हें भगवान के लोग मानते हैं क्योंकि उनके जैसा सीधा और सादा कोई नहीं मिलेगा। वह लोगों को प्यार देते हैं।

डॉ जेना ने कहा की, शुरु-शुरु में उनकी भाषा को समझने में कठिनाई हुईं जिसके कारण वह वहां के भाषा को सीखने लगे। वहां भाषा सीखने में स्कूल के लड़कों ने काफी मदद किया। लोगों की बातों को बच्चे डॉ जेना को समझाते थे और इनकी बातों को लोगों को समझाते थे। लोगों की मदद करने के लिये सच्ची लगन ने अपना रंग दिखाया। अब वह उनकी भाषा बोल और समझ भी सकतें हैं।

डॉ. जेना को उनके इस पहल के लिये स्वास्थ्य मंत्री ने सम्मानित किया हैं। उनके इस प्रयास को राष्ट्रीय स्तर पर भी पहचान मिला है। डॉ. जेना के के प्रोग्राम को भारत के 100 बेस्ट प्रोग्रामों में स्थान भी मिला है।

डॉ. चितरंजन जेना से दिये गये ईमेल पर आप उनसे सम्पर्क कर सकतें हैं। (crjena2011@gmail.com)

The Logically डॉ. जेना को उनके नेक कार्यों के लिये नमन करता हैं।